आमेर का किला |
भारत के प्रदेश राजस्थान की राजधानी जयपुर,जिसे भारत का पेरिस कहा जाता है.इसपर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था।
जयपुर से ११ किलोमीटर दूर ,कभी सात शताव्दियों तक ढूंडार के पुराने राज्य के कच्छवाहा शासकों की राजधानी आमेर ही थी.
यहीं है यह प्रसिद्ध आमेर का किला.......आरंभिक ढाँचा अब थोड़ा ही बचा है।.
महल के संस्थापक -:
अब इस में भी अलग अलग मत हैं.कहते हैं आमेर 'मीणा जाति के सूसावत राजवंश'[967Ad-1037Ad].में देवी अम्बा की श्रद्धा में बनवाया गया था.
आमेर महल की नींव कांकलदेव के समय से जोड़ी गई है जबकि महल में रखे शिलालेख में इसे मानसिंह प्रथम द्वारा बनाया गया बताया है.
जो तथ्य मुझे मिले हैं उन में भी यही है कि राजा मान सिंह [प्रथम ] ने पुराने भवन 'आम्बेर''के अवशेषों पर ही इस दुर्ग का निर्माण सन् १५९२ में शुरू करवाया था.
कछवाहा वंश का शासन १२ से १८ सदी तक रहा.
कुछ ऐतिहासिक तथ्य जानिए-
आमेर के महलों के पीछे दिखाई देता है नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला, जहाँ राजा मान सिंह की अरबों रुपए की सम्पत्ति ज़मीन में गड़ी होने की संभावना और आशंका व्यक्त की जाती है.
किले के बारे में-
आमेर पहाडी पर स्थित यह किला संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित आमेर फोर्ट अपनी भव्यता और विशालता के लिए प्रसिद्ध है। यह हिन्दू और मुस्लिम निर्माण शैली का बेहतर नमूना है। यह महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है।
दुर्ग के सामने 'मावठा झील 'के शान्त पानी में महल की परछाईं देखें. यह किला चार विभागों में बना हुआ है. सिंहपोल और जलेब चौक तक अकसर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शीला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर।
यहां स्थापित करने के लिए राजा मान सिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी।
आज भी इस मन्दिर में बंगाल के पुजारी ही देख रेख करते हैं .एक दर्शनीय खंभो वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दोमंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के पंरागण में है।
गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और पच्चीकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें।काँच और संगमरमर में जड़ा अनुपम सौंदर्य--पत्थर के मेहराबों की काट-छाँट देखते ही बनती है।
आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों ,गुम्बदों और छतों पर मोजैक पनेलों में रंगीन कांच ,संगमरमर और शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है। सुख महल में चंदन के दरवाजे पर हाथी दांत की कारीगरी अद्भुत है,हवा के आने की ऐसी व्यवस्था है कि गर्मियां में ठंडी हवा आती रहती है.किले के बाहर झील बाग का स्थापत्य बेहद सुंदर है।
एक और आकर्षण है -'डोली महल'- जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें रानियाँ आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ राजे-महाराजे अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे.[शायद इस लिए भी इसे रूमानी जगह कहते हैं!]बहुत इच्छा थी इसे देखने कि परंतु मैं नहीं देख पाई .
महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं-जब युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी महा राजा मानसिंह सबसे पहले उसी रानी के कक्ष मे विश्राम के लिये जाते थे,
मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।
आमेर महल विश्व पर्यटन मानचित्र पर विशेष महत्व तो रखता ही है, यहां शीला माता [माँ काली]का मंदिर भी लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है.
मैंने व्यक्तिगत रूप से 2 साल पहले यह स्थान देखा हुआ है.
कैसे पहुंचें--
अब इस में भी अलग अलग मत हैं.कहते हैं आमेर 'मीणा जाति के सूसावत राजवंश'[967Ad-1037Ad].में देवी अम्बा की श्रद्धा में बनवाया गया था.
आमेर महल की नींव कांकलदेव के समय से जोड़ी गई है जबकि महल में रखे शिलालेख में इसे मानसिंह प्रथम द्वारा बनाया गया बताया है.
जो तथ्य मुझे मिले हैं उन में भी यही है कि राजा मान सिंह [प्रथम ] ने पुराने भवन 'आम्बेर''के अवशेषों पर ही इस दुर्ग का निर्माण सन् १५९२ में शुरू करवाया था.
कछवाहा वंश का शासन १२ से १८ सदी तक रहा.
कुछ ऐतिहासिक तथ्य जानिए-
- महाराजा मान सिंह [१५८९-१६१४]-बादशाह अकबर कि सेना में मुख्य सेनापति और अकबर के दायें हाथ माने जाते थे.यह अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से एक थे.
- राजा मान सिंह के पिता भगवंत दस ने रन्थम्बोर की लड़ाई [१५६९ AD] में अकबर का बहुत सहयोग दिया था .
- राजा मान सिंह को अकबर अपना बेटा मानते थे ,उन्हें अपनी सेना में प्रशिक्षण भी अकबर ने ही दिलाया था और इसी वजह से भी जहाँगीर[सलीम] में एक दूरी रही.
- राजा मान सिंह ने ही हल्दी घाटी के युद्ध[१५७६ AD] में महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर की सेना की कमान संभाली हुई थी.
- इनके बेटे जगत सिंह की असामयिक मृत्यु पर रानी कनकवती ने आमेर की पहाडी के नीचे उन की याद में सुंदर कृष्ण मन्दिर बनवाया था.
- इस आम्बेर के किले को को राजा मान सिंह के बेटे जगत सिंह के पोते 'मिर्जा 'राजा जय सिंह [प्रथम ] .[१६२२ -१६६७ AD ] ने आगे बनवाया.यह राजा शाहजहाँ की ४००० सैनिकों वाली सेना की कमान संभालते थे.
