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माऊंट आबू- [राजस्थान]
आईये आपको आज राजस्थान के एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन माऊंट आबू के बारे मे जानकारी देते हैं.
'माउंट आबू,' जिला सिरोही में है जानिए इस जिले सिरोही के बारे में-
सिरोही राजस्थान का पर्वतीय एवं सीमावर्ती जिला हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार सिरोही नगर का मूल नाम शिवपुरी था। १४०५ में राव शोभा जी ने शिवपुरी शहर को बसाया था. प्रदेश का एकमात्र पर्वतीय स्थल माउन्ट आबू इस जिले में हैं।
यह क्षेत्र मौर्य, क्षत्रप, हूण, परमार, राठौड, चौहान, गुहिल आदि शासकों के अधीन रहा। प्राचीनकाल में यह क्षेत्र आबुर्द प्रदेश के नाम से जाना जाता था और गुर्जर-मरू क्षेत्र का एक भाग था। देवडा राजा रायमल के पुत्र शिवभान ने सरणवा पहाडों पर एक दुर्ग की स्थापना की और 1405 ई. में शिवपुरी नामक नगर बसाया। उनके पुत्र सहसमल ने शिवपुरी के दो मील आगे 1425 ई. में नया नगर बसाया जिसे आजकल सिरोही के नाम से जाना जाता हैं।
राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सिरोही गुजरात राज्य से जुडा एक प्रमुख नगर और इसी नाम का एक जिला मुख्यालय हैं। यह सिरोही रोड रेल्वे स्टेशन से 24 किमी. दूर स्थित हैं।
श्री राय साहब विसाजी मिस्त्री [जिनके केवल एक ही बाजू थी]उन्हें सिरोही का मुख्य इंजिनियर कहा जाता है.उनके योगदान
के लिए उन्हें यहाँ के लोग हमेशा याद करते हें.
अब 'माउंट आबू 'के बारे में जानते हें--
क्षेत्रफल-25वर्ग किमी.
वर्षा- 153से 177सेंमी.
कब जाएं-फरवरी से जून और सितंबर से दिसंबर
माउन्ट आबू भारत का प्राचीनतम पर्वत हैं। माउंट आबू राजस्थान का वह स्थान है, जहां गर्मी हो या सर्दी हमेशा सैलानियों का तांता लगा रहता है।
कुछ रोचक प्रचलित कथाएँ इस स्थान के बारे में --:
1-इस शहर का पुराना नाम 'अर्बुदांचल 'बताया जाता है.पुरानो के अनुसार इस जगह को अर्बुदारान्य [अर्भु के वन.] के नाम से जाना जाता है.कहते हैं वशिष्ठ मुनि ने विश्वामित्र से अपने मतभेद के चलते इन वनों में अपना स्थान बना लिया था.
2-एक कहावत के अनुसार आबू नाम हिमालय के पुत्र आरबुआदा के नाम पर पड़ा था। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प था, जिसने एक गहरी खाई में भगवान शिव के पवित्र वाहन नंदी बैल की जान बचाई थी।
3-माउंट आबू अनेक ऋषियों और संतों का देश रहा है. इनमें सबसे प्रसिद्ध हुए ऋषि वशिष्ठ, कहा जाता है कि उन्होंने धरती को राक्षसों से बचाने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया था और उस यज्ञ के हवन-कुंड में से चार अग्निकुल राजपूत उत्पन्न किए थे।
इस यज्ञ का आयोजन आबू के नीचे एक प्राकृतिक झरने के पास किया गया था, यह झरना गाय के सिर के आकार की एक चट्टान से निकल रहा था, इसलिए इस स्थान को गोमुख कहा जाता है।
४- पौराणिक कथाओं के अनुसार हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवता इस पवित्र पर्वत पर भ्रमण करते हैं.
