जैसे कि हम अब तक १० ज्योतिर्लिंगों की सैर कर चुके हैं आज हम ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के दर्शन हेतु चलेंगे.
श्रीशैल देवस्थान-
आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में घने जंगलों के बीच कृष्णा नदी [पाताल गंगा] के दायीं ओर स्थित यह एक अति प्राचीन स्थल मल्लिकार्जुन मंदिर है .श्री शैलम पर्वत पर बने इस मल्लिकार्जुन मंदिर में ही स्थापित है बारह ज्योतिर्लिंगों में चौथा स्थान रखने वाला मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग.
भगवान मल्लिकार्जुन का यह देव स्थान नाल्लामलाई पर्वत पर स्थित है.नल्ला का अर्थ है--अच्छा और माला का अर्थ है पहाड़ी.
इस पहाड़ी को सिरिधन,श्रीगिरी,श्रीनगम,श्री पर्वत भी कहते हैं. श्री शैल पहाड़ी समुद्र से ४७६ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है.
इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं .
यह स्थान न केवल ज्योतिर्लिंग का स्थल है बल्कि १८ महाशक्ति स्थलों में से एक भी माना जाता है .यहाँ स्वामी मल्लिकार्जुन के साथ देवी भ्रमरअम्बा विराजमान हैं.इस क्षेत्र में शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग एक साथ होने के कारण सदियों से इसकी अत्यधिक धार्मिक महत्ता है .[ मल्लिकार्जुन शिव भगवान का ही नाम है ]
ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन भगवान शिव व पूर्णिमा के दिन माता पार्वती आज भी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में वास करने आते हैं!हर वर्ष यहाँ महाशिवरात्रि पर भारी मेला लगता है.
यह स्थान कितना पुराना है और इनके उदभव की कहानी किसी को ज्ञात नहीं है.पहली सदी के प्राप्त लिखित साक्ष्यों से श्रीशैल पर्वत के होने का ज्ञान होता है.कई राजाओं ने समय- समय पर इस स्थल की पूजा अर्चना की और इस की देखभाल में अपना धन लगाया.मल्लिकार्जुन स्वामी के भक्तों में एक नाम छत्रपति महाराज शिवाजी का भी है.उन्होंने सन १६६७ में इस के उत्तर में गोपुरम बनवाया था.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है- शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के पुत्र गणेश व कार्तिकेय एक बार विवाह के लिए आपस में झगड़ने लगे। दोनों की हठ थी कि पहले मेरा विवाह किया जाए। उन्हें झगड़ते देखकर भगवान शंकर व माता पार्वती ने कहा कि तुम लोगों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटेगा, उसी का विवाह पहले किया जाएगा। माता-पिता की यह बात सुनकर कार्तिकेय तत्काल पृथ्वी परिक्रमा के लिए अपने वाहन मयूर पर बैठकर चल पड़े। लेकिन गणेश जी के लिए तो यह कार्य बड़ा कठिन था। एक तो उनकी काया स्थूल थी, दूसरे उनका वाहन भी मूषक (चूहा) था। भला वह दौड़ में स्वामी कार्तिकेय की सामना कैसे कर पाते। उनकी बुद्धि तीक्ष्ण थी उन्होंने पृथ्वी की परिक्रमा का एक सुगम उपाय खोज निकाला,सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात उनके सात चक्कर लगाकर उन्होंने पृथ्वी परिक्रमा का कार्य पूरा कर लिया. उनका यह कार्य शास्त्रानुमोदित था। पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर कार्तिकेय जब तक लौटे तब तक गणेश जी का सिद्धि और ऋद्धि नामक दो कन्याओं के साथ विवाह हो चुका था और उन्हें क्षेम तथा लाभ नामक दो पुत्र प्राप्त हो चुके थे। यह सब देखकर कार्तिकेय अत्यंत रुष्ट होकर क्रौन्च पर्वत पर चले गए। वात्सल्य से व्याकुल माता पार्वती कार्तिकेय को मनाने वहां पहुंची। पीछे शंकर भगवान वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। कहते हैं सर्वप्रथम इनकी अर्चना मिल्लका पुष्पों से की गयी थी, इस कारण उनका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा। तभी से भगवान शिव यहां मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रख्यात हुए। [यह कथा अंतर्जाल के किसी स्त्रोत से साभार] [देवी पारवती ने एक भ्रमर के रूप में शिव की अराधना की थी इसलिए उनके स्थापित रूप का नाम भ्रमराम्बा पड़ा.] |
चढाई करके जब आप शिखरम पर पहुंचेंगे जो कि इस पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी बताई जाती है वहाँ आप को नंदी जी की मूर्ति दिखेगी और मुख्य मंदिर भी नज़र आएगा.नंदी के सींगों के बीच से मंदिर का शिखर देखने की परम्परा है.यहाँ शिव -पारवती की मूर्ति भी विराजमान है जिसे देख कर ऐसा प्रतीत होगा जैसे कैलाश पर्वत पर आये हों...
