महाशिवरात्रि पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ..
भारत देश की यही खूबी है कि यहाँ सभी पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं.
भोले भंडारी भगवान शिव की परम भक्त हूँ इसलिए इच्छा हुई कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लींगों की पावन यात्रा
आज से आरंभ की जाए .
इस यात्रा को शुरू करने से पहले जान लें कि आख़िर भगवान शिव की आराधना करते क्यों हैं?शिवलिंग क्या है?
शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं. इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है. शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है. भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर हैं.ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है।
कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा.
भगवान शिव का स्वरूप -
जटाएं- शिव को अंतरिक्ष का देवता कहते हैं, अतः आकाश उनकी जटा का स्वरूप है, जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं।
चंद्र- चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है।
त्रिनेत्र- शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य, तीन कालों स्वर्ग, मृत्यु पाताल तीन लोकों का प्रतीक है।
सर्पों का हार- सर्प जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन किया है।
त्रिशूल- शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशुल सृष्टि में मानव भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू- शिव के एक हाथ में डमरू है जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है।
मुंडमाला- शिव के गले में मुंडमाला है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है।
छाल- शिव के शरीर पर व्याघ्र चर्म है, व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म- शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है शरीर नश्वरता का प्रतीक है।
वृषभ- शिव का वाहन वृषभ है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ का अर्थ है, धर्म महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष उनके अधीन है। सार रूप में शिव का रूप विराट और अनंत है, शिव की महिमा अपरम्पार है। ओंकार में ही सारी सृष्टि समायी हुई है।
शिवरात्रि-
शिवरात्रि आशुतोष औढ़रदानी शंकर का अति प्रसिद्ध पर्व है जो सारे भारतवर्ष में बडे़ धूमधाम से मनाया जाता है। वर्षभर, यदि कोई शिव-पूजन नहीं कर पाता है उसे केवल एक दिन के पूजन से ही संपूर्ण फल की प्राप्ति हो जाती है। बडे़ से बडे़ पाप के प्रायश्चित का उपाय वेद, शिव की आराधना बतलाते हैं। शंकर ही वेदों में रुद्र नाम से प्रसिद्ध है जो पुराणों और लोकों में शिव कहलाए।
शिवरात्रि में हम उपवास करते है। उपवास का अर्थ ही है उप समीपे वास: उपवास: अर्थात् परमात्मा को अपने पास महसूस करना या अपने को परमेश्वर से नजदीक लाना। अपनी आत्मसत्ता में परमात्म-सत्ता का अनुभव ही परमेश्वर से अभिन्नता है।
शिवरात्रि में जो पूजन करते है उसकी भी आध्यात्मिकता पर हमें ध्यान देना होगा। आचार्य मनु कहते हैं- नहि अंध्यात्मविद् कश्चित् क्रियाया: फलमश्नुतें अर्थात् जब तक आप प्रयोग के रहस्य को नहीं जान लेते है तब तक क्रिया के संपूर्ण फल को प्राप्त नहीं कर सकते। अंत:करण की शुद्धि द्वारा जो संपूर्ण फलों का फल शिव है उसका साक्षात्कार ही साधक का लक्ष्य होता है।
रात्रि जागरण से यह भी प्रतीकार्थ ग्रहण किया जा सकता है कि हम अपनी वासनाओं से सावधान होकर शक्ति को संचित करे। तमोगुण की अधिकता में ही काम का प्रहार होता है।
शिवरात्रि शिव की निर्गुणता से सगुणता में अवतरण का उत्सव है.शिव पुराण कहता है कि -ब्रह्मा-विष्णु विवाद के मध्य ही महालिंग् ज्वाला के रूप में प्रकट हुआ और कौन बड़ा .इसका निर्विवाद उत्तर दिया, तब से ही इस लिंग की पूजा प्रचलित हुई। शिव के चिन्ह को ही शिवलिंग कहते हैं।
शिवरात्रि में चतुर्योग पूजन का विधान है ,योगी अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगाकर ही सहस्रार में शिव का साक्षात्कार करता है और रात्रि को भी वह शिवमय बना देता है।
वस्तुत: शिवरात्रि शिवाय रात्रि है जिसमें प†चाक्षरी ऊं नम: शिवाय इस मंत्र का विचार करते हुए अपने अज्ञानमय जीवन को ज्ञान-प्रकाश से भरने की प्रेरणा मिलती है और तभी हमारी शिवरात्रि सार्थक हो पाती है।
