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आज महाराणा प्रताप की जयंती पर चलिये कुम्भलगढ़

महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक...

बोर्रा गुफाएँ--[आन्ध्र प्रदेश]



आन्ध्र प्रदेश ,भारत देश के पूर्वी तट पर स्थित राज्य है. यह क्षेत्र से भारत का सबसे बड़ा चौथा राज्य और जनसंख्या द्वारा पांचवां सबसे बड़ा राज्य है.इस की राजधानी हैदराबाद है.२३ जिलों वाले इस राज्य में बहुत सी ऐसे जगहें हैं जिनका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है.आज हम आप को इसी प्रदेश की एक ऐसी ही प्राचीन और महत्वपूर्ण जगह पर ले चलेंगे.यह जगह है 'बुर्रा या बोर्रा गुफाएं '.

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-१० ]- घुश्मेश्वर/घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

द्वादश ज्योतिर्लिंग में अब तक हम ने ९ ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किये.अप्रैल २००९ , के बाद आज मैं इस की अगली कड़ी प्रस्तुत कर पा रही हूँ.प्रयास रहेगा कि जल्द ही यह श्रृंखला पूरी कर सकूँ.
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घुश्मेश्वर/घृष्णेश्वर  ज्योतिर्लिंग –[महाराष्ट्र ]
महाराष्ट्र के मनमाड से 100 किमी दूर दौलताबाद स्टेशन से लगभग ११ किमी की दूरी पर वेरुल गांव में स्थित हैं.विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं भी पास में ही स्थित हैं.

अदालज वाव

 पहले समय में पानी के संग्रहण के लिए गहरे  कुएं खुदवाए जाते थे जिन्हें हम बावड़ी /वाव भी कह सकते हैं.राजस्थान और गुजरात में आप को ऐसे कई सुन्दर सीढ़ीनुमा वाव देखने को मिल जायेंगे .रानी की वाव ,चाँद बावड़ी,जूनागढ़ की  अड़ीकड़ी वाव आदि बहुत सी वाव उल्लेखनीय हैं .जिनके बारे में बाद में बताएँगे ,आज एक बहुत ही सुन्दर वाव के बारे में जानकरी देंगे.. स्थापत्य कला के इस अद्भुत नमूने का  नाम अडालज वाव है.
अदालज /अडालज वाव-
गुजरात राज्य के अहमदाबाद से 18 किलोमीटर दूर अदालज गाँव में यह वाव स्थित है.

तवांग-[अरुणाचल प्रदेश]

'स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ'
कुछ दिनों पहले गूगल मैप द्वारा मांगी गयी माफ़ी की खबरें सुर्ख थीं.गूगल ने अपने मैप में भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के जिस हिस्से को पडोसी देश चीन का हिस्सा दिखाने की गलती की थी जिस के लिए उसने माफ़ी मांगी थी,वह हिस्सा है..'तवांग '..यह अरुणाचल प्रदेश का एक जिला है और आज चलते हैं इसी क्षेत्र की सैर पर..

arunachal-pradesh-map भारत ka ek उत्तर पूर्वी राज्य hai अरुणाचल प्रदेश .
अरुणाचल--अर्थ है --उगते हुए सूर्य की भूमि.
-सन् १९७२ ई. तक अरुणाचल नार्थ ईस्ट फ्रोन्डियर एजेन्सी के नाम से जाना जाता था. २०.०१.१९७२ में उसे संघ शासित क्षेत्र की मान्यता मिली.उसके बाद वह अरुणाचल प्रदेश नाम से जाना जाने लगा. २० फरवरी १९८७ म इसे राज्य के रूप में मान्यता मिली। इसकी पहली राजधानी नहरलगन थी, अब ईटानगर बन गया.
यहाँ एक विश्वविद्यालय (राजीव गाँधी विश्वविद्यालय), एक इंजीनियरिंग कॉलेज, सात महाविद्यालय तथा ढेर सारे विद्यालय भी हैं. सियांग, कामंग आदि यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं.

कन्याकुमारी



आज आप को लिए चलते हैं, भारतभूमि के अंतिम कोने की ओर ..अर्थात कन्याकुमारी .

छुटपन में जब हम कन्याकुमारी घूमने गए तब बस से उतरते ही अपने जीवन में पहली बार समुन्दर देखा.दूर तक फैली हुई नीली चादर की तरह ,बहुत शांत बहता सा,इतना खूबसूरत लगा था कि वह नज़ारा अब तक आँखों में बसा है.

छत्तीसगढ़ का खजुराहो

भारत के राज्य छत्तीसगढ़ के  बारे में हम आप को अपनी पुरानी पोस्ट में बता चुके हैं.
इसी राज्य के एक जिले कबीरधाम [पुराना नाम कवर्धा ]में आज आप को लिए चलते हैं जो रायपुर से करीब 100 किमी दूर है.
यह स्थान राज्य के मुख्यमंत्री डॉ.  रमण सिंह जी का गृह जिला भी है.पिछड़ा समझे जाने वाले इस राज्य ने कम समय में अपनी मजबूत अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाई है.यहाँ पर्यटक भारी संख्या में घूमने आते हैं.

