'छत्तीसगढ़' ---यही वह राज्य है जहाँ से मैं समझती हूँ आज की तारीख में सब से अधिक हिंदी ब्लॉगर हैं. इस राज्य के बारे में जो कुछ भी यहाँ लिख रही हूँ उसमें अगर कहीं कोई त्रुटी दिखाई दे तो कृपया मुझे सूचित करीए.
छत्तीसगढ़ -जैसा की नाम ही इशारा करता है यह क्षेत्र ३६ गढ़ों का समूह रहा होगा इस लिए इस का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा.
पौराणिक इतिहास-
कहते हैं कि राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या के नाम पर इस क्षेत्र को कोसल कहा जाने लगा था.
माना यह भी जाता है कि भगवान् राम अपने वनवास के समय 'छत्तीसगढ़ ' से हो कर गुजरे थे और शबरी ने उन्हें बेर यहीं खिलाये थे.
महाभारत से भी जोड़ती कहानियां कुछ इतिहासकार बताते हैं..उनके अनुसार इतिहासकार बिलासपुर के पांडो, कोरवा और कंवर जनजातियों का सम्बन्ध पांडव और कौरवों से हो सकता है.
रायगढ़ के 'कबरा पहाड़' और सिंघनपुर की गुफ़ाओं में मिले भित्तिचित्र इस क्षेत्र में मानव जाती के विकास की कहानी सुनाते हैं.
यहाँ के प्राचीन मन्दिर तथा उनके भग्नावशेष यह बताते कि यहाँ पर वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध के साथ ही अनेकों आर्य तथा अनार्य संस्कृतियों का विभिन्न कालों में प्रभाव रहा होगा.
- इसके प्राचीनतम उल्लेख सन 639 ई० में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलते हैं. यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी.
-कहते हैं-महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ था.
इतिहास से --
-1000 ई. में पहला कलचुरि राजा कलिंगराज कोसल पहुँचा ,उसके बेटे रत्नदेव ने अपने राज्य की राजधानी रत्नपुर में बनाई.कलचुरि शासन दो हिस्सों में बँटा था. एक शिवनाथ के उत्तर में और दूसरा शिवनाथ के दक्षिण में.. दोनों ओर 18 गढ़. जहाँ ये १८-18 प्रशासनिक इकाईयां बनीं.इस तरह कलचुरियों के 36 गढ़ थे जो 36garh के नामकरण का आधार बना.
- मुगलों और मराठों के शासन काल में बस्तर को 36garh शामिल हुआ.
-मराठे और कुछ समय तक अंग्रेज भी छत्तीसगढ़ का शासन नागपुर से सँभालते थे.बाद में अंग्रेजों में रायपुर को राजधानी बना दिया.
-अंग्रेजी हुकूमत के समय 1860 में मध्य प्रांत का गठन हुआ. नागपुर, महाकोसल और छत्तीसगढ़ को मिलाकर वे इसे 'सीपी एंड बरार 'कहते थे. इसमें छोटी-छोटी कुल 14 रियासतें थीं.
-१९४७ में आज़ादी के बाद १९५६ तक छत्तीसगढ़ महाकोसल का हिस्सा था.
-1956 में छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा बना.
-छत्तीसगढ़ को अपनी पहचान बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी.खूबचंद बघेल [१९५६-६९ ] पवन दीवान, शंकर गुहा नियोगी ने [1977 से 1990 ]आन्दोलन चलाये.
-1994 में मध्यप्रदेश विधानसभा में छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की गई और कुछ पार्टियों के लिए यह चुनावी मुद्दा बन गया.
और इस तरह लम्बे इंतज़ार के बाद पहली नवंबर 2000 से देश के नक्शे पर मध्य प्रदेश से कट कर 'छत्तीसगढ़ 'नाम का एक नया राज्य बन गया.
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जानते हैं इस राज्य के बारे में--
छत्तीसगढ़ के उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार. राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं - महानदी, शिवनाथ , खारुन पैरी और इन्द्रावती नदी.
