श्रीनगर में गोपाद्री पहाड़ी पर स्थित मन्दिर का इतिहास लगभग डेढ़ हजार साल पुराना है।
कश्मीर की यात्रा के समय आदि शंकराचार्य ने इस पहाड़ी पर कुछ दिनो तक तपस्या की थी।जिसके कारण यहाँ एक विशाल मंदिर बनाया गया ,जिसे शंकराचार्य मंदिर कहते हैं.हिन्दुओं के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है.
मंदिर के कारण लोगो ने इस पहाड़ी का नाम शंकराचार्य पहाड़ी रख दिया था जो सरकारी दस्तावेजो में भी मौजुद है। लेकिन भारत सरकार के ASI ने शंकराचार्य पहाड़ी का नाम 'तख्ते सुलेमान 'रख दिया है।
पुरातत्व विभाग बिना भारत सरकार की सहमती से कुछ नहीं कर सकता तो इस विषय में जो जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्ध है उसके आधार पर ये ही समझ आता है कि यह मौलिक तथ्यों को नज़र अंदाज़ कर के किया जा रहा है ,
क्या वोटों की राजनीति इतनी गिर गयी है कि अपने इतिहास से छेड़छाड़ की जाती रहे?
अधिक जानकारी इस लिंक पर है -हिंदी अनुवाद जल्द प्रस्तुत करूंगी.
http://www.indiafacts.co.in/post10/#sthash.YPC4a1zH.dpuf
इससे पूर्व हरी पर्वत ,उमा नगरी ,किशन गंगा के नाम बदल दिए गए मगर किसी ने विरोध नहीं किया परन्तु अब एक आवाज़ उठी है आप नीचे दिए गए तथ्यों को पढ़ें और अपने विवेक से खुद निर्णय करें कि क्या सही है ?
- Petition byBerkeley, CA
आभार.
3 comments:
तथ्यपूर्ण जानकारी... खेदजनक और अनुचित है यह...कश्मीर घाटी में सनातन धर्म से जुड़ी हर पहचान और हर स्थान को खत्म किया जा रहा है. सेक्यूलरिज्म के झंडाबरदारों को यह सब क्यों नहीं दिखता है? क्या इससे संप्रदायिकता का बढ़ावा नहीं मिल रहा है... वोट की खातिर संस्कृति और इतिहास से छेड़छाड़ जायज नहीं...
तथ्य तो सटीक होंगे ही। वैसे इस सब से कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। जिस स्थापना को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है, वास्तव में वह कभी मिटेगी नहीं। आपने सही कहा वोटों की राजनीति के लिए बहुत कुछ उलटा-पुलटा किया जा रहा है।
खेद है वोटो की इस राजनीति पर और इससे भी ज्यादा खेद है कि हिन्दू गलत बातों का विरोध नहीं करता और यही हमारी सबसे बडी कमजोरी है
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