रानी लक्ष्मी बाई और झाँसी का किला

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१९ नवंबर १८३५ को वाराणसी जिले के भदैनी मुहल्ले में मोरोपंत तांबे, भागीरथीबाई के घर एक पुत्री जन्मी, जिसका नाम रखा गया मणिकर्णिका[मनु]। बचपन से ही उसने पढ़ाई व खेल कूद में विलक्षण प्रतिभा दिखायी. सात साल की उम्र में ही वह घुड़सवारी और तलवार चलाने में, धनुर्विद्या में निपुण हुई.बचपन में उसने पिता से कुछ पौराणिक वीरगाथाएँ सुनीं थीं और वीरों के लक्षणों व उदात्त गुणों को उसने अपने हृदय में संजोया हुआ था. उस असाधारण कन्या को देखकर मुग्ध झाँसी के कुछ वंश रक्षक पुरोहितों ने उसका विवाह राजा गंगाधरराव से कराया.

चंडीगढ़ युद्ध स्मारक

ऐसा सुना और कहा गया है.'जो देश अपने शहीदों को भूल जाता है उस देश की प्रगति संभव नहीं है '.

'युद्ध स्मारक' बनवाए जाते हैं अपने देश के शहीदों के प्रति सम्मान और आभार दर्शाने हेतु.आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाते रहने के लिए की यह देश हमेशा उन वीर शहीदों का ऋणी रहेगा जिनके बलिदान के कारण आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं.

शायद बहुतों को मालूम नहीं है, १९४७ के बाद अब तक हमारे देश ने चार युद्ध लड़े[पाकिस्तान के साथ ( 1965 and 1971,1999 )और चीन के साथ ( 1962)] ,इन में मारे गए पचास हजार सैनिकों की याद में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने का प्रस्ताव सेना अध्यक्षों द्वारा समय समय पर लाया गया.लेकिन बहुत ही अफ़सोस के साथ आज मुझे यह कहना पड़ रहा है की आजादी के ६ दशक बाद भी हमारी केंद्र सरकार ऐसा कोई भी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं बनवा पाई.

नागार्जुन सागर बाँध,गुंटूर


आंध्र प्रदेश में गुंटूर की स्‍थापना फ्रांसिसी शासकों ने आठवीं शताब्‍दी के मध्‍य में की थी.करीब 10 शताब्दियों तक उन्‍होंने यहां राज किया. बाद में 1788 में इसे ब्रिटिश साग्राज्‍य में मिला दिया गया.यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है.

इस विश्व विद्धयालय के कुलपति आचार्या नागार्जुन हुआ करते थे.जो की एक बड़े बोद्धनुयायी थे.
अवशेष में पाए स्तूप पर ब्राहमी में लिखा बताता है की यहाँ भगवान बुद्ध भी कभी रहे होंगे.
कृष्णा नदी पर बने इस बाँध का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है.
गुंटूर बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है. प्राचीनकाल में यह' विजयपुरी 'था .

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-9]- त्रयम्बकेश्वर

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त्रयम्बकेश्वर-:
Tryambakeshwar Temple, NasikTryambakeshwar Temple
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक'त्रयम्बकेश्वर 'महाराष्ट्र के नासिक में है.
नाशिक शहर से ४० कि.मी दूर एक छोटे से कस्बे त्रयम्बकेश्वर में ,गोदावरी नदी के किनारे भगवान शंकर का यह ज्योतिर्लिंग है.भक्ति और आस्था के इस पावन स्थल में [धार्मिक मान्यता के अनुसार] काल सर्प योग के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए लोग दूर दूर से यहाँ आते हैं.

