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कोच्चि (कोचीन) और सेंट फ्रांसिस चर्च

देवताओं के अपने देश कहे जाने वाले 'केरल 'राज्य के बारे में हम आप को पहले की पोस्ट में बता ही चुके हैं.
आज बात करते हैं यहाँ के राज्य कोच्ची के बारे में .केरल तीन भौगोलिक व सांस्कृतिक इकाईयों में बंटा हुआ है,
उत्तर में मलाबार, मध्य में कोचीन और दक्षिण में त्रावणकोर. कोचीन इस प्रदेश का सबसे अधिक विविधवर्णी और सब से बड़ा नगर है.

कोचीन में भारतीय नौसेना एक केंद्र है और एक नौसैनिक संग्रहालय भी है.यह ऐतिहासिक नगर बंदरगाह के कारण एक वाणिज्यिक नगरी के रूप में भी मशहूर है.
कोच्ची शहर के नीचे की तरफ कोचीनफोर्ट है.भारत में यहूदियों की सबसे पुरानी बस्ती इसी कोचीनफोर्ट में है .१५६८ में बना यहूदियों का मंदिर याने सिनेगॉग भी यहीं है.अब यहाँ बहुत ही कम यहूदी परिवार बचे हैं.[२०-३०?]अधिकतर यहाँ से पलायन कर गए हैं. पा.ना. सुब्रमणियन जी की लिखी ''कोचीन के यहूदी 'पोस्ट भी यहाँ पढ़ें.
Synagogue in Kochi (Cochin)

Jew town in Old Kochi (Cochin)

विलिंग्डन द्वीप
विलिंग्डन द्वीप मध्य भाग में है.यह द्वीप वेम्बानाड झील पर [मानव निर्मित आईलेंड ]है और १९३६ में आधुनिक कोचीन पोर्ट के विकास के दौरान बनाया गया था।इस द्वीप का नाम लोर्ड विलिंग्डन के नाम पर रखा गया था क्योंकि इसके प्रोजेक्ट की शुरुआत उन्होंने ही की थी .वर्तमान में यह पूरा द्वीप कोचीन पार्ट ट्रस्ट और भारतीय नौसेना के अधीन है.
ऊपर की तरफ अर्नाकुलम नगर बाद में बना और विकसित हुआ है.

डच पेलेस
कोचिंफोर्ट से लगा हुआ है कोचीन के राजा का १७ वीं शताब्दी में बना पुराना महल .इसे डच पेलेस कहते हैं .
इस काष्ठप्रासाद के मूल शिल्पी पुर्तगाली थे लेकिन सौ साल बाद डच कारीगरों ने उसका पुनर्निर्माण किया.
इस महल में रामायण और महाभारत की कथाओं पर आधारित अनेक सुंदर भित्तिचित्र यहां का प्रमुख आकर्षण हैं.


कोचीन के अन्य मुख्य आकर्षण हैं .

१-सेंट फ्रांसिस चर्च [१५०३]संभवत: दक्षिण भारत का सबसे पुराना चर्च माना जाता है.
२- सांताक्रूज बासिल्का[1505 ईस्वी]यहाँ ईसा मसीह को सूली दिए जाने के प्रसंग के तेरह चित्र प्रदर्शित हैं.पुनर्निर्माण १९०५ में किया गया है.

पुराने शहर की तंग गालियों से गुजरते हुए आप पुर्तगाली शैली में बने मकान देख सकते हैं.

३--'कालडी' याने आदि शंकराचार्य का जन्मस्थान! कोचीन से लगभग पैंतालीस किलोमीटर की दूरी पर उत्तरपूर्व में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है .
इस स्थान की विडियो देखें -http://www.youtube.com/watch?v=YVJ3oH6GmkM

कालडी में पेरियार नदी के किनारे एक आधुनिक मंदिर,८ मंजिला शंकराचार्य कीर्ति स्तंभ और एक संस्कृत विश्वविद्यालय भी है.

यही पास में ही कोचीन का नया अंतर्राष्ट्रीय विमानतल भी बना हुआ है.

इसके अतिरिक्त वेगा लेंड [बच्चों -बड़ों के लिए खेल पार्क ],अथिरापल्ली जल प्रपात, कोच्ची फोर्ट बीच,वास्को हाउस,बोल्घाटी पेलेस [यह अब पर्यटन विभाग के द्वारा होटल में बदल दिया गया है],हिल पेलेस -कोचीन से १६ किलोमीटर दूर त्रिपुनिथुरा में स्थित है. कोच्ची के राजा द्वारा १९वि शताब्दी में बनवाया गया , अब यह राजा के अस्त्रों आदि और उत्खनन में मिली पुरातन वस्तुओं का संग्रहालय है],पल्लिपोर्ट पेलेस ,मंगलावानाम बर्ड अभ्यारण ,केरल museum ,नेहरु स्टेडियम आदि.

