कुछ दिनों पहले गूगल मैप द्वारा मांगी गयी माफ़ी की खबरें सुर्ख थीं.गूगल ने अपने मैप में भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के जिस हिस्से को पडोसी देश चीन का हिस्सा दिखाने की गलती की थी जिस के लिए उसने माफ़ी मांगी थी,वह हिस्सा है..'तवांग '..यह अरुणाचल प्रदेश का एक जिला है और आज चलते हैं इसी क्षेत्र की सैर पर..
भारत ka ek उत्तर पूर्वी राज्य hai अरुणाचल प्रदेश .
अरुणाचल--अर्थ है --उगते हुए सूर्य की भूमि.
-सन् १९७२ ई. तक अरुणाचल नार्थ ईस्ट फ्रोन्डियर एजेन्सी के नाम से जाना जाता था. २०.०१.१९७२ में उसे संघ शासित क्षेत्र की मान्यता मिली.उसके बाद वह अरुणाचल प्रदेश नाम से जाना जाने लगा. २० फरवरी १९८७ म इसे राज्य के रूप में मान्यता मिली। इसकी पहली राजधानी नहरलगन थी, अब ईटानगर बन गया.
यहाँ एक विश्वविद्यालय (राजीव गाँधी विश्वविद्यालय), एक इंजीनियरिंग कॉलेज, सात महाविद्यालय तथा ढेर सारे विद्यालय भी हैं. सियांग, कामंग आदि यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं.
लोगों को तीन सांस्कृतिक विभागों में बाँटा गया है. महायान बौद्ध सम्प्रदाय को अपनाये मोनपास और षेरदुकपेन्स- वे तवांग तथा कामेंग जिले में बसे हैं. उनमें लामा का प्रभाव ज्यादातर दिखाई पडता है. दूसरे विभाग में सूर्य, चन्द्र आदि की पूजा करने वाली आदी, अकाव आदि जनजाति आती है.
तीसरे विभाग नागालैंड के आसपास तिराज जिले में बसने वाले हैं, जो नाक्टेस व बांकोस नाम से जाने जाते हैं.
अरुणाचल प्रदेश के त्योहार दो तरह के होते हैं, एक ईश्वर प्रीति के लिए और दूसरे अच्छी फसल तथा स्वतंत्रता के लिए. लगभग सभी त्योहारों में पशुबलि होती है.
इसका अधिकतर भाग हिमालय से ढका है.हिमालय पर्वतमाला का पूर्वी विस्तार इसे चीन से अलग करता है.
तवांग में स्थित बुमला दर्रा 2006 में 44 वर्षों मे पहली बार व्यापार के लिए खोला गया। दोनों तरफ के व्यापारियों को एक दूसरे के क्षेत्र मे प्रवेश करने की अनुमति दी गई.चीन, म्यानमार, भूटान आदि देशों की सीमा होने के कारण अरुणाचल संरक्षित क्षेत्र है. इस तरह स्वतंत्रता के बाद भी इनर लाइन परमिट की जरूरत पड़ेगी .
63% अरुणाचल वासी 19 प्रमुख जनजातियों और 85 अन्य जनजातियों से संबद्ध हैं. इनमें से अधिकांश या तो तिब्बती-बर्मी या ताई-बर्मी मूल के हैं. बाकी 35 % जनसंख्या आप्रवासियों की है.वन्य उत्पाद अर्थव्यवस्था का सबसे दूसरा सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है.
अरुणाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है.यहाँ orchid फूल भी पाए जाते हैं.हरी भरी घाटियाँ और यहाँ के लोक-गीत संगीत,हस्तशिल्प सभी कुछ मन लुभावना है.
अरुणाचल प्रदेश में महत्वपूर्ण जगहें हैं-
१-तवांग
२-परशुराम कुंद
३-भिस्माक्नगर.
४-मालिनिथन
५-अकाशिगंगा.
६-नामडाफा
७-ईटानगर
८-बोमडिला
इस प्रदेश में १६ जिले हैं.जिनमें से एक जिला है -तवांग-:
तवांग -:
अभी अप्रैल,2009 महीने में ही हमारी माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा जी तवांग के दौरे पर गयीं थीं.
चीन-भारत सीमा पर समुद्र स्तर से 9 हजार फुट की ऊंचाई पर अरुणाचल के ठीक पश्चिम में तवांग जिले के एक और तिब्बत है और दूसरी और भूटान.पश्चिमी कवंग जिले से इस क्षेत्र को सेला श्रंखला अलग करती है.इस क्षेत्र को तवांग नाम १७वि शताब्दी में 'मेरा लामा ' ने दिया था.तवांग जिले का क्षेत्रफल 2085 वर्ग कि.मी. है.
एक और चारों तरफ हरियाली ,बर्फ से ढके पहाड़ और दूसरी तरफ शहर की आधुनिक बनावट और वहां के बाजारों में क्राफ्ट यानी हस्तशिल्प की चीजें किसी का भी मन मोह सकती हैं.
दर्शनीय स्थल -
1-तवांग मठ :-
-तवांग, बौद्ध धर्म के अनुयायिओं के लिए ऐतिहासिक महत्व का शहर है और अपने चार सौ साल पुराने तवांग गोम्पा के लिए प्रसिद्ध है. करीब 400 वर्ष पुराना यह मठ छठे दलाई लामा का जन्म स्थान है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा में बने मठ के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा मठ है. इस मठ के परिसर में 65 भवन हैं. वर्तमान दलाई लामा ने तवांग के रास्ते ही भारत में शरण ली थी.
