इसी राज्य के एक जिले कबीरधाम [पुराना नाम कवर्धा ]में आज आप को लिए चलते हैं जो रायपुर से करीब 100 किमी दूर है.
यह स्थान राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह जी का गृह जिला भी है.पिछड़ा समझे जाने वाले इस राज्य ने कम समय में अपनी मजबूत अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाई है.यहाँ पर्यटक भारी संख्या में घूमने आते हैं.
कवर्धा शहर सकरी नदी के तट पर बसा हुआ है,जहाँ नागवंशी और हेयवंशी शासकों ने राज्य किया था और अनेक मन्दिर और किले बनवाए थे. यहाँ आने वाले पर्यटक सतपुड़ा की पहाड़ियों की मैकाल पर्वत श्रृंखला पर ट्रेक्किंग आदि का आनंद ले सकते हैं.
हर साल मार्च के महीने में भोरमदेव महोत्सव का आयोजन बहुत ही धूमधाम से किया जाता है.इसीलिये इस स्थान पर जाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय वही है,जिस से आप स्थानीय लोक कला और संस्कृति को भी करीब से जान सकें.
अब बताते हैं आप को कबीरधाम जिले के छपरी नामक गांव के पास , धरातल से 30 मीटर उंचाई पर स्थित इस मंदिर के बारे में ,जिसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहते हैं. सतपुड़ा पहाड़ियों के बीच हरे भरे जंगलों में तालाब के किनारे बने इस मंदिर स्थापत्य शैली चंदेल शैली की है और निर्माण योजना की विषय वस्तु खजुराहो और सूर्य मंदिर के समान है इसीलिये भी इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहते हैं .
भगवान शिव की आराधना भोरमदेव के रूप में इस मंदिर में हज़ार सालों से आज भी जा रही है. भारत के प्राचीनतम कुछ मंदिरों में यह मंदिर भी है जहाँ अनवरत उसी प्राचीन स्थान पर पूजा अर्चना होती आ रही है.इस कारण भी इसकी विशेष महत्ता है.
काले पत्थर में निर्मित मंदिर के तीन प्रवेश द्वार हैं. इस के 2.80X 2.80 मीटर फीट माप वाले वर्गाकार गर्भ गृह में काले पत्थर का शिवलिंग है जिसके के ऊपर सहस्त्र दल कमल जैसा बना हुआ है.
श्री अनिल पुसदकर जी ने इसी मंदिर पर लिखे अपने एक लेख में बताया है कि दुर्लभ शिल्पकला और नागर शैली कलाकृतियों का ये अनूठा और सुन्दर उदाहारण है। पूर्वाभिमुख मंदिर के तीन प्रवेश द्वार है। तीनों द्वार पर तीन अर्ध्द मण्डप और बीच में वर्गाकार मण्डप अंत में गर्भगृह निर्मित है। द्वार के दोनों ओर शिव की त्रिभंग मूर्तियां सुशोभित है। ललाट बिंब पर तप मुद्रा में द्विभुजीय नागराज जिसके शिरोभाग में पंच फन है, आसीन है। प्रवेश द्वार शाखा लता बेलों से अंलंकृत है। बीच का वर्गाकार मण्डप 16 खंभों पर टिका है। स्तंभों की चौकी उल्टे विकसित कमल के समान है। जिस पर बने कीचक याने भारवाहक छत के भार को थामे हुए है। मण्डप की छत पर सहस्त्र दल कमल देखने लायक है। |
मंदिर के परिसर में अन्य देवी देवताओं की पूजा स्थल भी बने हुए हैं.मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीन समानांतर क्रम में विभिन्न प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं .नागवंशी शासकों के समय यहां सभी धर्मो को समान महत्व प्राप्त था इस का उदहारण है कि दीवारों पर शिव की विविध लीलाओं,विष्णु के अवतारों ,अन्य कई देवी देवताओं की विभिन्न प्रतिमाएं, गोवर्धन पर्वत उठाए श्रीकृष्ण के अलावा जैन तीर्थकरों का भी अंकन है.