कोचीन में आप नौका विहार का आनन्द लिजीये और इंडिया foundation में हर शाम 'आर्ट केरला' द्वारा आयोजित पारंपरिक कथकली नृत्य भी देखे जा सकते हैं.

कोचीन पहुँच ही गए हैं तो लक्षद्वीप [ http://www.lakshadweep.nic.in/]भी जा सकते हैं जो यहाँ तट से २२० -४४० km दूर स्थिति है .
कोचीन जाने के लिए सभी राज्यों से सड़क,वायु,और रेल मार्ग सुविधाएँ हैं.कोचीन का हवाई अड्डा केरल का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है.

अब इन्हीं मुख्य आकर्षणों में से एक के बारे में थोडा विस्तार से जानते हैं.-:
सेंट फ्रांसिस चर्च ,कोच्चि (कोचीन)
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वास्को डी गामा १४९८ में समुद्र के रास्ते यूरोप से [कालीकट]भारत आये थे.उन्हीं का अनुसरण करते हुए दो पुर्तगाली यहाँ पहुंचे और कोचीन के राजा की अनुमति से उन्होंने यहाँ एक काष्ठ का किला बनाया और उसमें एक चर्च भी बनाया. एक पुर्तगाली ने १५०६ में इस लकड़ी के महल और चर्च को पत्थर से पुनर्निर्मित करवाया गया.१५१६ पुनर्निर्माण का कार्य संपन्न हुआ और इसे सेंट अन्थोनी[पुर्तगाली] को समर्पित किया गया.
चर्च का भीतरी भाग
१६६३ में डच लोगों ने इस स्थान पर कब्ज़ा किया वे protestant ईसाई थे उन्होंने सभी चर्चों को नष्ट करा दिया सिर्फ इस एक को छोड़ दिया और इस का पुनर्निर्माण करा कर इसे सरकारी चर्च बना दिया.१८०४ में यह चर्च अन्ग्लिकान्स के आधीन आ गया उन्होंने इस का नाम बदल कर सेंट फ्रांसिस रख दिया.[ज्ञात हो कि पुर्तगाली रोमन केथोलिक ईसाई थे. ]

सन् १५२४ में वास्को डी गामा तीसरी बार कोचीन आये थे,उस समय उनकी मृत्यु यहीं हो गयी थी.उनका शव का इसी चर्च में अंतिम संस्कार किया गया था.१४ साल बाद उनके शव को पुर्तगाली यहाँ से निकाल कर लिस्बन ले गए थे.उनकी कब्रगाह का पत्थर आज भी यहाँ देखा जा सकता है.
वास्को डी गामा
वास्को डी गामा की कब्र का पत्थर


सन् १९२३ में इस चर्च को पुरातत्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित इमारत घोषित किया गया.
पर्यटक बुधवार के अलावा सभी दिन यहाँ जा सकते हैं.
अंतर्जाल पर इस चर्च से संबधित यह सारी जानकारी हिंदी में पहली बार अनुवादित करके यहाँ संग्रहित ki गयी है।[Pictures from Google images.]

Reference-Official site of Kerala ,wikipedia and others

10 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

आपके इस ब्लॉग के माध्यम से अपने देश की अनमोल विरासतों के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है.

सेंट फ्रांसिस चर्च के बारे में दी गयी यह जानकारी बहुत रोचक है.

सादर

Creative Manch said...

इस महत्वपूर्ण स्थान के बारे में यह तो बहुत अच्छी जानकारी मिली.कोचीन में अब भी यहूदियों का निवास है जानकार आश्चर्य भी हुआ.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

achchha laga padh kar...:)

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत विस्तृत जानकारी ,अभी -अभी मैंने इसका सार्थक उपयोग करते हुए अपने एक मित्र को इस पोस्ट का लिंक भेज दिया जो सपरिवार दो दिनों बाद कोचीन यात्रा पर जा रहे हैं.
एक बार पुनह इतनी अच्छी जानकारी के लिए आपको धन्यवाद.

vijai Rajbali Mathur said...

.कोचीन की भौगोलिक,ऐतिहासिक,सांस्कृतिक,राजनीतिक और धार्मिक जानकारियां एक-साथ सरलता से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद

माधव( Madhav) said...

सुंदर

Kunwar Kusumesh said...

देश की इमारतों की बड़ी नायाब तस्वीरें दिखाईं हैं आपने.
धन्यवाद.

सहज समाधि आश्रम said...

निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com

शोभना चौरे said...

बहुत ही विस्तृत जानकारी कोचीन घूम लिया किन्तु आपके आलेख से पुनह अच्छी तरह से रिविजन हो गया |
आभार

Alka Ray said...

bahut saari informations mili.
beautiful post
thanks with regards