मूल भाषा-छत्तीसगढ़ी ,
राजधानी-रायपुर
जिले-१६
यहाँ का लोक गीत-संगीत तो बहुत प्रसिद्द हैं.
कई जनजातियों वाला यह राज्य धान की भरपूर पैदावार के कारण धान का कटोरा भी कहलाता है.
भारत देश की १२% वनसंपदा यहीं है.राज्य का ४४% हिस्सा वनों से घिरा है.यहाँ २ राष्ट्रिय उद्यान,११ Wildlife Sanctuaries पर्यटकों का मुख्य आकर्षण हैं.
मेरी जानकारी में विद्युत उत्पादन और आपूर्ति में यह राज्य स्वयम में सक्षम है.
यह राज्य सभी राज्यों से सड़क,वायु,और रेल मार्ग से जुडा हुआ है.
छत्तीसगढ़ में बहुत कुछ है देखने के लिए.पुरानी गुफाएं,मंदिर,जल प्रपात आदि..हर जिले में कुछ न कुछ !
आज मैं आप को छत्तीसगढ़ में दक्षिण बस्तर क्षेत्र के एक जिले दंतवाडा ले कर चलती हूँ.यहाँ साल और टीक के जंगल तो है ही साथ ही पर्वत श्रृंखला भी प्रकृति की भेंट है. मुख्यत इन्द्रावती ,शाभारी,और गोदावरी नदियाँ इस क्षेत्र से बहती हैं.बरसूर ,दंतवाडा और भद्रकाली इतिहासिक महत्व के स्थान हैं.लोहे की खाने,पहाड़ी चोटियों के दृश्य,पार्क आदि भी देखने की जगहें हैं.कुछ दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं-
सूर्या मूर्ती बरसूर,विष्णु मूर्ती ,बड़ा गणेश ,गुरु बेताल ,मामा भांजा मंदिर ,शिव मंदिर बचेली,बत्तीसा मंदिर,इन्द्रावती नदी,बोद्धघाट सात धार,आदि.
कैलाश नगर , आकाश नगर पहाड़ी पर बसे लोकप्रिय स्पॉट हैं.
'दंतवाडा में विश्व में सबसे अधीक iron -ore के desposits पाए गए हैं.
यहाँ की मिटटी में खनिज प्रचुर मात्रामें है .
यहाँ का मुख्य आकर्षण है माता दंतेश्वरी देवी का मंदिर-:
आज जानते हैं 'बस्तर 'की कुल देवी के दंतेश्वरी देवी के मंदिर के बारे में-:
सम्बंधित पौराणिक कथा-
कहा जाता है कि सती पार्वती ने अपने पिता द्वारा अपने पति, भगवान शिव का अपमान किए जाने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी. भगवान शिव को आने में थोड़ी देर हो गई, तब तक उनकी अर्धांगिनी का शरीर जल चुका था. उन्होंने सती का शरीर आग से निकाला और तांडव नृत्य आरंभ कर दिया. अन्य देवतागण उनका नृत्य रोकना चाहते थे, अत: उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को मनाने का आग्रह किया. भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया.
कहा जाता है कि डंकिनी-शंखनी नदी के तट पर परम दयालु माता सती का दांत वहां गिरा था और यह जगह एक शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हो गया और दंतेश्वरी माता के रूप में देवी को यहाँ पूजा जाने लगा.
इसी मंदिर से सम्बंधित बस्तर के राजा की एक कहानी और सुनिए--
बस्तर के राजा अन्नमदेव वारांगल, आंध्रप्रदेश से अपनी विजय के बाद बस्तर की ओर बढ रहे थे साथ में मॉं दंतेश्वरी का आशिर्वाद था . गढों पर कब्जा करते हुए बढते अन्नमदेव को माता दंतेश्वरी नें वरदान दिया था जब तक तुम पीछे मुड कर नहीं देखोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी . राजा अन्नमदेव बढते रहे, माता के पैरों की नूपूर की ध्वनि पीछे से आती रही, राजा का उत्साह बढता रहा .