साक्षी गणेश जी का मंदिर है ,उनके यहाँ हाजिरी लगा कर ही आगे बढ़ना होता है. मुख्य मंदिर में दर्शन के लिए ५० रूपये से टिकट की शुरुआत है.मुफ्त में दर्शन के लिए तो बहुत लंबी पंक्ति होती है.मंदिर का गर्भ गृह बहुत ही छोटा है जल्दी जल्दी आप को वहाँ से कतार में चलते रहना पड़ेगा. मंदिर के गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं परंतु आप तस्वीर नहीं ले सकते. त्यौहार वाले दिनों में अत्यधिक भीड़ होती है बड़ी राशि का टिकट लेने पर भी दर्शन का नंबर जल्दी नहीं आता.
नीचे उतर कर आप पाताल गंगा देखेंगे.
पंचधारा नामक स्थान.जहाँ पूर्व और दक्षिण से जुड़े पहाड़ों से पानी की पाँच धाराएँ पास -पास बहती हैं .इन्हीं पाँच धाराओं के कारण इस स्थान का नाम पंचधारा है.इसकी भी एक कथा है कि जब गंगा अवतरित हुई थीं तब वे पूर्व दिशा से धरती पर उतर कर सभी दिशाओं में फ़ैल गयीं.इसी स्थान पर गुरु शंकराचार्य ने भी कुछ साल तप किया था. यहाँ आप शंकराचार्य जी ki मूर्ति भी देख सकते हैं.
एक अन्य देवी ईष्ट कामेश्वरी के दर्शन करने हैं तो घने जंगलों के बीच जाना होगा.
आस पास कई धर्मशालाएं हैं और खाने के लिए आन्ध्र प्रदेश का अच्छा भोजनालय है.
नरीमन पॉइंट, कृष्णा नदी पर बना नागार्जुन बाँध भी देखा जा सकता है.यहाँ के स्थानीय लोग यहाँ पिकनिक मनाने आया करते हैं .
निकटतम अन्तर राष्ट्रीय हवाई अड्डा हैदराबाद का है.जो २३२ किलोमीटर दूर है.
हैदराबाद से श्री शैलम के लिए बस के अतिरिक्त टेक्सी व रेल सेवा भी हैं.
नजदीकी रेलवे स्टेशन मरकापुर है.
आभासी दर्शन करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें-
http://srisailamonline.com/virtualsrisailam.asp
पूजा.अभिषेक ,वहाँ रहने व दर्शन आदि के लिए सीधा मंदिर के कार्यालय में ऑनलाइन बुकिंग करवा सकते हैं -http://srisailamonline.com/online_booking.asp
मंदिर के बारे में जानकारी के लिए अधिकारिक साईट यह है-http://srisailamonline.com/
रेफेरेंस-http://srisailamonline.com/
11 comments:
बहुत ही रोचक रहा इस स्थान के बारे मे जानना।
सादर
अद्भुत दर्शन,आभार.
bahut badiya rochak prastuti ke liye aabhar!
उस काल मे पर्यटन के दृष्टिकोण से इन तीरथों का महत्व देश की एकता के लिहाज से भी था ।
सुंदर चित्र अच्छी जानकारी के साथ.... थैंक यू
सुन्दर पोस्ट. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से हम अब तक वंचित हैं. एक विडियो में वहां एक महिला को नागास्वरम बजाते देखा है. "नल्ला" का अर्थ "अच्छा" होता है.
alpana ye jagah to bahut hi khoobsurat hai ,itna vistaar se likha hai ki padhkar aanand aa gaya .bhagya ne saath diya to bhraman kiya jayega yahan .aabhar ....
श्रावण माह में यह पुण्य दर्शन -इस पुण्य का कुछ अंश तो आपको भी मिलता जाएगा !
श्रावण मास में आशुतोष भगवान के दर्शन का पुण्य प्रदान करने हेतु कोटि कोटि अभिनन्दन बहुत ही सुन्दर तस्वीरों युक्त ज्ञान वर्धक रचना के लिए हार्दिक आभार ....
बहुत अच्छी जानकारी चित्र भी सुंदर ।दक्षिण भारत में मल्लिका गुलदाउरी (शेवंती) के फूलों को कहते हैं ।
Very good
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