अपने नाम के अनुरुप यह मूलत: एक वनप्रदेश है.प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है.
15 नवंबर,2000 [ आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिन] के दिन बना यह राज्य भारत का अठ्ठाइसवाँ राज्य है.इसे बिहार के दक्षिणी हिस्से को विभाजित कर के बनाया गया है.इसकी राजधानी रांची है.रांची के अतिरिक्त जमशेदपुर, धनबाद तथा बोकारो जैसे औद्योगिक केन्द्रों के कारण इसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली हुई है.
इस राज्य में 24 जिले हैं . यह आदिवासी बहुल राज्य है.सबसे बड़ा त्योहार सरहुल है जो मुख्यतः बसंतोत्सव है .छऊ प्रसिद्द लोक नृत्य है.
पूरे भारत देश में वनों के अनुपात में यह प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मशहूर है.
Reference-http://jharkhand.nic.in/
वैद्यनाथधाम -
झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहाँ माता का हृदय गिरा था[-पिछली पोस्ट में शिव-पार्वती की पौराणिक कहानी मैंने बताई थी..[शक्ति पीठों की स्थापना के विषय में ] .उसी कहानी के अनुसार].
इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं.
झारखंड के देवघर नामक स्थान में ‘ वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग '’ मौजूद है जो पहले ‘परली ‘के नाम से जाना जाता था।[[ पिछली पोस्ट में बताया गया था कि भारत देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं.] पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण ,शिव जी को प्रसन्न कर शिवलिंग को लंका में स्थापित करने के लिए ले जा रहा था.भगवान शिव जी कि शर्त यह थी कि यदि लिंग लंका से पहले कहीं भी नीचे रखा गया तो वह सदा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा. रास्ते में उसने बैजनाथ नाम के एक चरवाहे को शिवलिंग थोड़ी देर संभालने को दिया, तो वह इतना भारी हो गया कि चरवाहे ने उसे नीचे उतार दिया। तब से यह ज्योतिर्लिंग यहीं रह गया.रावण की लाख कोशिशों के बाद भी यह हिला नहीं.मूर्ति पर अपना अंगूठा गड़ाकर लंका को चला गयां!कहा जाता है कि रावण रोज यहां आता था और गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करता था.ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर की स्थापना 1596 की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु सावन के माह में यहां सुलतानगंज से गंगाजल लाकर यहां चढ़ाते हैं.[देवघर से 42 किमी. दूर जरमुंडी गांव के पास ‘बासुकीनाथ’ अपने शिव मंदिर के लिए जाना जाता है,]देवघर की यह यात्रा बासुकीनाथ के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है.
शिवजी का मंदिर पार्वती जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है.[चित्र में लाल धागा जिन मंदिरों को बाँधे दिख रहा है वह शिव और पारवती के मंदिर हैं.]बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मंदिर भी हैं. इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है. इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने करवाया था. प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है.
दर्शन का समय: सुबह 4 बजे-दोपहर 3.30 बजे, शाम 6 बजे-रात 9 बजे तक। [please confirm it]
[All these pictures are taken by Raghawan.Thanks Raghwan.]
[All these pictures are taken by Raghawan.Thanks Raghwan !]
3 comments:
एक सुखद अभियान आपनें शुरू किया है,इसे जारी रखें .
जानकारी ,चित्र और भजन सभी उत्क्रिस्ट.
आपकी बजह से हम भी दर्शन कर पाये और जानकारी भी मिली , आभार ।
अपने प्रदेश के इस पवित्र धार्मिक नगरी को देखकर असीम आनंद आया .. आप बहुत मेहनत करती है .. यात्रियों के लिए यह ब्लॉग बहुत उपयोगी है !!
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