उत्तर पूर्वी भारत में एक हरा भरा सरहदी राज्य है 'आसाम' जो मानसून और चाय के बागानों लिए प्रसिद्द है.यही बहती है ब्रह्मपुत्र नदी.प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को 'प्रागज्योतिषपुर' के नाम से जाना जाता था.इस राज्य की राजधानी है -गुवाहाटी
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प्राचीन मंदिरों के दर्शन आप को यहाँ होंगे.मगर यहाँ 'पिकॉक-आइलैंड 'में बने सुंदर 'शिव मंदिर 'में छेनी की धार और हाथ के कौशल से वास्तुकला के आश्चर्यजनक काम को देख कर कोई भी आश्चर्यचकित रह जायेगा.
दर्शनीय स्थल हैं--कामाख्या मंदिर,नवग्रह मंदिर,उमानन्दा मंदिर,वशिष्ठ आश्रम,असम जू एवं बॉटनिकल गार्डन्स,हाजो,पाव मक्का मस्जिद.मां भगवती कामाख्या मंदिर
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देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि मेंशक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है.गुवाहाटी से 7 कि.मी की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर समुद्र तल से ८०० फीट ऊँचाई पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है.
मंदिर का निर्माण कब हुआ?
कोई कहता है इसे राजा नरकासुर ने बनवाया था.कोई कहता है कामदेव ने!.मगर इतिहास कहता है की वर्तमान ढांचा १५६५ में कच्छ वंश के राजा चिलाराय[?]ने बनवाया था और मुगल बादशाह औरंगजेब [?] के हमलों में यह नष्ट हो गया था .इस पुनर्निर्माण राजा नर नारायण ने १६५६ में करवाया.
कामाख्या मंदिर
इस का गुम्बद मधुमक्खियों के छत्ते की भांति है। इस की शक्ती है कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं।
इस मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य देवियों - काली , तारा , बगला , छिन्नमस्ता ,भुवनेस्वरी , भैरवी और धूमावती के मंदिर भी हैं.कुछ और मंदिर इसी मंदिर के काम्प्लेक्स में हैं-सीतला , ललित कांता, जय दुर्गा 'वन दुर्गा ,राजराजेस्वरी ,स्मसनाकल , अभयानंद धर्मशाला का काली मंदिर और संखेस्वरी मंदिर.कामख्या मंदिर प्रांगण में भगवान शिव के भी ५ मंदिर हैं जो उनके ५ रूप 'कामेस्वारा, सिद्धेस्वरा , अम्रतोकेस्वारा , अघ्प्रा और तत्पुरुसा 'को बताते हैं.भगवान विष्णु के ३ मंदिर भी यहीं हैं.
-मंदिर के गर्भगृह स्थित 'महामुद्रा' पर प्राकृतिक जल धारा बहती है.जिस को रेशम के परिधान और फूलों में ढका देखा जा सकता है.इनके दर्शन में आलौकिक अनुभूति होती है.
-सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ को विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है.इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यंत महत्व है
-इस स्थान को मानवता के उद्गम का केंद्र भी माना जाता है.
दर्शन हेतु मंदिर द्वार खुलने का समय-सुबह ८ से १- पुनः २.३० से
कब जाएँ- जब भी माता का बुलावा हो तब दर्शन हेतु जाएँ.
कैसे जाएँ -गुवाहाटी शहर सभी मुख्य शहरों से सड़क,वायु,रेल मार्ग से जुडा है.
मंदिर से सम्बंधित प्रचलित पुरानी कथाएँ-
१-कहा जाता है कि सती पार्वती ने अपने पिता द्वारा अपने पति, भगवान शिव का अपमान किए जाने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी. भगवान शिव को आने में थोड़ी देर हो गई, तब तक उनकी अर्धांगिनी का शरीर जल चुका था. उन्होंने सती का शरीर आग से निकाला और तांडव नृत्य आरंभ कर दिया. अन्य देवतागण उनका नृत्य रोकना चाहते थे, अत: उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को मनाने का आग्रह किया. भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया. कहा जाता है कि सती की योनि (सृजक अंग) गुवाहाटी में गिरी. यह मंदिर देवी की प्रतीकात्मक ऊर्जा को समर्पित है।
यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है.इसका महत् तांत्रिक महत्व है.प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है.यहीं माँ भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
२-कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा के अनुसार कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था. कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी [दर्रांग जिले में `कुक्टाचकि' /'kukarkata' के नाम से विख्यात है और यह सीढियाँ 'मेखेलौजा पथ' के नाम से जानी जाती हैं.
बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं.
यहाँ मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है -अम्बुवाची पर्व-:
अम्बुवाची पर्व
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है. यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है. साल २००८ में अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया.
पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है. यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है. कामाख्या तंत्र के अनुसार -
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है. इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।
आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है. यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है. इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था. भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था. इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है.
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है,ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है. इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं. इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं. मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं. इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं. वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है. मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं.
खबरों में-
१-उचित देखरेख के अभाव में प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर समेत असम के कई पुराने मंदिरों का ढाँचा कमजोर हो रहा है.
आस्था और अंधविश्वास के आगे इन मंदिरों का पुरातात्विक महत्व लुप्त होता जा रहा है.
२ -हर साल जून मास में लगने वाले मेले में निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति हेतु आशीर्वाद लेने भी आते हैं.
३-यहाँ दी जाने वाली पशु बलि के विरुद्ध पशु प्रेमी संस्थानों ने अपनी चिंता जतायी है.
-अल्पना वर्मा
Watch video-http://www.indiavideo.org/assam/travel/kamakhya-temple-assam-1493.php
References-
1-http://www.kamakhyatemple.org/
2-Wikipedia.
3-www.mapsofindia.com
7 comments:
Alpana ji aapne kitane pramadik dhang se aur tatya parak dhang de kamakya manddir aur usase related pramodo ko present kiya hai... Bahut hi sundar ....
Regards
Alpana Ji, Namaste
Bahut hi acche dhang se apne kamakhya
mandir aur pauranik kathawo ko present kiya hai. I am very thankful
to you.
हरी ओम तत्सत: आप बधाई के पात्र हो जो आपने इतना कुछ लिख कर ज्ञान बढाया मेरी प्रार्थना है इस में आप बाकि ५० शक्ति पीठों का कम से कम नाम अवश्य दें ये मेरा सुझाव है आपकी कमी नहीं है ....वैदिक ऋषि
@vedic rishi जी आप के सुझाव पर जल्द अमल करने का प्रयास करूँगी.
अल्पना जी, आप कि ये कोशिश निश्चित ही बहुत सार्थक है, मेरी ये व्यक्तिगत सोंच रही है कि अपने पूर्वजों से जुड़ कर हम सदैव अपने आप से ही जुड़ते हैं.
आप से सविनय निवेदन है अगर आप के पास ५२ शक्तिपीठों के स्थापित स्थलों की ठोस जानकारी उपलब्ध हो तो अवगत अवश्य कराएँ!
अभिनव जी ,सम्बंधित जानकारी जुटाने और प्रकाशित करने का अवश्य प्रयास करुँगी.
मेरी कोशिश की सराहना हेतु धन्यवाद.
Very nice information. Thank you very much for sharing!
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