- इन्हीं राजा जय सिंह प्रथम के पोते राजा सवाई जय सिंह [द्वितीय ] [१६६६-१७४३]ने इस दुर्ग को पूरा किया.वर्तमान स्वरूप में निखारा और संरक्षण में अपनी मुख्य भुमिका दी.
कहते हैं यह मूल रूप में विशाल किले जयगढ़ का ही एक हिस्सा था.
- यह दुर्ग राजपूती स्टाइल में बनाना शुरू हुआ मगर इस पर मुग़ल शैली का प्रभाव देखा जा सकता है.
- इस महल का 'दीवाने ख़ास 'और मुख्य द्वार गणेश पोल है, जिन की नक्काशी अत्यन्त आकर्षक है,[कहते हैं ] कि ईर्ष्या वश मुगल बादशाह जहांगीर इतना नाराज़ हो गया कि उसने इन चित्रों पर प्लास्टर करवा दिया. ये चित्र धीरे-धीरे प्लास्टर उखड़ने से अब दिखाई देने लगे हैं .गाईड ने हमें वे चित्र भी दिखाए.
- जय मन्दिर यानि-'शीश महल ' मिर्जा राजा जय सिंह [प्रथम ]ने बनवाया था.
रात में चमकता किला |
आमेर के महलों के पीछे दिखाई देता है नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला, जहाँ राजा मान सिंह की अरबों रुपए की सम्पत्ति ज़मीन में गड़ी होने की संभावना और आशंका व्यक्त की जाती है.
ऐसा सुना गया है कि आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार,आमेर महल के पहाड़ी रास्तों से जयगढ़ किले को जोड़ने वाले एक किलोमीटर लंबे गुप्त मार्ग का जीर्णोद्धार (रिनोवेशन) कर के खोला जाएगा,इसे कभी महल का सबसे गोपनीय रास्ता माना जाता था.
यह गुप्त मार्ग आमेर महल में पीछे के हिस्से में जनानी ड्योढ़ी के नजदीक से रंगमहल होकर गुजरता है। महल से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि यह मार्ग इतना बड़ा है कि एकसाथ 8 आदमी आसानी से इसमें से गुजर सकते हैं।आमेर महल से जयगढ़ वाया 'सुरंग' जुड़ने पर शहर के सभी प्रमुख महलों और किलों को जोड़ने वाला यह पहला सर्किट बनेगा.-Slide show-ये सभी 18 तस्वीरें मेरी ली हुई हैं -:
किले के बारे में-
आमेर पहाडी पर स्थित यह किला संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित आमेर फोर्ट अपनी भव्यता और विशालता के लिए प्रसिद्ध है। यह हिन्दू और मुस्लिम निर्माण शैली का बेहतर नमूना है। यह महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है।
दुर्ग के सामने 'मावठा झील 'के शान्त पानी में महल की परछाईं देखें. यह किला चार विभागों में बना हुआ है. सिंहपोल और जलेब चौक तक अकसर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शीला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर।
यहां स्थापित करने के लिए राजा मान सिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी।
आज भी इस मन्दिर में बंगाल के पुजारी ही देख रेख करते हैं .एक दर्शनीय खंभो वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दोमंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के पंरागण में है।
किले की एक खिड़की से दृश्य |
गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और पच्चीकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें।काँच और संगमरमर में जड़ा अनुपम सौंदर्य--पत्थर के मेहराबों की काट-छाँट देखते ही बनती है।
आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों ,गुम्बदों और छतों पर मोजैक पनेलों में रंगीन कांच ,संगमरमर और शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है। सुख महल में चंदन के दरवाजे पर हाथी दांत की कारीगरी अद्भुत है,हवा के आने की ऐसी व्यवस्था है कि गर्मियां में ठंडी हवा आती रहती है.किले के बाहर झील बाग का स्थापत्य बेहद सुंदर है।
एक और आकर्षण है -'डोली महल'- जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें रानियाँ आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ राजे-महाराजे अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे.[शायद इस लिए भी इसे रूमानी जगह कहते हैं!]बहुत इच्छा थी इसे देखने कि परंतु मैं नहीं देख पाई .
महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं-जब युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी महा राजा मानसिंह सबसे पहले उसी रानी के कक्ष मे विश्राम के लिये जाते थे,
मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।
आमेर महल विश्व पर्यटन मानचित्र पर विशेष महत्व तो रखता ही है, यहां शीला माता [माँ काली]का मंदिर भी लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है.
मैंने व्यक्तिगत रूप से 2 साल पहले यह स्थान देखा हुआ है.
- दिल्ली से जयपुर वायु,सड़क के रास्ते भी पहुँच सकतेहैं.
- जयपुर में ऑटोरिक्शा या बस से सीधा आमेर की किले तक जाने की सुविधा है.
- अक्टूबर से फरवरी यहाँ घूमने के लिए सब से अच्छा मौसम है.
- खुलने का समय-सुबह ९ से शाम ४:३० तक.
- प्रवेश शुल्क के साथ अगर कैमरा या विडियो कैमरा है तो उनके लिए भी शुल्क लेना होगा.
सम्बन्धित अन्य जानकारियाँ आप उनकी वेबसाईट या सम्बन्धित विभाग में फोन द्वारा पूछ कर भी ले सकते हैं ,
इन साईट्स पर भी राजघराने की जानकारी ले सकते हैं-
http://msmsmuseum.com/index.php
http://members.iinet.net.au/~royalty/ips/j/jaipur.html
No comments:
Post a Comment