ये हैं उन पहले ११ ज्योतिर्लिंगों के लिंक सहित नाम --:
(1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3) महाकालेश्वर, (4) ओंकारेश्वर (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर,
(8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर [घुश्मेश्वर].
अब हम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंचे हैं जो भारत के दक्षिण में स्थित है .दक्षिण का बनारस इस स्थान को इसलिए कहा जाता है क्योंकि उत्तर मे जो मान्यता बनारस की है, वही रामेश्वरम् की दक्षिण में है.
हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ यह सुंदर द्वीप चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दूर रामनाथपुरम जिले में है .
पहले यह भारत की भूमि से जुड़ा हुआ था लेकिन समय बीतता गया , सागर की लहरों ने इस कड़ी को काट दिया और यह अलग हो गया.लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों का पुल बनवाया था, जिस के माध्यम से वानर सेना लंका पहुंची और लंका पर विजय पाई थी , बाद में राम ने विभीषण के सुझाव पर 'धनुषकोटि 'नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया गया था.
आज भी इस ३० मील लंबे 'आदि-सेतु' के अवशेष समुद्र में आप देख सकते हैं.
तुलसीदास जी रचित रामचरितमानस के अनुसार ] भगवान श्री राम ने समुद्र के किनारे रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना करके स्वयं वहाँ पूजा की थी इसलिए इस ज्योतिर्लिंग की विशेष महिमा है. ऐसी मान्यता है कि रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की विधिपूर्वक आराधना करने से मनुष्य ब्रह्महत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है.
शास्त्रों में गंगोत्री से गंगा जल लेकर यहाँ ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने का विशेष महत्त्व बताया गया है. इस ज्योतिर्लिंग की कथा आप सभी को मालूम होगी फिर भी दोहरा देती हूँ -
श्री शिवमहापुराण में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है –भगवान श्री विष्णु के रामावतार में रावण सीता जी का अपहरण कर अपनी राजधानी लंका में ले गया। उस समय श्री राम सुग्रीव के साथ अठारह पद्म वानरी सेना लेकर समुद्र के किनारे आ गये। वे समुद्र तट पर यह चिन्तन करने लगे कि किस प्रकार समुद्र को पार कर लंका पहुँचा जाये और रावण पर विजय प्राप्त की जाय। इसी चिन्तन के दौरान श्री राम को प्यास लगी, तो उन्होंने पीने के लिए जल माँगा। वानरों ने पीने योग्य मीठा जल लाकर श्री राम को दिया और श्री राम ने जल को प्रसन्नतापूर्वक ले लिया। उस जल को पीने से पहले ही उन्हें ख्याल आया कि मैंने अपने स्वामी भगवान शंकर का दर्शन नहीं किया है। ऐसी स्थिति में दर्शन किये बिना मैं जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ? इस प्रकार विचार कर श्री राम ने जल ग्रहण नहीं किया। उसके बाद रघुनन्दन ने पार्थिव लिंग के पूजन का आयोजन किया उन्होंने सब प्रकार से पूजन की सामग्री संकलित करायी और षोडशोपचार (सोलह प्रकार) से विधिपूर्वक भगवान शंकर की अर्चना वन्दना की.[यह जानकारी विकिपीडिया से ]
श्री रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना के सम्बन्ध में एक अन्य ऐतिहासिक कथा भी प्रचलित है। जब श्री राम का वध कर लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद वापस अयोध्या को लौट रहे थे, तो उन्होंने समुद्र के इस पार गन्धमादन पर्वत पर रूक कर प्रथम विश्राम किया।वहाँ ऋषियों ने उनसे कहा कि उन्होंने पुलस्त्य कुल का विनाश किया है, जिससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पातक लग गया है. इस पाप से मुक्त होने का उपाय श्री राम को बतलाया शिवलिंग का पूजन करने से आप सब प्रकार से पापों से मुक्त हो जाएँगे। श्री राम ने हनुमान को आदेश दिया लिंग लेकर आइए. हनुमान जी को काफ़ी देरी लग गई.मुहूर्त के बीत जाने की आशंका से ,पुण्यकाल का विचार करते हुए सीता जी द्वारा विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना कर दी गई. बाद में , उनके द्वारा कैलास से लाये गये लिंग को भी वहीं समीप में ही स्थापित कर दिया, श्री राम ने ही उस लिंग का नाम ‘हनुमदीश्वर’ रखा.----------------------------------------------------
रामेश्वरम का रामनाथास्वामी मंदिर जहाँ यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है वह निर्माण-कला और शिल्पकला का एक बेजोड नमूना है. लगभग एक हज़ार फुट लम्बा ,१२५ फुट ऊँचा और ६५० फुट चौड़ा है इस के प्रवेश द्वार चालीस फीट ऊँचे हैं. मुख्य द्वार पर बना गोपुरम सौ फुट ऊँचा है .विश्व का सबसे लंबा गलियारा इसी मंदिर में है. सेंकडों खम्बे हैं हर खम्बे की कलाकारी भिन्न है .छत पर रंगीन चित्र पर बने हैं. मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर से बने शिवलिंग को रामेश्वरम या रामनाथ नाम कहा जाता है.
वहीँ पास में स्वर्ण पत्र मंडित गरुड़ स्तम्भ है. मंदिर में नंदी की १८ फुट ऊँची प्रतिमा भी है .