फाल्गुन कृष्ण-चतुर्दशी की महानिशा में आदिदेव कोटि सूर्यसमप्रभ शिवलिंग के रुप में आविर्भूत हुए थे। इसका अमावस्या के साथ संयोग इसलिए देखा जाता है कि अमा अर्थात एक साथ वास करते है - अवस्था करते हैं - सूर्य और चन्द्र जिस तिथि में वह 'अमावस्या' है। साधन-राज्य में सूर्य और चन्द्र परमात्मा और जीवात्मा के बोधक हैं।
फाल्गुन के पश्चात वर्ष चक्र की भी पुनरावृत्ति होती है अत: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को पूजा करना एक महाव्रत है जिसका नाम महाशिवरात्रि व्रत पड़ा।
उपनिषदों में जिसे 'शान्त शिवमद्वेैतं यञ्चतुर्थे मन्यते' कहा गया है - उस शिव के समीप जाने से जीवात्मा का आवरणविक्षेप हटाकर परमतत्व शिव के साथ एकीभूत होना ही वास्तविक महाशिवरात्रि व्रत है।
Refrence-: http://www।diamondpublication.com/magazines/sadhnapath/article.phtml?79,593.html-----------------------------------------------------------------------------------
महाशिवरात्रि के दिन जो मनुष्य पावन शिवलिंग की पूजा अर्चना करता है भगवान शिव सदैव उन्हे आशीर्वाद देते है। महाशिवरात्रि अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है।शिव का शाब्दिक अर्थ है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है प्रतिमा अथवा चिह्न। अत:शिवलिंग का अर्थ हुआ-कल्याणकारी परमपिता परमात्मा की प्रतिमा।
शिवलिंग की पूजा का अर्थ है कि समस्त विकारों और वासनाओं से रहित रह कर मन को निर्मल बनाना.
ज्योतिर्लिंग-
ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'.
[शिवपुराण ]- ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग कहा गया है,सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है।
देश में शिव के जो बारह ज्योतिर्लिंग है उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम ले लिया जाए तो सारा काम हो जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग -:
पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है.
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥1॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम्
------------------------------------------
इनमें से 3 महाराष्ट्र राज्य में[त्रयम्बकेश्वर,भीमशंकर,घुश्मेश्वर,] ही हैं,
गुजरात में 2[सोमनाथ,नागेश्वर] , तमिलनाडु के 1-रामेश्वरम में मौजूद [रामलिंगेश्वर],उत्तर में एक[केदारनाथ ],उत्तर प्रदेश में एक[विश्वनाथ],आंध्रा प्रदेश में एक[श्रीशैलम-मल्लिकार्जुन महादेव] ,झारखंड के देवघर नामक स्थान में 1[वैद्यनाथ]और मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग[महाकालेश्वर &ओंकारेश्वर] हैं.
इस लेख का अगला भाग अगले अंक में प्रस्तुत किया जाएगा.
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भारत देश की यही खूबी है कि यहाँ सभी पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं.
भोले भंडारी भगवान शिव की परम भक्त हूँ इसलिए इच्छा हुई कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लींगों की पावन यात्रा
आज से आरंभ की जाए .
इस यात्रा को शुरू करने से पहले जान लें कि आख़िर भगवान शिव की आराधना करते क्यों हैं?शिवलिंग क्या है?
शिव भारतीय धर्म, संस्कृति, दर्शन ज्ञान को संजीवनी प्रदान करने वाले हैं. इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में शिवलिंग की व साकार रूप में शिवमूर्ति की पूजा होती है. शिवलिंग को सृष्टि की सर्वव्यापकता का प्रतीक माना जाता है. भारत में भगवान शिव के अनेक ज्योतिलिंग सोमनाथ, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैधनाथस नागेश्वर, रामेश्वर हैं.ये देश के विभिन्न हिस्सों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में स्थित हैं, जो महादेव की व्यापकता को प्रकट करते हैं शिव को उदार ह्रदय अर्थात् भोले भंडारी कहा जाता है।
कहते हैं ये थोङी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। अतः इनके भक्तों की संख्या भारत ही नहीं विदेशों तक फैली है। भगवान शिव का महामृत्जुंजय मंत्र पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी को दीर्घायु, समृद्धि, शांति, सुख प्रदान करता रहा है और चिरकाल तक करता रहेगा.