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-8]- भीमशंकर




महाराष्ट्र राज्य में मुंबई से करीब 265 किलोमीटर [via Pune] दूर, पूर्व की ओर भीमा नदी के तट पर भीमशंकर ज्योतिर्लिग स्थित है.
इसके उद्भव की एक कथा इस प्रकार है-
सहमाद्रि पर्वत के शिखर पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग का पुराणों में बहुत अधिक महत्व है। आकर्षक हरियाली से घिरे इस तीर्थस्थल तक पहुंचने के लिए बसों का सहारा लेना पड़ता है। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार कुंभकरण का बेटा भीम ब्रहृमा के वर से इतना वलशाली हो गया कि उसने सभी देवताओं को हराकर इंद्र को भी परास्त कर दिया। इसके बाद उसने कामरूप के महाराजा सुर्दाक्षण को भी अपने कब्जे में कर लिया। सुर्दाक्षण शिवभक्त थे। उन्होंने कारागार में ही शिवलिंग बनाकर तपस्या शुरू कर दी। भीम ने क्रुद्ध होकर उस ज्योतिर्लिंग को तोडऩा चाहा जिससे रुष्ट होकर शिवजी प्रकट हुए और भीम का बध कर दिया तथा वहीं स्थापित हो गए। जिसके कारण इस ज्योतिर्लिंग को लोग भीमशंकर के नाम से जानते हैं।
दूसरी कथा इस प्रकार-:
सहृयाद्रि और इसके आस-पास के लोगों को त्रिपुरासुर नामक दैत्‍य अपनी असुरी शक्तियों से बहुत सताता था। इस दैत्‍य से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर यहाँ भीमकाय स्‍वरूप में प्रकट हुए। त्रिपुरासुर को युद्ध में पराजित करने के बाद भक्‍तों के आग्रह पर भगवान शंकर वहाँ ज्‍योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। कहते है कि युद्ध के बाद भगवान शंकर के तन से जो पसीना बहा उस पसीने से वहाँ पर भीमवती नदी का जन्‍म हुआ।
नाना फदनिस [पेशवा ] जी ने यहाँ वर्तमान मंदिर बनवाया था.इसका प्रवेश द्वार लकड़ी का बना हुआ है.
[विभिन्न मतों के अनुसार --शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशङ्कर ज्योतिर्लिङ्ग असम के कामरूप जिले में गोहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में एक विशाल शिवमंदिर है, वहीं भीमशंकर का स्थान है]

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-७]-ओंकारेश्वर

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अपनी इस यात्रा में आज चलते हैं ओंकारेश्वर नगरी .नर्मदा क्षेत्र में यह ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है.मध्य प्रदेश के खंडवा जिले को दक्षिण भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है.यह जिला नर्मदा और ताप्‍ती नदी घाटी के मध्य बसा है.इंदौर शहर से ७७ किलोमीटर दूर,खंडवा जिले में स्थित यह स्थान नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में बने एक टापू पर है, इसे मान्धाता पहाड़ी भी कहा जाता है. नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है.

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-6]-महाकालेश्वर

ऊँ महाकाल महाकाय, महाकाल जगत्पते।
महाकाल महायोगिन्महाकाल नमोऽस्तुते॥
- महाकाल स्त्रोत(महाकाय, जगत्पति, महायोगी महाकाल को नमन)
आज महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए चलते हैं.मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित ‘दक्षिणमुखी’ इस ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू माना जाता है.

'उज्जैन' भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मध्य में शिप्रा नदी के किनारे बसा एक अत्यन्त प्राचीन[ पाँच हजार सालसे भी अधिक पुराना] शहर है .
जो कभी राजा विक्रमादित्य [(जिनके नाम से विक्रम संवत चलाया गया]के राज्य की राजधानी थी.
यह एक प्रमुख धार्मिक शहर है जिसे हरिशचन्द्र की मोक्षभूमि, सप्तर्षियों की र्वाणस्थली, महर्षि सान्दीपनि कीतपोभूमि, श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली, भर्तृहरि की योगस्थली, सम्वत प्रवर्त्तक सम्राट विक्रम की साम्राज्य धानी, महाकवि कालिदास की प्रिय नगरी, विश्वप्रसिद्ध दैवज्ञ वराह मिहिर की जन्मभूमि, जो अवन्तिका अमरावतीउज्जयिनी कुशस्थली, कनकश्रृंगा, विशाला, पद्मावती, उज्जयिनी आदि नामों से समय-समय पर प्रसिद्धिमिलतीरही

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-५]-नागेश्वर

गुजरात के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद आज यहीं नज़दीक द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर 'नागेश्वर मंदिर'चलते हैं .गुजरात राज्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी मेरी पिछली पोस्ट में आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
'एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्‌। सर्वान्‌ कामानियाद् धीमान्‌ महापातकनाशनम्‌॥'
अर्थात जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा. रुद्र संहिता शिव भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है.नागेश्वर का अर्थ है नागों का ईश्वर होता. गुजरात प्रांत में द्वारका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग 'नागेश्वर मंदिर' में स्थित है.इस दिव्य ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा आप ने सुनी होगी,जिन्हें नहीं मालूम उनके लिए बता देती हूँ.

द्वादश ज्योतिर्लिंग- [भाग-4]- काशी विश्वेश्वर

भारत के उत्तर में जनसँख्या की हिसाब से सब से बड़ा प्रदेश है उत्तर प्रदेश.उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग ४००० वर्ष पुराना है,जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा तब वेदिक सभ्यता का उत्तर प्रदेश मे जन्म हुआ.इन्ही आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष पड़ा था.[भरत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे].
मथुरा शहर में जन्मे थे भगवान कृष्ण और भगवान राम" का प्राचीन राज्य कौशल इसी क्षेत्र में था.संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर भी यहीं है.
इस के उत्तर में हिमालय का क्षेत्र -मध्य में गंगा का मैदानी भाग -दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र है.यह सबसे अधिक '७१' जिलों वाला प्रदेश है.एशिया का सबसे बड़ा उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद में है.सोनभद्र जिला, देश का एक मात्र ऐसा जिला है जिसकी सीमाएँ सर्व चार प्रदेशों को छूती हैं.