काम कलाओं को प्रदर्शित करते नायक-नायिकाओं के अलावा ,पशुओं विशेष रूप से हाथी और सिंह की प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं.
अपने भव्य और स्वर्णिम काल को दर्शाता यह मंदिर एवं यह स्थल बेहद रमणीक है.
भोरमदेव मंदिर से थोड़ी दूरी पर चौरा ग्राम के निकट शिव मंदिर 'मडवा महल या दूल्हादेव मंदिर' और एक अन्य शिव मंदिर 'छेरकी महल' भी दर्शनीय हैं.
रायपुर तक आप पहुंचे ही हैं तब सड़क मार्ग से बस,टेक्सी या निजी वहां से यहाँ पहुँच सकते हैं.नजदीकी रेलवे और हवाई अड्डा रायपुर ही है.
Video of this temple -:
17 comments:
आपने हमें इतनी सुन्दर जगह घुमाया , इसके लिए शुक्रिया !! नाम तो पहले भी सुना था पर आपने सब जानकारी एक जगह देकर दिल खुस कर दिया
nice
पहली बार सुना ,अच्छा लेख
अजय कुमार ने आपकी पोस्ट " छत्तीसगढ़ का खजुराहो " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
पहली बार सुना ,
अच्छा लेख
इसके बारे में तो मुझे भी पहली बार पता चला।
देश में इतने सुन्दर और ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं किन्तु हमे जानकारी नहीं है। जानकारी देने के लिये साधुवाद।
मैने इस लेख की लिंक हिन्दी विकिपिडिया के 'कबीरधाम जिला' नामक लेख पर डाल दी है।
छत्तीसगढ़ के खजुराहो के बारे मे जानकर काफी अच्छा लगा. आपका यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है.
कहाँ बैठे बैठे आप इतनी खोज कर लेती हैं आश्चर्यजनक !
इतनी सुन्दर जानकार के लिए आभार
हम तो यह स्थल देख आये हैं लेकिन इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिये आपको धन्यवद देना चाहते हैं । शरद कोकास - दुर्ग
संपूर्ण जानकारी, धन्यवाद.
नमस्ते जी
आपकी पोस्ट बहुत कुछ कहती है भारत तो संस्कृतियों क़े खजानों क़ा देश है संस्कृतियों को संजोये रखना हमारा कर्तब्य है अपने जो यह भारतीय धरोहरों की जानकारी देना शुरू किया है वास्तव में आप देश क़ा एक बहुत बड़ा कार्य कर रहे है.
इस ऐतिहासिक छत्तीसगढ़ क़े खजुराहो की जानकारी देने क़े लिए धन्यवाद.
aabhar aapka chhattisgarh par aapki is post ke liye.
यह मंदिर मिथुन मूर्तियों और प्रसििद्ध के कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है. शैलीगत दृष्टि से यह मालवा की भूमिज शैली का छत्तीसगढ़ी प्रतिनिधि है, जिसका छत्तीसगढ़ में दूसरा दुर्लभ नमूना आरंग का भाण्ड देवल है. भोरमदेव-कवर्धा अंचल वल्लभाचार्य जी से संबंधित माने जाने वाले हरमू या हरमो और इन दिनों बोड़ला के पास सिली पचराही में किए जा रहे उत्खनन के कारण चर्चा में है.
बड़ी वृहद् एवं सुन्दर जानकारी दी है आपने. भोरमदेव के चारों तरफ की प्राकृतिक छठा देखते ही बनती है.
Alpanaji,
Ghar baithey-2 aapkey aalekh key madhyam se chatisgarh ghoom liye .
bahaut-2 Dhanyawad.
bahut hi bhariya jankari h ye to hum yaha aye to jarur dekhenge ise thanks a lot
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