भगवान शिव का स्वरूप -
जटाएं- शिव को अंतरिक्ष का देवता कहते हैं, अतः आकाश उनकी जटा का स्वरूप है, जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं।
चंद्र- चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र, सशक्त है, उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्जवल है।
त्रिनेत्र- शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र सत्व, रज, तम तीन गुणों, भूत, वर्तमान, भविष्य, तीन कालों स्वर्ग, मृत्यु पाताल तीन लोकों का प्रतीक है।
सर्पों का हार- सर्प जैसा क्रूर व हिसंक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन किया है।
त्रिशूल- शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशुल सृष्टि में मानव भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू- शिव के एक हाथ में डमरू है जिसे वे तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रुप है।
मुंडमाला- शिव के गले में मुंडमाला है जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में कर रखा है।
छाल- शिव के शरीर पर व्याघ्र चर्म है, व्याघ्र हिंसा व अंहकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा व अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म- शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है शरीर नश्वरता का प्रतीक है।
वृषभ- शिव का वाहन वृषभ है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ का अर्थ है, धर्म महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम मोक्ष उनके अधीन है। सार रूप में शिव का रूप विराट और अनंत है, शिव की महिमा अपरम्पार है। ओंकार में ही सारी सृष्टि समायी हुई है।
शिवरात्रि-
शिवरात्रि आशुतोष औढ़रदानी शंकर का अति प्रसिद्ध पर्व है जो सारे भारतवर्ष में बडे़ धूमधाम से मनाया जाता है। वर्षभर, यदि कोई शिव-पूजन नहीं कर पाता है उसे केवल एक दिन के पूजन से ही संपूर्ण फल की प्राप्ति हो जाती है। बडे़ से बडे़ पाप के प्रायश्चित का उपाय वेद, शिव की आराधना बतलाते हैं। शंकर ही वेदों में रुद्र नाम से प्रसिद्ध है जो पुराणों और लोकों में शिव कहलाए।
शिवरात्रि में हम उपवास करते है। उपवास का अर्थ ही है उप समीपे वास: उपवास: अर्थात् परमात्मा को अपने पास महसूस करना या अपने को परमेश्वर से नजदीक लाना। अपनी आत्मसत्ता में परमात्म-सत्ता का अनुभव ही परमेश्वर से अभिन्नता है।
शिवरात्रि में जो पूजन करते है उसकी भी आध्यात्मिकता पर हमें ध्यान देना होगा। आचार्य मनु कहते हैं- नहि अंध्यात्मविद् कश्चित् क्रियाया: फलमश्नुतें अर्थात् जब तक आप प्रयोग के रहस्य को नहीं जान लेते है तब तक क्रिया के संपूर्ण फल को प्राप्त नहीं कर सकते। अंत:करण की शुद्धि द्वारा जो संपूर्ण फलों का फल शिव है उसका साक्षात्कार ही साधक का लक्ष्य होता है।
रात्रि जागरण से यह भी प्रतीकार्थ ग्रहण किया जा सकता है कि हम अपनी वासनाओं से सावधान होकर शक्ति को संचित करे। तमोगुण की अधिकता में ही काम का प्रहार होता है।
शिवरात्रि शिव की निर्गुणता से सगुणता में अवतरण का उत्सव है.शिव पुराण कहता है कि -ब्रह्मा-विष्णु विवाद के मध्य ही महालिंग् ज्वाला के रूप में प्रकट हुआ और कौन बड़ा .इसका निर्विवाद उत्तर दिया, तब से ही इस लिंग की पूजा प्रचलित हुई। शिव के चिन्ह को ही शिवलिंग कहते हैं।
शिवरात्रि में चतुर्योग पूजन का विधान है ,योगी अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगाकर ही सहस्रार में शिव का साक्षात्कार करता है और रात्रि को भी वह शिवमय बना देता है।
वस्तुत: शिवरात्रि शिवाय रात्रि है जिसमें प†चाक्षरी ऊं नम: शिवाय इस मंत्र का विचार करते हुए अपने अज्ञानमय जीवन को ज्ञान-प्रकाश से भरने की प्रेरणा मिलती है और तभी हमारी शिवरात्रि सार्थक हो पाती है।
फाल्गुन कृष्ण-चतुर्दशी की महानिशा में आदिदेव कोटि सूर्यसमप्रभ शिवलिंग के रुप में आविर्भूत हुए थे। इसका अमावस्या के साथ संयोग इसलिए देखा जाता है कि अमा अर्थात एक साथ वास करते है - अवस्था करते हैं - सूर्य और चन्द्र जिस तिथि में वह 'अमावस्या' है। साधन-राज्य में सूर्य और चन्द्र परमात्मा और जीवात्मा के बोधक हैं।
