महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे.
हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् 1597 को राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था.
इसी के तिथि के अनुसार हर वर्ष देश- विदेश में महाराणा का जयंती समारोह मनाया जाता है.
हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् 1597 को राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था.
इसी के तिथि के अनुसार हर वर्ष देश- विदेश में महाराणा का जयंती समारोह मनाया जाता है.
श्री विनोद बंसल जी के अनुसार बाल्यावस्था से ही सदा राणा प्रताप के मन में यही बात खटकती थी कि भारत भूमि विदेशियों की दास्तां की बेड़ियों में सिसक रही है,स्वदेश मुक्ति की योजना में वे सदा चिंतनशील रहते थे.
कभी-कभी बालक प्रताप महाराणा कुंभ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर मेवाड़ की धूलि मस्तक पर लगा, कहा करते थे कि, ”मैने वीर छत्राणी का दुग्ध पान किया है। मेरे रक्त में राणा सांगा का ओज प्रवाहित है। चित्तौड़ के विजय स्तम्भ ! मैं तुमसे स्वतंत्रता और मातृ भूमि भक्ति की शपथ लेकर कहता हूं कि तुम सदा उन्नत और शिशौदिया वंश के गौरव के विजय प्रतीक बने रहोगे। शत्रु तुम्हे अपने स्पर्श से मेरे रहते अपवित्र नहीं कर सकते।” और उसके बाद क्या हुआ इसका इतिहास गवाह है .
कभी-कभी बालक प्रताप महाराणा कुंभ के विजय स्तम्भ की परिक्रमा कर मेवाड़ की धूलि मस्तक पर लगा, कहा करते थे कि, ”मैने वीर छत्राणी का दुग्ध पान किया है। मेरे रक्त में राणा सांगा का ओज प्रवाहित है। चित्तौड़ के विजय स्तम्भ ! मैं तुमसे स्वतंत्रता और मातृ भूमि भक्ति की शपथ लेकर कहता हूं कि तुम सदा उन्नत और शिशौदिया वंश के गौरव के विजय प्रतीक बने रहोगे। शत्रु तुम्हे अपने स्पर्श से मेरे रहते अपवित्र नहीं कर सकते।” और उसके बाद क्या हुआ इसका इतिहास गवाह है .
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की लिखी पुस्तक 'महाराणा प्रताप 'में उनके प्रेरक चरित्र को निराला जी ने बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है.उनके अनुसार महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के पर्याय हैं। वे एक कठिन और उथल-पुथल भरे कालखण्ड में पैदा हुए थे, जब मुगलों की सत्ता समूचे भारत पर छाई हुई थी और मुगल सम्राट अकबर अपनी विशिष्ट कार्य शैली के कारण ‘महान’ कहा जा रहा था लेकिन महाराणा प्रताप उसकी ‘महानता’ के पीछे छिपी उसकी साम्राज्यवादी आकांक्षा के विरुद्ध थे, इसलिए उन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। परिणामस्वरूप अकबर उनके विरुद्ध युद्ध में उतरा। इस प्रक्रिया में महाराणा प्रताप ने जिस वीरता, स्वाभिमान और त्यागमय जीवन को वरण किया, उसी ने उन्हें एक महान लोकनायक और वीर पुरुष के रूप में सदा-सदा के लिए भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित कर दिया है.
आज उनके जन्म दिन पर उन्हें हमारा शत्-शत् नमन.
उनके बारे में और अधिक जानने के लिए आप इन कड़ियों पर भी जा सकते हैं.
आज के इस शुभ दिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए आदरणीय श्री रतन सिंह शेखावत जी यहाँ अपने विचार व्यक्त करते हैं -> राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को नमन
आज के दिन से अच्छा और कौन सा दिन होगा राणा की जन्मस्थली के दर्शन करने के लिए?
चित्रों के साथ ही इस किले के बारे में कुछ जानकारी भी आप को देती चलूँ.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग
दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में नाथद्वारों से करीब २५ मील उत्तर की ओर अरावली की एक ऊँची श्रेणी पर कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई ३५६८ फुट है. इस किले का निर्माण सन् १४५८ (विक्रम संवत् १५१५) में महाराणा कुंभा ने कराया था अतः इसे कुंभलमेर (कुभलमरु) या कुंभलगढ़ का किला कहते हैं .
कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा मुख्य गढ़ है,जो अरावली पर्वत पर स्थित है.कला और स्थापत्य की दृष्टि से विश्व के किलों में कुंभलगढ़ का किला अजेय और अप्रतिम माना जाता है.सूत्रधार मंडन ने इसकी परिकल्पना की और करीब सात सौ शिल्पियों ने दिन—रात अरावली के ख्यात शिखर पर किले को आकार दिया था.
कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग अनेक कारणों से प्रसिद्ध है.
इसी दुर्ग में ऐतिहासिक पुरूष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.
इस अजेय दुर्ग की दीवारें इतनी चौडी है कि इस पर कई घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाईना) के बाद संभवत: यह दुनियाँ में दूसरी सबसे चौड़ी दीवार वाला दुर्ग है.
भारत में सब से लंबी दीवार इसी दुर्ग की है.
इस दुर्ग की खासियत यह है कि यह दूर से नज़र आता है मगर नजदीक पहुंचने पर भी इसे देखना आसान नही हैं. इसी खूबी के कारण एक बार छोड़ इस दुर्ग पर कभी कोई विजय हासिल नहीं कर पाया.
सामरिक रणनीति के तहत राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र की सीमाओं पर निॢमत ११०० मीटर की ऊंचाई और १३ अन्य पहाडि़यों की चोटी से घिरा यह अनूठा दुर्ग हैं.मेवाड़ की सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा करने के लिए मेवाड़ अंचल से बनाये गये ८४ छोटे-बड़े दुर्ग में से ३२ का निर्माण एवं डिजाईन महाराणा कुम्भा द्वारा करवाई गई थी.यह 12 किलोमीटर तक फैला हुआ है और कई मंदिर, महल व बाग इसमें स्थित है.
बादल महल से आस-पास के देहातों का दृश्य दिखाई देता है. गढ़ में केवल सात द्वारों केलवाड़ा से ही पहुंचा जा सकता है.विजय पोल के पास की समतल भूमि पर हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर बने हैं.
इस शिवलिंग की ऊँचाई देखीये.राणा कुम्भा इसी शिवलिंग की पूजा अर्चना किया करते थे.
यहाँ पर नीलकंठ महादेव का बना मंदिर अपने २ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदा के लिए जाना जाता है. इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते. कर्नल टॉड [ इतिहासकार] मंदिर की इस शली को ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं. लेकिन अधिकांशतः विद्वान इससे सहमत नहीं हैं. यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान वेदी है, जो शिल्पशास्र के ज्ञाता महाराणा कुंभा ने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था. राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है. किले के सर्वोच्च भाग पर भव्य महल बने हुए हैं.
कुछ और चित्र देखीए-:
इस सुन्दर दुर्ग के स्मरणार्थ महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किये थे जिसपर इसका नाम अंकित हुआ करता था.
महाराणा कुंभा एक कला प्रेमी शासक थे.कला के प्रति उनके इस अनुराग को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग ने वर्ष २००६ से 'कुंभलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 'की शुरूआत की है.कुंभलगढ़ में गत वर्ष २००९ में यह महोत्सव २१ से २३ दिसम्बर तक चला.महोत्सव के दौरान दिन और रात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.इसमें तीनों दिन प्रात: ११ से अपरान्ह ३ बजे तक तीरंदाजी, पगड़ी बांधना, रस्साकस्सी, रंगोली और मांडणा बनाने की प्रतियोगिताओं के साथ ही राजस्थान के लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुईं.
और अधिक जानकारी के लिए आदरणीय श्री रतन सिंह शेखावत जी द्वारा इसी दुर्ग पर लिखा लेख यहाँ पढ़ सकते हैं और कुम्भलगढ़ किले की यह क्लिप भी देखिये -
[यह सभी चित्र गूगल से लिए हुए हैं]
Maharana Pratap ji kii sankshipt Jeevani Suniye:-
27 comments:
सादर वन्दे !
इस ऐतिहासिक पोस्ट के लिए आपकी जितनी भी प्रसंसा कि जाये कम है |
इस वीर योद्धा को कोटि कोटि नमन !
जय हिंद ! वन्देमातरम !
रत्नेश त्रिपाठी
कुम्भलगढ़ फोर्ट की इतनी जानकारी देने के लिए आपका कोटिश धन्यवाद...चित्र बहुत नयनाभिराम हैं...आनंद आ गया...