द्वादश ज्योतिर्लिंग -[भाग-3]-वैद्यनाथधाम

झारखंड-
अपने नाम के अनुरुप यह मूलत: एक वनप्रदेश है.प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है.
15 नवंबर,2000 [ आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिन] के दिन बना यह राज्य भारत का अठ्ठाइसवाँ राज्य है.इसे बिहार के दक्षिणी हिस्से को विभाजित कर के बनाया गया है.इसकी राजधानी रांची है.रांची के अतिरिक्त जमशेदपुर, धनबाद तथा बोकारो जैसे औद्योगिक केन्द्रों के कारण इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली हुई है.
इस राज्य में 24 जिले हैं . यह आदिवासी बहुल राज्य है.सबसे बड़ा त्योहार सरहुल है जो मुख्यतः बसंतोत्सव है .छऊ प्रसिद्द लोक नृत्य है.
पूरे भारत देश में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मशहूर है.

Reference-http://jharkhand.nic.in/
वैद्यनाथधाम -

द्वादश ज्योतिर्लिंग [भाग-2]-सोमनाथ & केदारनाथ

महाशिवरात्रि पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ..


जैसा की पिछली पोस्ट में बताया गया था कि भारत देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं.
इनके नाम इस प्रकार हैं-
(1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3) महाकालेश्वर, (4) ओंकारेश्वर (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर,
(8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर[घुश्मेश्वर].
***इनमें से 3 महाराष्ट्र राज्य में[त्रयम्बकेश्वर,भीमशंकर,घुश्मेश्वर,] ही हैं,
गुजरात में 2[सोमनाथ,नागेश्वर] , तमिलनाडु के 1-रामेश्वरम में मौजूद [रामलिंगेश्वर],उत्तर में एक[केदारनाथ ],उत्तर प्रदेश में एक[विश्वनाथ],आंध्रा प्रदेश में एक[श्रीशैलम-मल्लिकार्जुन महादेव] ,झारखंड के देवघर नामक स्थान में 1[वैद्यनाथ]और मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग[महाकालेश्वर &ओंकारेश्वर] हैं.

आईए सब से पहले 'सोमनाथ 'के दर्शन के लिए चलते हैं-

द्वादश ज्योतिर्लिंग [भाग-१]

महाशिवरात्रि पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ..
भारत देश की यही खूबी है कि यहाँ सभी पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं.
भोले भंडारी भगवान शिव की परम भक्त हूँ इसलिए इच्छा हुई कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लींगों की पावन यात्रा
आज से आरंभ की जाए .
इस यात्रा को शुरू करने से पहले जान लें कि आख़िर भगवान शिव की आराधना करते क्यों हैं?शिवलिंग क्या है?

शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं. इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है. शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है. भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर हैं.ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है।
कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा.

'मेघों का घर'-मेघालय



मेघालय अर्थात 'मेघों का घर'!
21 जनवरी, 1972 को मेघालय ,भारत देश के एक पूर्ण राज्‍य के रूप में अस्तित्‍व में आया. जनसंख्या 2,318,822 है.
खासी, गारो तथा अंग्रेजी भाषाओं वाले इस राज्य की राजधानी शिलॉंग है. इसे पूर्वोत्तर का स्कॉटलैंड कहा जाता है.
इस पहाड़ी राज्य के उत्तरी और पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी तथा पश्चिमी सीमाएँ बंगलादेश से मिलती हैं.लगभग ८० प्रतिशत जनसंख्‍या आजीविका के लिए मुख्‍य रूप से खेती-बाड़ी पर निर्भर है।‘

त्योहार--का पांबलांग-नोंगक्रेम’ ,शाद सुक मिनसीम, बेहदीनखलम जेंतिया तथा वांगला प्रमुख त्योहार हैं.

आप भी आनंद ले सकते हैं इन खेलों का-Water Sports,Trekking,Archery,River Canyoning, Golf.