मन्दिर-परिसर में २४ कुएँ थे जिनेमिए से अब जो २२ कुओं में ही पानी है और उनका पानी आश्चर्यजनक रूप से मीठा है ! कहते हैं , उन्हें भगवान श्री राम ने अपने बाणों से तैयार किया था और अनेक तीर्थों का जल मँगाकर उन कुओं में छोड़ा गया था, जिनके कारण उन कुओं को आज भी तीर्थ कहा जाता है. वैज्ञानिक कहते हैं कि हर कुएँ के पानी की अपनी खासियत है और पानी में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनसे रोग दूर होने में सहायता मिलती है.इन कुएँ के पानी से स्नान करना इसलिए भी 'शुभ' माना जाता होगा.
उन २४ तीर्थों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं– गंगा, यमुना, गया, शंख, चक्र, कुमुद आदि.आप को मंदिर के बाहर भी कुएँ दिखेंगे परंतु उनका पानी खारा है.
मंदिर से ३ किलोमीटर दूर एक गन्धमादन पर्वत जो वास्तव में एक टीला है कहते हैं हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी.वहीँ पर ‘रामझरोखे’से समुद्र तथा श्रीरामसेतु के दर्शन करने का विशेष पुण्य लाभ बताया गया है.इस पर्वत पर जाने के लिए सीढियाँ है.
इस मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है ,फिर इसे बनाने के लिए लाखों टन पत्थर कहाँ से लाए गये होंगे? और कैसे ? यह सब आश्चर्यजनक बातें लगती हैं !
हम सिर्फ एक ताजमहल को अजूबा कहते हैं ,जबकि मानव निर्मित अजूबा कहलाने के हकदार यह स्थान भी है.
देखने योग्य अन्य स्थान -
देवी मंदिर,सेतु माधव,बाईस कुण्ड,विल्लीरणि तीर्थ,एकांत राम,कोदंड ‘स्वामी को मंदिर’,पादुका मंदिर जहाँ भगवान राम के पद चिन्ह हैं ,सीता कुण्ड,आदि-सेतु,धनुषकोटि[यहीं से राम सेतु शुरू होता है जो श्रीलंका तक पहुंचाता है].आदि.
यह द्वीप बहुत ही सुन्दर है.न केवल तीर्थ स्थान के लिए बल्कि पर्यटन हेतु भी इसे बढ़ावा दिया जा सकता है.
यहाँ का पामबन सेतु समुद्र पर बना भारत का सब से लंबा पुल है जो रेल मार्ग के लिए बना है.
हनुमान मंदिर है जहाँ आप तैरते पत्थरों को आज भी दिख सकते हैं ,कहते हैं इसी तरह के पत्थरों का उपयोग राम सेतु बनाने में किया गया होगा.
अब देखते हैं कुछ तस्वीरें ..[सभी चित्र गूगल से साभार]
कैसे जाएँ ?-
-मदुरई हवाई अड्डा नजदीकी है.
-अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे चेन्नई और बेंगुलुरु हैं .
रेल--चेन्नई सभी शहरों से रेल मार्ग से जुड़ा है और
चेनई में मंडपम और मदुरै रेल स्टेशन प्रयोग किजीये .
[चेन्नई से रामेश्वरम के लिए रामेश्वरम एक्सप्रेस चलती है.]
बस द्वारा--
बेंगलुरु और चेन्नई दोनों जगहों से रामेश्वरम के लिए बसें चलती हैं .
.
...............Alpana Verma...........
Other Related links-
http://youtu.be/dSbS-GI7En8
http://ramanathaswamy.com/
9 comments:
विषद चित्रमय वर्णन
मुबारक हो. १२ ज्योतिर्लिंगों के दर्शन आपने कर लिए और करवा भी दिए. भूतपूर्व राष्ट्रपति के परिवार वाले इस मंदिर से जुड़े हुए थे.
@Thnx Sir,
2009 se yatra shuru ki thi..ab ja kar samapt hui hai.
abhaar.
अरे वाह! बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए.
ज्योतिर्लिंग के दर्शन से शुभ और कल्याणकारी
चेतना का विकास होता है.
आभार ,अल्पना जी
काफी समय पूर्व मुझे रामेश्वरम दो से अधिक बार जाने का मौका मिला.सबसे कष्टदायी बात यह लगी कि वहाँ समुन्द्र का जल जो लगभग स्थिर है को बहुत
ही दूषित कर दिया गया.अब वहाँ क्या स्थति है अल्पना जी.
आपका प्रयास काफी बढिया है । आप मेरे ब्लाग का निरीक्षण कर सकती हैं अगर कोई फोटो या जानकारी उसमें से लेना भी चाहें अपने लिये तो खुशी होगी । सुझावो का भी स्वागत है
बहोत ही सुंदर में अब 15 दिसम्बर को जा रहा हूँ जानकारी बहोत ही काम आएगी धन्यवाद अल्पना जी
बहोत ही सुंदर में अब 15 दिसम्बर को जा रहा हूँ जानकारी बहोत ही काम आएगी धन्यवाद अल्पना जी
बहोत ही सुंदर में अब 15 दिसम्बर को जा रहा हूँ जानकारी बहोत ही काम आएगी धन्यवाद अल्पना जी
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