नीरज
very informative and useful. pics are also very charming
thanx for such post
मैंने एयर इंडिया में मिली एक पत्रिका से जाना कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार अपने भारत में ही है.. दुःख कि बात है कि ये सच प्रचारित नहीं हुआ... आपका आभार.. राणा प्रताप को नमन..
apne jo Ranapratap ke bare me yad dilai uske liye bahut-bahut dhanyabad aise mahapurush kabhi-kabhi janm lete hai.deshaur dharm ke liye kam karna sarbottam shraddhanjali hai .
apne jo Ranapratap ke bare me yad dilai uske liye bahut-bahut dhanyabad aise mahapurush kabhi-kabhi janm lete hai.deshaur dharm ke liye kam karna sarbottam shraddhanjali hai .
शानदार एवं प्रभावशाली प्रस्तुति. चित्रों पर हिंदी लेखन में हमें भी शिक्षित करें.
महाराणा प्रताप को कोटि कोटि नमन !
शानदार एवं प्रभावशाली प्रस्तुति
@Deepak ji,
आप की बात सही है..भारत सरकार ने सिर्फ चुनिन्दा इमारतों को ही प्रचारित किया..
जबकि कुम्भलगढ़ किले के साथ साथ बहुत सी अन्य इमारतें हैं.. जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए था.
जैसे ताजमहल से अधिक सुन्दर दिलवाडा के संगमरमर की अद्भुत अतुलनीय कलाकारी वाले जैन मंदिर हैं.
शुक्रिया .
@सुब्रमणयम सर,
इस बारे में जानकारी आप को ईमेल से भेज दी है.
Alpana ji,
apke is blog par akar to yatra ka anand ata hai---bahut rochak dhang se apne Kumbhal gadh kee jankaree dee hai.
Poonam
कुम्भल गढ़ की बहुत ही रोचक और आकर्षक प्रस्तुति---सुन्दर पोस्ट।
Respected Narendra Singh Tomar Nst[MP-Lok Sabha] was given this post's link to read he commented -:
"अमर एवं अल्पना आप द्वारा बहुत श्रेष्ठ एवं उपयोगी लिंक दी गयीं थीं , हमने दोनों का इस्तेमाल किया है और दोनों के आलेख एवं कविता हमने तोमर राजपूत वंश के पेज पर प्रकाशित कर दिये हैं , साथ ही इन्हें स्थायी तौर पर अपनी वेबसाइट ग्वालियर टाइम्स से सिंडिकेट कर दिया है , अब इन पर प्रकाशित होने वाली हर सामग्री ग्वालियर टाइम्स पर स्वत: अपडेट एवं प्रकाशित होती रहेगी .. श्रेष्ठ सामग्री की ओर हमारा ध्यान आकर्षित कराने के लिये आप दोनों श्रेष्ठ साहित्य यज्ञ के भागीदार यजमान हो गये हैं । "
Thanks a lot Sir for spending your precious time and sharing your views.
With regards
-Alpana
Maharana Pratap aur Kumbhalgadh ke bare men bahut sundar aur detail men jankari di hai aapne.
alpana didi aap bahut achha kar rahi hain. jitni bhi tarif karun kam hi hai. net par aapki aisi post hone ke karan hamesha iski importance bani rahegi.
u r great
bahut hi acha prayas hai,suruchipurn prastuti ke liye dhanyawad...
Email se prapt comment-
कुम्भलगढ की जानकारी सटीक लगी ....चेतक घोड़े की नस्ल के बारे में भी बताये .....
Regards,
ROHITASH KUMAR MEENA
-----------------------
Jawab-
@Rohitash ji,
Chetak Ghode ko Kathiawari Nasl ka bataya jaata hai.
sat sat naman in veero ko
sat sat naman in veero ko
KOTI KOTI NAMAN VEER MAHARANAPRTAP KAI CHARNO MAI
KOTI KOTI NAMAN VEER MAHARANA PRTAP KAI SHREE SARNO MAI
KOTI KOTI NAMAN VEER MAHARANA PRTAP KAI SHREE SARNO MAI
Koti Nathmastak maharana pratap ke samne.....
जय मेवाड़ जय महाराणा प्रताप आज के इस युग में महाराणा प्रताप के वंशज सिसोदिया वंश के जो की केवल उनकी कथाएं याद रखते हैं लेकिन उनके सिद्धांतों का पालन बहुत कम लोग करते हैं
मै वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जी को कोटि-कोटि नमन करता हूँ ।। हर हर महादेव ।।
कोटि कोटि नमन वीर योद्धा महाराणा प्रताप को
वीर शिरोमणि महाप्रतापी वीरो के वीर श्री महाराणा प्रताप सिंह को कोटी कोटि प्रणाम
Post a Comment