शंखिनी-डंकिनी नदी के तट पर विजय मार्ग पर बढते राजा अन्नमदेव के कानों में नूपूर की ध्वनि आनी अचानक बंद हो गई . वारांगल से पूरे बस्तर में अपना राज्य स्थापित करने के समय तक महाप्रतापी राजा के कानों में गूंजती नूपूर ध्वनि के अचानक बंद हो जाने से राजा को वरदान की बात याद नही रही, राजा अन्नमदेव कौतूहलवश पीछे मुड कर देखा.
माता का पांव शंखिनी-डंकिनी के रेतों में किंचित फंस गया था! अन्नमदेव को माता नें साक्षात दर्शन दिये पर वह स्वप्न सा ही था . माता ने उनसे कहा 'अन्नमदेव तुमने पीछे मुड कर देखा है, अब मैं जाती हूं . बस वहीँ 'डंकिनी-शंखनी' के तट पर माता सती के दंतपाल के गिरने वाले उक्त स्थान पर ही जागृत शक्तिपीठ, बस्तर के राजा अन्नमदेव ने अपनी अधिष्ठात्री मॉं दंतेश्वरी का मंदिर बनवाया दिया .
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----ऐसा भी कहा जाता है कि यह नाम देवी का नया नाम है इनका पुराना नाम मानिकेश्वरी देवी था.
-यह मंदिर चार भागों में है-
गर्भ गृह,महा मंडप,मुख्य मंडप, और सभा मंडप..-पहले दो भाग पत्थर में बने हैं.
यह मंदिर भी कई बार बनवाया गया है और वर्तमान स्वरुप ८०० साल पुराना है.एक गरुड़ स्तम्भ भी मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने बाद में ही बनवाया गया था.
यहाँ का ५०० साल से चलता आ रहा बस्तर दशेहरा मेला बहुत ही प्रसिद्द है.एक लकडी के रथ पर माता की कैनोपी को रख कर यहाँ की tribes के लोग खींचते हैं.
[Click picture to enlarge ]
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कैसे पहुंचे-
यह जगह जगदलपुर से डेढ़ घंटे कि दूरी पर है.
सबसे नज़दीक हवाई अड्डा -रायपुर का है.
विशाखापत्तनम से बैलाडाला जाती हुई रेल थोडी देर को इस स्टेशन पर रूकती है.
जगदलपुर सब से करीबी शहर है.
आंध्र प्रदेश से दंतवाडा के लिए नियमित बस सेवा है.
मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के बड़े शहरों को जाती बसें भी यहाँ रुक कर जाती हैं.
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कब जाएँ--वर्ष पर्यंत जब भी माता का बुलावा हो.
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आज के लिए इतना ही....अगली बार एक नयी जगह ले कर आप को चलेंगे,तब तक के लिए नमस्कार.
8 comments:
दन्तेवाड़ा और माँ दन्तेश्वरी के साथ ही साथ छत्तीसगढ़ के विषय में भी बहुत अच्छी जानकारी! जानकारी देने के लिए धन्यवाद!!!
बहुत बढिया, फोटो एनलार्ज की सुविधा प्रदान करने हेतु हार्दिक धन्यवाद ! कैलाश नगर वाली फोटो बहुत प्यारी थी !
कमाल की प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
इस जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार।
( Treasurer-S. T. )
aap ki prastuti kamal ki hai . Itni achchhi jankari ek sath sametne ke liye thanks. Aap ka prayas dusron ko rasta dikhane ke liye kaphi hai . THANKS A LOT
बहुत सुन्दर चित्र
उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक जानकारी
आभार
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क्रियेटिव मंच
अल्पना जी,आपका ब्लॉग तो जानकारियों से भरा है। अच्छा लगा।
और हां,आपने मेरे ब्लॉग पर लगी तस्वीरों के बारे में पूछा है। मैं मूलत चित्रकार हूं। वहां लगी सारी पेंटिंग मेरी बनाई हुई है। बुक कवर भी मेरे बनाए हुए हैं, जो हिंदी और अंग्रेजी के अलग अलग प्रकाशन से छपे हैं। आप उपयोग करना चाहते हैं तो स्वागत है..नाम देंगे तो अच्छा लगेगा।
धन्यवाद
simply great!
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