मुख्य पर्यटन स्थल-

A-ख़ासी पहाड़ी पर मुख्य पर्यटन स्थल हैं-
शिलॉंग

1-शिलॉंग-:[समुद्र तल से 1496 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह असम को काट कर बनाया गया है ]शिलॉंग चोटी, वार्ड लेक, लेडी हैदरी पार्क, संग्रहालय,पोलो ग्राउंड, मिनी चिडियाघर, एलीफेंट जलप्रपात,कैथोलिक, केथेड्रल, आर्चरी और एंगलीकेन सिमेंटरी और चर्च.
यहां का गोल्‍फ कोर्स देश के बेहतरीन गोल्‍फ कोर्सों में से एक हैं.यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है.
2-सोहरा
चेरापूंजी[आधिकारिक नाम-सोहरा]:--शिलॉन्‍ग से 56 किलो मीटर की दूरी चेरापूंजी है.इसे अब 'सोहरा ' कहा जाता है.विश्व के सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में विश्व का पहला वर्षा संग्रहालय बनाने की भी योजना है.
चेरापूंजी अपनी भारी बारिश की वजह से ही गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज था लेकिन अब यह इलाका जलवायु परिवर्तन की चपेट में है।मौसम विभाग के एक अधिकारी डी.के.संगमा बताते हैं कि लगातार भारी बारिश की वजह से इलाके में लाइम स्टोन यानी चूना पत्थर की चट्टानें नंगी हो गई हैं. उन पर कोई पौधा तो उग नहीं सकता. नतीजतन इलाके से हरियाली तेजी से खत्म हो रही है.बारिश पहले के मुकाबले लगभग आधी हो गई है.
विडंबना ही है कि स्थानीय लोगों को अब पीने का पानी खरीदना पड़ता है. एक बाल्टी पानी के लिए छह से सात रूपए देने पड़ते हैं.क्या कोपेनहेगेन सम्मेलन से इस सूखते कस्बे की प्यास बुझाने की कोई राह निकलेगी, इस सवाल का जवाब तो बाद में मिलेगा. लेकिन तब तक शायद यह कस्बा पानी की एक-एक बूंद का मोहताज हो जाएगा.
[साभार -रिपोर्ट: प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता-december,2009]
पर्यटन स्थल-:माकडॉक / डिमपेप घाटी का दृश्‍य,सोहरा बाजार और रामकृष्‍ण का मंदिर, संग्रहालय, नोखालीकाई जल प्रापत, प्रथम प्री साइबेरियन चर्च, वेल्‍श मिशनरियों की दरगाहें, एंगलिकन सिमेंटरी, इको पार्क डबल डेकर रुट ब्रीज़, चेरापूंजी मौसम विज्ञान वेधशाला.
Umiam Lake
3-Other attractions-Smit,Mawphlang,Mawphlang Sacred Forest[Location: East Khasi Hills District ],Nongkhnum Island,Laitkynsew, Umiam Lake ,Lum Sohpetbneng,Diengiei Peak,Dwarksuid,
Jakrem Hot Spring,Ranikor,Mawlynnong Village[cleanest village in India.]

B-गारो पहाड़ी पर पर्यटन स्थल -:
Tetengkol
Tura,Tura Peak,Nokrek Biosphere,Chibragre,Pelga Falls,
Rongbang Dare,Sasatgre Village,Bhaitbari,Rangapani,Williamnagar,Rongrenggiri,Sisobibra,Adokgre,Naka-Chikong,
Resubelpara,Baghmara,Baghmara Reserve Forest,Nengkong,Siju,Balpakram,Imilchang Dare,
Emangre,Dombeware.

C-जैंतिया पहाड़ी पर मुख्य पर्यटन स्थल हैं-
Jowai,Nartiang,Nartiang Monoliths,Durga Temple at Nartiang,Khim Moo Sniang[pig shaped rock],Umhang Lake,Syntu Ksiar[picnic spot],Stone Bridge at Thlumuwi,Muwi Waterfalls,Dawki,Iawmusiang[largest Jaintia market ],Ruparsor bathing ghat,U Lum Sunaraja[deep lake believed by the locals to be the spot where old and aged elephants go to die by plunging themselves into the deep pool],Umlawan Cave ,Lady of good Health Shrine ,Borghat Temple ,Jarain Pitcher Plant Lake,Krang Suri Falls ,Ialong Park,Tyrshi Falls,Iooksi (Kupli) Park,'यू कियांग नोंगा बा 'स्मारक.
यू कियांग नोंगा बा स्मारक
'यू कियांग नोंगा बा 'शहीद स्मारक है.जिसे वीर शहीद 'यू कियांग नोंगा बा'की याद में बनवाया गया था.
'तोगान संगमा,यू तिरोत गाओ,यू कियांग नोंगाबा -'राज्य के इन तीन वीर शहीदों के नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखे गये हैं.
जानते हैं इसी राज्य के शहीद 'यू कियांग नोंगा बा'के बारे में -