फाल्गुन के पश्चात वर्ष चक्र की भी पुनरावृत्ति होती है अत: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को पूजा करना एक महाव्रत है जिसका नाम महाशिवरात्रि व्रत पड़ा।
उपनिषदों में जिसे 'शान्त शिवमद्वेैतं यञ्चतुर्थे मन्यते' कहा गया है - उस शिव के समीप जाने से जीवात्मा का आवरणविक्षेप हटाकर परमतत्व शिव के साथ एकीभूत होना ही वास्तविक महाशिवरात्रि व्रत है।
Refrence-: http://www।diamondpublication.com/magazines/sadhnapath/article.phtml?79,593.html-----------------------------------------------------------------------------------
महाशिवरात्रि के दिन जो मनुष्य पावन शिवलिंग की पूजा अर्चना करता है भगवान शिव सदैव उन्हे आशीर्वाद देते है। महाशिवरात्रि अपने अहं को मिटाकर लोकेश्वर से मिलने के लिए है।शिव का शाब्दिक अर्थ है कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है प्रतिमा अथवा चिह्न। अत:शिवलिंग का अर्थ हुआ-कल्याणकारी परमपिता परमात्मा की प्रतिमा।
शिवलिंग की पूजा का अर्थ है कि समस्त विकारों और वासनाओं से रहित रह कर मन को निर्मल बनाना.
ज्योतिर्लिंग-
ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'.
[शिवपुराण ]- ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग कहा गया है,सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है।
देश में शिव के जो बारह ज्योतिर्लिंग है उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम ले लिया जाए तो सारा काम हो जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग -:
पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है.
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥1॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम्
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इनमें से 3 महाराष्ट्र राज्य में[त्रयम्बकेश्वर,भीमशंकर,घुश्मेश्वर,] ही हैं,
गुजरात में 2[सोमनाथ,नागेश्वर] , तमिलनाडु के 1-रामेश्वरम में मौजूद [रामलिंगेश्वर],उत्तर में एक[केदारनाथ ],उत्तर प्रदेश में एक[विश्वनाथ],आंध्रा प्रदेश में एक[श्रीशैलम-मल्लिकार्जुन महादेव] ,झारखंड के देवघर नामक स्थान में 1[वैद्यनाथ]और मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग[महाकालेश्वर &ओंकारेश्वर] हैं.
इस लेख का अगला भाग अगले अंक में प्रस्तुत किया जाएगा.
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8 comments:
SHUBHKAMNAYE/
yah dhrm esa he jnha jeevan khilta he usake aadhyatmik gun nikhar baahar aate he,..aour jab mahaa shivratri jesa parv ho to yakinan shankarmay ho jata he jeevan.
यह बहुत रोचक और सुंदर यात्रा प्रारंभ हुई है,जारी रखें.......
बहुत ही सुन्दर काम की शुरुवात की है अपने , आपकी सभी पोस्टो का इंतजार रहेगा. धन्यवाद्।
महा शिवरात्रि पर्व की आप को भी बहुत सी शुभकामनायें।
अगले भाग का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।
It is said that one of the Jyotirlingd "Baidyanath" is located in Jharkhand, the place Baidyanath is located near Deoghar near Jasidih.
However, you have mentioned that it is in Maharashtra.
Please throw some light.
Sanjay ji,
Truti sudhaar di hai.
bahut abhut dhnywaad.is tarf dhyan dilane ke liye.
ab yah poora kathan aise hoga-
इनमें से 3 महाराष्ट्र राज्य में[त्रयम्बकेश्वर,भीमशंकर,घुश्मेश्वर,] ही हैं,
गुजरात में 2[सोमनाथ,नागेश्वर] , तमिलनाडु के 1-रामेश्वरम में मौजूद [रामलिंगेश्वर],उत्तर में एक[केदारनाथ ],उत्तर प्रदेश में एक[विश्वनाथ],आंध्रा प्रदेश में एक[श्रीशैलम-मल्लिकार्जुन महादेव] ,झारखंड के देवघर नामक स्थान में 1[वैद्यनाथ]और मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग[महाकालेश्वर &ओंकारेश्वर] हैं.
-abhaar
ॐ नम शिवाय
श्री मान जी जय भोले की ।
आप ने शिव का जानकारी दिया बहुत उत्तम है
आपका शुक्रिया
हर दिल बोले बम बम भोले
हर दिल बोले बम बम भोले
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