अपनी इस यात्रा में आज चलते हैं ओंकारेश्वर नगरी .नर्मदा क्षेत्र में यह ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है.मध्य प्रदेश के खंडवा जिले को दक्षिण भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है.यह जिला नर्मदा और ताप्ती नदी घाटी के मध्य बसा है.इंदौर शहर से ७७ किलोमीटर दूर,खंडवा जिले में स्थित यह स्थान नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में बने एक टापू पर है, इसे मान्धाता पहाड़ी भी कहा जाता है. नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है.
पहाड़ी के चारों ओर से बहती हुई नर्मदा नदी इसे ओम के आकार का बनाती है.[ कल्पना करें तो ऐसा दिखेगा-चित्र देखें]
ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है.इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है.इसमें 68 तीर्थ हैं. यहाँ 33 करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं.संपूर्ण मान्धाता-पर्वत ही भगवान् शिव का रूप माना जाता है.लोग भक्तिपूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं.[ओंकारेश्वर मन्दिर नर्मदा नदी के उस पार है जबकि ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा के इस पार]
मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं. एक उज्जैन में महाकाल के रूप में जिनके दर्शन हमने पिछली पोस्ट में किये थे और दूसरा ओंकारेश्वर में विराजमान हैं.
इस ओंकारेश्वर-ज्योतलिंग के दो स्वरूप हैं, एक को ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है. यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है.दोनों के दर्शन करने से ही पूर्ण फल प्राप्त होता है।
लिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है-
एक बार विन्ध्यपर्वत ने पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान् शिव की छः मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकरजी वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने विन्ध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए। विन्ध्याचल की इस वर-प्राप्ति के अवसर पर वहाँ बहुत से ऋषिगण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए-एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का ममलेश्वर पड़ा. |
सर्दियों में जब केदारनाथ के पट बंद हो जाते हैं ऐसे समय में में पांचों केदारों की गद्दियां ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित की जाती है. ग्रीष्मकाल में पंचकेदारों के कपाट खुलने के बाद भी उनके स्वरूपों की पूजा यहां की जाती है.यूँ कहिये कि ओंकारेश्वर मंदिर में वर्ष भर पांचों केदारों के दर्शन किए जा सकते हैं और इनके दर्शन से उतना ही पुण्य मिलता है जितना केदारनाथ में दर्शन से.लेकिन मंदिर समिति के अनुसार अधिकतर श्रद्धालुओं को ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में यह जानकारी नहीं है और वे भरपूर प्रयास कर रहे हैं कि पर्यटकों को इस ओर भी आकर्षित किया जाये।
[ये सभी चित्र श्री राघवन जी से प्राप्त हुए हैं.उनका तहे दिल से आभार]
श्री ओंकारेश्वर:-
[ चारों ओर हमेशा जल रहता है] |
एक ओर रोचक बात बताती चलूँ- शिव और पार्वती के चौसर खेलने का जिक्र कई धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. ओंकारेश्वर देश का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां शिव और पार्वती के लिए नियमित रूप से चौसर बिछाई जाती है तथा वे यहाँ ओंकारेश्वर में नियमित रूप से चौसर खेलने आते हैं. इसी के चलते रोज शयन आरती के बाद यहां चौसर सजाई जाती है और कपाट बन्द कर दिए जाते हैं. मंदिर के पुजारी सत्यनारायण बताते हैं कि मंदिर में दो चौसर बिछाई जाती है, एक जमीन में तथा दूसरी झूले पर. जमीन में जहां चौसर के दोनों ओर गोल तकिया रखे जाते हैं, वहीं झूले को भी आरामदेह बनाया जाता है. मंदिर के पुजारी का कहना है कि शयन आरती के बाद चौसर बिछाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है! |
वायु मार्ग -इंदौर विमानक्षेत्र खंडवा का निकटतम एयरपोर्ट है, जो यहां से करीब 113 किमी. दूर है। इंदौर देश के अनेक शहरों से नियमित फ्लाइट्स के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग -खंडवा रेलवे स्टेशन दिल्ली-मुंबई रूट का प्रमुख रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन विभिन्न ट्रेनों के माध्यम से देश के अनेक शहरों से जुड़ा है।
सड़क मार्ग -खंडवा सड़क मार्ग द्वारा राज्य और पड़ोसी राज्यों से द्वारा जुड़ा है। राज्य के अधिकांश जिलों से यहां के लिए नियमित बसों की व्यवस्था है।
References-
Wikipedia,webduniya dot com and official site of state.
और अधिक जानकारी /ऑनलाइन बुकिंग आदि के लिए देखिये राज्य की अधिकारिक साईट-:
http://www.mptourism.com/
आप को यह प्रस्तुति कैसी लगी अपनी राय लिखना न भूलें.
8 comments:
द्वादश ज्योतिर्लिंग की कड़ी मैं ओंकारेश्वर का वर्णन
बहुत अच्छा लगा |वहां के सरे द्रश्य आचों से सामने
सजीव होगये |बधाई
आशा
अच्छी जानकारी और तस्वीरों के लिए आभार!
बहुत सुंदर चित्रण,लिखती रहें,शुभकामनायें.
ye to hamara shahar hai aur kai baar yahan darshan kar aai isliye is post par aakar yaade taaza ho gayi ,devo ki nagri hai ye .bahut sundar tasvir bhi lagaai hai ,shukriyaan darshan karvaane ke liye phir ek baar .
ye to hamara shahar hai aur kai baar yahan darshan kar aai isliye is post par aakar yaade taaza ho gayi ,devo ki nagri hai ye .bahut sundar tasvir bhi lagaai hai ,shukriyaan darshan karvaane ke liye phir ek baar .
अल्पना मैडम, इतनी खूबसूरती से इन पवित्र स्थानों की यात्रा करवाने के लिये धन्यवाद। आपकी पोस्ट पढ़्ने से ऐसी जगहों पर जाने की इच्छा और भी बलवती हो जाती है। धन्यवाद।
हमे पिछले वर्ष ही ओंकारेश्वर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । महाकालेस्वर भी हम जब अवसर मिलता है तो हो आते हैं आपकी पोस्ट से यादें फिर से ताजा हो गईं ।
श्रद्धालुओ के लिए आपने अपने ब्लॉग पर बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है । आपको साधुवाद !
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