यू कियांग नोंगा बा ने १८५७ में अंग्रेजों के खिलाफ सिपाही विद्रोह में मेघालय के आदिवासियों का नेतृत्व किया था.
राजा राजेंद्र सिंह जयन्तीयापुर के राजा थे,ब्रिटिश सरकार ने धोके से उनका मैदानी राज्य हथिया लिया था.और उन्हे पहाड़ी इलाक़े का प्रशसन देने का विकल्प रखा जिसे राजा ने ठुकरा दिया.
१८३५ से १८५३ तक जैसे तैसे सब चलता रहा लेकिन जब १८६० में अँग्रेज़ी हुकूमत ने निवासीओं पर गृह कर लगा दिए तब उनके सब्र का बाँध टूट गया और विरोध की आवाज़ें गूंजने लगीं.उसी साल जब गृह कर के साथ साथ आयकर भी लगा दिया गया और यह भी अफवाहें घूमने लगी की पॅयन और सुपारी की बिक्री पर भी सरकार टेक्स लगाने जा रही है तब स्थानीय लोगों ने गुट बनाए और विद्रोह के आयोजन का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया युवक यू कियांग नोंगा बा ने !
१८६२ में उठी क्रांति की लहरें इतनी तेज़ थी कि सात रेजिमेंटों और सैनिकों की टुकड़ी इनके विद्रोह को दबाने के लिए लगवाई गयी.यू कियांग नोंगा बा बेहद चतुर था वा अपना सभी कार्य बहुत सफाई से करता था जिस से वह काफ़ी समय तक गिरफ्तारी से बचता रहा.यहाँ तक की ब्रिटिश गुप्तचर भी परेशान हो गये थे.मगर उसकी पहचान ना पा सके.दूसरा विद्रोह ३ सप्ताह चला और उस में बहुत से आदिवासी मारे गये.
३० दिसंबर ,१८६२ में यू कियोंग को धोखे से पकड़ लिया गया और सरे आम फाँसी दी गयी.यू कियांग ने फाँसी लगने से पहले साफ शब्दों में लोगों से कहा था कि फाँसी लगने के बाद रस्सी पर मेरा सिर अगर पूर्व की तरफ लटकता है तो यह देश १०० साल के भीतर आज़ाद हो जाएगा.और अगर यह पश्चिम की तरफ होता है तो यह देश अँग्रेज़ों से कभी आज़ाद नहीं हो पाएगा.
कितने सच उनके शब्द थे, उनके चेहरे के लिए पूर्व की ओर हो गया और भारत के एक सौ साल के भीतर मुक्त हो गया!
ऐसे वीर शहीदों को कभी भूलना नहीं चाहीए जिनके बलिदान से ही आज हम खुली हवा में जी रहे हैं साथ ही अपनी इस आज़ादी को बचाए रखना और देश को एकता में बाँधे रखना भी बेहद आवश्यक है.
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कैसे जाएँ-
1- इस राज्य का एक मात्र हवाई अड्डा उमरोई में हैं.
M.T.C. Bus Service from Shillong to Umroi Airport.Another convenient airport, the Gopinath Bordoloi Airport in Guwahati (128 km from Shillong) is connected to rest of India with regular flights.
2-Helicopter Service

Helicopter is available from Guwahati to Tura and Tura to Shillong on Monday/Tuesday/Wednesday/Friday and from Guwahati to Shillong and Shillong to Guwahati daily except on Sunday.

2-by Rail-The nearest railway station is Guwahati. It is 104 km from Shillong and very well connected with all major cities of India.
3-By Road-
National Highway 40, an all-weather road, connects Shillong with Guwahati. State's Transport Corporation and private transport operators have services to various places in Meghalaya and to neighbouring states.
पर्यटकों के रहने के लिए प्राइवेट ही नहीं सरकार के गेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं.
अधिक जानकारी के लिए अधिकारिक वेब साइट देखीए-
http://meghalaya.nic.in/

http://megtourism.gov.in/touroperators.html
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भारत का राष्ट्रपति भवन और मुगल गार्डन

'नव वर्ष की शुभकामनाएँ'
राष्ट्रपति भवन

दिल्ली -
भारत का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र.१४८३ वर्ग किलोमीटर (५७२ वर्ग मील) में फैली दिल्ली भारत का दूसरा तथा दुनिया का आठवां सबसे बड़ा महानगर है.
अतिप्राचीन नगर...महाभारत काल से ही दिल्‍ली[इन्द्रप्रस्थ] का विशेष उल्‍लेख रहा है.
18वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध में दिल्‍ली में अंग्रेजी शासन की स्‍थापना हुई.
1911 में कोलकाता से राजधानी दिल्‍ली स्‍थानांतरित होने पर यह शहर सभी तरह की गतिविधियों का केंद्र बन गया. 1956 में इसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्‍त हुआ.राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली कुल नौ ज़िलों में बँटा हुआ है.
इस की रोजाना की देखभाल के लिए दो हज़ार कर्मचारियोंकी ज़रूरत होती है.
बहुत ही संक्षेप में दिल्ली के बारे में जानने के बाद आईए जाने यहाँ स्थित राष्ट्रपति भवन के बारे में -:

ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को, जो कि नगर योजना के प्रमुख सदस्य थे, इस इमारत स्थल की अभिकल्पना का कार्यभार सौंपा gayaa tha. इसे एडविन लैंडसीर ल्‍यूटियन ने hi डिजाइन किया था..राष्ट्रपति भवन भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी आवास hai .yah नई दिल्‍ली में राजपथ के पश्चिमी सिरे पर स्थित एक प्रभावशाली भवन है, जिसका दूसरा सिरा इंडिया गेट पर है.

