गुजरात के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद आज यहीं नज़दीक द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर 'नागेश्वर मंदिर'चलते हैं .गुजरात राज्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी मेरी पिछली पोस्ट में आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
'एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्। सर्वान् कामानियाद् धीमान् महापातकनाशनम्॥'
अर्थात जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान् शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा. रुद्र संहिता शिव भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है.नागेश्वर का अर्थ है नागों का ईश्वर होता. गुजरात प्रांत में द्वारका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग 'नागेश्वर मंदिर' में स्थित है.इस दिव्य ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा आप ने सुनी होगी,जिन्हें नहीं मालूम उनके लिए बता देती हूँ.
कैसे पहुंचें: गुजरात के द्वारका नगरी पहुँच कर आप वहां से ऑटो या बस ले कर यहाँ पहुँच सकते हैं. चलते हैं इन्हीं के दर्शन के लिए-:
[ये सभी सुन्दर चित्र श्री राघवन के खींचे हुए हैं.इन चित्रों के लिए उनका आभार]
'एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्। सर्वान् कामानियाद् धीमान् महापातकनाशनम्॥'
अर्थात जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान् शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा. रुद्र संहिता शिव भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है.नागेश्वर का अर्थ है नागों का ईश्वर होता. गुजरात प्रांत में द्वारका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग 'नागेश्वर मंदिर' में स्थित है.इस दिव्य ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा आप ने सुनी होगी,जिन्हें नहीं मालूम उनके लिए बता देती हूँ.
प्राचीन काल में सुप्रिय नामक शिवजी का बहुत बड़ा भक्त था. वह अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके ही करता था.उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था.एक बार जब सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था. तब राक्षस दारुक ने नौका पर आक्रमण कर दिया और नौका में सवार सभी यात्रियों को कैद कर लिया. सुप्रिय तो जेल में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करता रहता .यह खबर सुनते ही दारुक दैत्य उस स्थान पर आ धमका. सुप्रिय को ध्यान मग्र देखकर वह बोला क्यूं रे यह आंख मूंदकर तू कौन सा षडयंत्र रचा रहा है? सुप्रिय ने उस को कोई उत्तर नहीं दिया इससे गुस्सा होकर दैत्य ने सुप्रिय की हत्या करने का आदेश सुनाया . सुप्रिय बेफिक्र हो कर अपने ध्यान में शिव का स्मरण करता रहा, अपने भक्त को संकट में पड़ा देख शिवजी ने ज्योतिर्लिंग के रूप में ही जेल में दर्शन दिया और अपना पशुपति अस्त्र छोडक़र वहां से अंतरध्यान हो गए.पशुपति अस्त्र ने सभी पापियों का संहार करके सुप्रिय को बचा लिया और वापस शिवधाम चला गया. शिवजी के आदेश के अनुसार ही इस ज्योर्तिलिंग का नाम नागेश पड़ा. |
[ये सभी सुन्दर चित्र श्री राघवन के खींचे हुए हैं.इन चित्रों के लिए उनका आभार]
7 comments:
आभार जानकारी एवं चित्रों का.
हर-हर महादेव शम्भो ,
काशी विश्वनाथ गंगे....
इतने खूबसूरत चित्रों के माध्यम से इस पवित्र धाम के दर्शन करवाने के लिये आपका आधार।
आपका ब्लाग पसंद आया, मेरी हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर और आकर्षक ----। पूनम
jai shiv shambhu ki jai ,ghar baithe sabko darshan ka labh de raha aapka blog ,ye bhi ek punya ka kaam kar rahi aap .shukriya dil se .baahar rahkar bhi yahan ki sanskriti aur dharmik sthalo se jodna ,bahut nek karya hai ye.
Shubham Dixit ji, Bahut -bahut dhnywad.
Jaankari update kar di gayi hai.
Sorry for the mistake.
Regards
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