-यहां महात्मा बुद्ध की आठ मीटर ऊंची स्वर्ण प्रतिमा देखने लायक है. यहाँ के पुस्तकालय में १७ वि शताब्दी के महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी रखे हुए हैं
2-सेला झील –:
तवांग से ऊपर की तरफ जाएँ तो 'सेला पास 'है जो कि समुद्र से १३,७०० फीट की ऊँचाई पर है. तवांग शहर से १७ किलोमीटर दूर यह झील पर्यटकों को स्वर्गीय आनंद की अनुभूति देती है इस लिए इसे paradise lake भी कहा जाता है.इस का नाम Pankang Teng Tso (P.T. Tso ) lake भी है.और सेला मार्ग में पड़ने के कारण कई लोग इसे सेला झील भी कहते हैं.[Sela lake picture by Brijesh and sela pass by Debajeet]
3-एक झील और है जिस के पास कोयला फिल्म की शूटिंग हुई थी तब से उस झील का नाम ही माधुरी झील पड़ गया है.
4-इस के अलावा संगत्सर झील,बंग्गाचंग झील भी देखने लायक हैं.
5-जसवंत गढ़-
pictures by Brijesh. | |
सन १९६२ में भारत -चीन की लड़ाई में गढ़वाल राइफल के बहादुर जवान जसवंत सिंह रावत, १०,००० फीट पर, अकेले ३ दिन तक, चीनी सेना को जवाब देते रहे थे. उन्हीं के नाम से यहीं पास में एक कस्बे का जसवंत गढ़ नाम रखा है. उनकी वीरता से चीनी कमांडर इतना प्रभवित हुआ था की उनके कटे सर को ब्रास के तमगे के साथ ससम्मान भारत लौटा दिया था. कहते हैं आज भी जसवंत सिंह की आत्मा वहां रहती है, सालों से रोजाना उनके लिए सेना के जवान खाना बनाते हैं, यूनीफोर्म इस्त्री कर के रखे जाते हैं.
6-तवांग वार मेमोरियल:-
४० फीट ऊँचा, तवांग घाटी की ओर देखता हुआ स्मारक सन १९६२ में भारत -चीन की लड़ाई में शहीद हुए वीर जवानों की याद में १९९९ में बनवाया गया है. पूर्वी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल एच.आर.एस.कलकत ने यह स्मारक ,देश को समर्पित करते हुए कहा १९६२ में २४२० भारतीय जांबाज़ सैनिकों ने ३१ दिन तक इस स्थान पर चीनी सैनिकों के हमलों का जवाब देते हुये, देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया. उन्होंने बताया -विपरीत परिस्थितियों में जीरो से नीचे तापमान में सूती यूनीफोर्म और सिर्फ ५० राउंड की पुरानी बंदूकों के साथ ही इन जवानों ने यह लडाई लड़ी. जहाँ एक आम इंसान के लिए इतनी ठण्ड में सूती कपडों में रहने की सोचना भी मुश्किल है!
-४० फीट ऊँचा यह स्तूप के आकार की संरचना है ,स्थानीय भाषा में इसे 'नामग्याल छोर्तन'Namgyal Chortan’ कहते हैं और इस पर २४२० शहीदों के नाम सुनहरे अक्षरों में ३२ काली granite की प्लेटों पर अंकित है.इस इमारत में दो हॉल हैं.एक में शहीदों के सामान को सुरक्षित रखा गया है.और दूसरे में प्रकाश और ध्वनि शो के ज़रिये वीर जवानों की कहानी बताई जाती है.
इस स्मारक पर तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा का आशीर्वाद है उनके द्वारा दी गयीं दो मूर्तियाँ -[एक भगवान अव्लोकिटेश्वर और दूसरी भगवान बुद्ध की ]यहाँ वार मेमोरियल के स्तूप में स्थापित हैं.
उन सभी शहीदों को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि.
तवांग वार स्मारक के आधार में लिखा है-
'How can man die better than facing fearful odds, for the ashes of his father and the temples of his Gods."
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Dekheeye Tawang ki yah khoobsurat video clip-
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Few More Pictures Of Tawang District by Brijesh-
Click Pictures to enlarge |
तवांग भारत का अभिन्न हिस्सा है. जून २००८ में एनबीटी से खास बातचीत में ,तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने पहली बार कहा tha कि तवांग भारत का है.
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कब जाएँ-अप्रैल से अक्टूबर का समय अनुकूल है.
कैसे जाएँ---
नजदीकी रेलवे स्टेशन-रंगपारा.[आसाम राज्य]
नजदीकी हवाई अड्डा -तेजपुर [आसाम राज्य]
सड़क मार्ग से-बस बमडीला से सुबह ५:३० चलती है शाम ४ बजे पहुंचती है.
सभी बडे शहरों से से तवांग जाने के लिए सबसे पहले हवाई जहाज या ट्रेन से गुवाहाटी पहुंचना होगा और फिर गुवाहाटी और तेजपुर से होते हुए तवांग आ सकते हैं.
तेज़पुर से तवांग जाने के लिए हेलोकोप्टर की सेवा भी ले सकते हैं .
References-
http://arunachalpradesh.nic.in/tourism.htm
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