यह भवन भारत में ब्रिटिश राज के स्‍थायित्‍व की पुष्टि करने के लिए निर्मित किया गया था .इसे और इसके आस पास के इलाके को ''पत्‍थर के प्रासाद'' के रूप में तैयार किया गया था.इसे पूरा करने में 17 वर्ष लगे![और सत्रह वर्ष ही ब्रिटिश राज्य में रह पाया!!]अपने निर्माण पूर्ण होने के अठ्ठारहवें वर्ष ही,भारत स्वतंत्र हो गया था! १९४७ में, भारतीय स्वतंत्रता के बाद, तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल वहां रहते रहे.
सन १९५० तक इसे वाइसरॉय हाउस बोला जाता था.भारतीय गणतंत्रता[१९५०] के बाद से यहां भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति रहने लगे, और इसका नाम बदल कर राष्ट्रपति भवन हो गया.
*भारत का राष्ट्रपति भवन, विश्व के किसी भी राष्ट्रपति आवास से कहीं बड़ा है.
*इस भवन के निर्माण में लोहे का नगण्य प्रयोग हुआ है.
*इस भवन में 4 तल और ३४० कक्ष हैं.
*सतही क्षेत्र-200,000 वर्ग फीट.
*इसे बनाने में 700 मिलियन ईंटों तथा 3 मिलियन घन फीट पत्‍थरों का इस्‍तेमाल हुआ!
*यह भवन mukhyth दो रंगों के पत्‍थरों से निर्मित है.
लाल पत्थर और सफेद पत्थर धोलपुर से सफेद पत्थर संगमरमर जोधपुर से, काला संगमरमर पटियाला से पीला संगमरमर जैसलमेर से ,चाकलेटी संगमरमर विदेश से और हरा संगमरमर बड़ौदा से मंगवाया था.
*फर्नीचर के लिए सागोन, शीशम, चंदन और देवदार आदि लकडिय़ां भी kashmir तथा देश के अन्य भागों से मंगवाई थी.
*मुगल तथा क्‍लासिकल यूरोपीय शैली की वास्‍तुकला दिखाई देती है.
*दूर से ही दिखाई देने वाला गुंबद सांची के महान स्‍तूप के पैटर्न पर बनाया गया है.
*खम्‍भों की लंबी कतार इस भवन की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती है.
**दरबार हॉल, अशोक हॉल, मार्बल हॉल, उत्तरी अतिथि कक्ष, नालंदा suit की भव्यता देखते ही बनती है.
*बाग में बने नाग,स्तंभों पर बने सजे धजे हाथी,और छोटे खम्भों पर लगे हुए बैठे हुएसिंह भारतीय शैली के नमूने हैं .
*यह भवन मुख्यतः १९२९ में, बाकी नई दिल्ली के साथ ही, पूर्ण हो गया था, और इसका आधिकारिक उद्घाटन सन १९३१ में हुआ था!इस भवन पर उन दिनों तक एक करोड़ 45 लाख रुपए खर्च हुए थे!
*भवन के ठीक सामने से एक मार्ग नारंगी बदरपुर बजरी से ढंका हुआ सीधा लोहे के मुख्य द्वार रूपी फाटक तक जाता है, जो कि उस फाटक से होता हुआ, दोनो सचिवालयों, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के बीच से हो कर लाल दीवारों के बीच से नीचे उतरता है, और विजय चौक से होता हुआ, राजपथ कहलाता है. यह मार्ग इंडिया गेट तक जाता है.
जयपुर स्तंभ**भवन के सामने ही जयपुर स्तंभ खड़ा है, जिसके शिखर पर तत्कालीन जयपुर के महाराजा द्वारा भारत सरकार को शुभकामना स्वरूप भेजा हुआ कमल पर सितारा लगा है.
**भवन में एक विभाग घोड़ों का भी है.जिससे अनेक प्रकार के घोड़े है.
**राष्‍ट्रपति निवास के अंदर एक शानदार मुगल गार्डन है.
आईए देखें राष्ट्रपति भवन की यह वीडियो-:

http://www.youtube.com/watch?v=CD-gE73xiy8

*****मुख्य आकर्षण है -:मुगल गार्डन [राष्ट्रपति भवन,नई दिल्ली]



यह मुगल गार्डन लगभग 13 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है और यह ब्रिटिश गार्डन की डिजाइन के साथ औपचारिक मुगल शैली का एक मिश्रण बताया जाता है.
''पीस द रजि‍स्‍टेंस'' मुगल गार्डन के सबसे बड़े हिस्से को कहते हैं.२०० मीटर लंबे और १७० मीटर जुड़े इस बाग में उत्तर और दक्षिण में टेरिस गार्डन हैं ,पश्चिम में टेनिस कोर्ट तथा लॉन्‍ग गार्डन हैं.

इसके अलावा भी यहां कई छोटे-बड़े बगीचे हैं जैसे पर्ल (मोती) गार्डन, बटरफ्लाय (तितली) गार्डन और सकरुलर (वृताकार) गार्डन. बटरफ्लाय गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं.यह माना जाता है कि तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है.
मुगल गार्डन में अनेक प्रकार के फूल देखे जा सकते हैं जिसमें गुलाब, गेंदा, स्वीट विलियम आदि शामिल हैं.इस बाग में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं.

उत्तर से दक्षिण से दो नहरें और दो नहरें पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं जैसा की आप ने पहेली के मुख्य चित्र में तस्वीर देखी थी. इस तरह यह नहरें इस उद्यान को चौकोर हिस्‍सों में बांटती हैं. इन नहरों के मिलन बिंदु पर कमल के आकार के ६ फव्वारे बने हुए हैं जिनसे पार्क की सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं.

१२ फीट तक उठ कर गिरने वाले इन फव्वारों के पास ही लकड़ी के फटटे से हैं जिनपर चिड़ियों के लिए दाना डाला जाता है. बहुत ही सुंदर नज़ारा होता है नहरों की धीमी गति और फवारों का उठना -गिरना ..साथ ही पक्षियों का कलरव!
विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखते ही बनती है. कहते हैं की सिर्फ़ मैसूर का वृंदावन गार्डेन ही इसके मुक़ाबले का एक मात्र बाग़ है. लेडी हार्डिंग ने श्रीनगर में निशात और शालीमार बाग देखे थे, जो उन्हें बहुत भाये बस उसी को ध्यान मे रख कर उन्होने इस बाग की परिकल्पना की थी.

भारत के अब तक जितने भी राष्ट्रपति इस भवन में निवास करते आए हैं, उनके मुताबिक इसमें कुछ न कुछ बदलाव जरूर हुए हैं.

प्रथम राष्ट्रपति, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने इस में कोई बदलाव नहीं कराया लेकिन उन्होंने इस बाग को जनता के लिए खोलने की बात की, उन्हीं की वजह से प्रति वर्ष मध्य-फरवरी से मध्य-मार्च तक यह बाग़ आम जनता के लिए खोला जाता है.

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कब जाएँ-

हर वर्ष फरवरी - मार्च के महीने में यहां सोमवार के अलावा सभी दिनों पर सुबह 9.30 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक दर्शक आ सकते हैं.

यहां प्रवेश की जानकारी जनता को विभिन्‍न प्रचार माध्‍यमों से दी जाती है. इस उद्यान में आने और जाने के रास्‍तों को राष्‍ट्रपति आवास के गेट नंबर 35 से विनियमित किया जाता है, जो चर्च रोड के पश्चिमी सिरे पर नॉर्थ एवेन्‍यू के पास स्थित है.

यहाँ फोटोग्राफी करना मना है.

[कृपया जाने से पहले समय आदि की जानकारी एक बार और पुष्ट कर लें]

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चलते चलते-
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम गुलाब के फूलों को बहुत चाहते हैं . जब वे राष्ट्रपति भवन आये ही थे, तब उनके विशेष कार्यकारी अधिकारी श्री ब्रह्म सिंह ने उन्हें मुगल मार्डन में खिले एक खूबसूरत गुलाब की जानकारी दी , डॉ. कलाम ने उत्सुकता से उस बेहद सुंदर गुलाब को देखने तुरंत चल दिये.

उस गुलाब के पास पहुँचने पर श्री ब्रह्म सिंह उसकी विशेषताओं से अवगत कराते रहे . कलाम साहब फूल की ओर झुके और उसे सूंघ कर कुछ निराश से हुए और बोले, इतना खूबसूरत नहीं है. खुशबू के बिना गुलाब खूबसूरत कैसा? देखो ब्रह्मा हमें बाहरी सुंदरता पर मोहित नहीं होना चाहिए . हमें भीतरी खूबसूरती पर ध्यान देना चाहिए और खुशबू आंतरिक सुंदरता है.

श्री ब्रह्म सिंह बताते हैं कि डॉ. कलाम साहब के राष्ट्रपति भवन आने के बाद पहली बार मुगल गार्डन में महकते गुलाबों की बगिया लगी . जब २५ जुलाई को वे विदा हुए तब ५९ किस्म के गुलाब राष्ट्रपति भवन को महका रहे थे . इसके अलावा उन्होंने मुगल गार्डन में औषधीय और आध्यात्मिक पौधों की बगिया भी लगवाई.

राष्ट्रपति भवन के एक कर्मचारी के अनुसार राष्ट्रपति भवन परिसर में १६० तरह के पेड़ लगे हैं और कहा जाता है कि कलाम साहब हर पेड़ से परिचित हैं ।

वहाँ लगे एक विशाल बरगद के पेड़ से वे काफी प्रभावित हैं . उन्होंने उस पर एक कविता भी लिखी है, जिसमें उन्होंने वर्णन किया है कि यह विशाल बरगद कितने मानवों, पशुओं और पक्षियों को सांत्वना देता है.

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