५-कहा जाता है कि भारत में संत, महापुरुष यहाँ के पहाड़ों में निवास करते थे। मान्यता है कि हजारों देव, ऋषि-मुनि स्वर्ग से उतरकर इन पहाड़ों में निवास करते थे
६ -जैन धर्म के चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। उसके बाद से माउंट आबू जैन अनुयायियों के लिए एक पवित्र और पूज्यनीय तीर्थस्थल बना हुआ है।
माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। हरे-भरे जंगलों से घिरी पहाड़ियों के बीच एक शांत स्थान, माउंट आबू, राजस्थान के रेतीले समुद्र में एक हरे मोती के समान है।
अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित इस पहाड़ी स्थान का ठंडा मौसम पूरे पहाड़ी क्षेत्र को फूलों से लाद देता है, जिसमें बड़े पेड़ और फूलों की झाड़ियां भी शामिल हैं। माउंट आबू को जाने वाला मार्ग यदि आकाश मार्ग से देखा जाए तो ऊंची-ऊंची चट्टानों के बीच घुमावदार रास्ते उच्च वेग वाली हवा के साथ एक बिंदु-रेखा के समान दिखाई देंगे। राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन, माउंट आबू गर्मियों में लिए एक स्थान से कहीं अधिक है।
माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों कापसंदीदा स्थान था।
पहुँचें
वायु मार्ग से-
निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर यहां से 185किमी.दूर है। उदयपुर से माउंट आबू पहुंचने के लिए बस याटैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।
रेल मार्ग से-
नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड 28किमी.की दूरी पर है जो अहमदाबाद,दिल्ली,जयपुर और जोधपुर से जुड़ा है।
सड़क मार्ग से-
माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग के जरिए जुड़ा है। दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से माउंट आबू के लिए सीधी बस सेवा है। राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें दिल्ली के अलावा अनेक शहरों से माउंट आबू के लिएअपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।
घूमने की जगह-
1-दिलवाड़ा जैन मंदिर
2-नक्की झील नक्की झील
3-टॉड रॉक और नन रॉक-
Toad rock
4-गोमुख मंदिर-
5-माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य
6-गुरु शिखर
Guru Shikhar
7-सूर्यास्त स्थल (सनसेट पॉइंट)Sunset point
8-ट्रेवोर्स टैंक [Trevor's Tank ]
9-अर्बूदा देवी का मंदिर-
10-वास्तुपाल और तेजपाल मंदिर
11--अचलेश्वर और अचलगढ-गौतम आश्रम,
12-अंबाजी
Ambaji temple
13-ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय (ओमशांति भवन दर्शनीय हैं)
OmShantiBawan
14-श्री रघुनाथ मंदिर
15-हनीमून पॉइंट
खरीदारी-
राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहां की संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियों और सूती कोटा साड़ियां काफी लोकप्रिय है। यहां की दुकानों से चांदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है।
समाचारों में-
१-16 march २००९ रविवार को माउंट आबू मार्ग स्थित आरणा गांव के समीप घने जंगलों में अचानक आग भडकउठी थी.बहुत से प्रयासों के बाद ही आग को बुझाया जा सका.
२- नक्की झील के उत्तरी तट पर तीन करोड़ की लागत से माउंट आबू में देश का सबसे बड़ा मछलीघर (अक्वेरियम) बनने जा रहा है।
3-भालुओं के लिए प्रसिद्ध माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का अस्तित्व इस इलाके में हो रहे अवैध निर्माण से खतरे में है.
4-एक जगह यह पढा है--
दुनिया जहान में हिल स्टेशन माना जाने वाला माउंट आबू प्रदेश सरकार की ओर से हिल स्टेशन घोषित नहीं है इसलिए यहाँ वनकर्मियों को हिलस्टेशन की सुविधाएँ (हार्ड ड्यूटी एलाउंस) नहीं मिलतीं।
यह बात कितनी सच है..कृपया जानकार पाठक बतायें.
दिलवाड़ा जैन मंदिरः
कहते हैं सात अजूबों से कम नहीं हैं ये मंदिर.
पौराणिक कथा के अनुसार -भगवान विष्णु के नये अवतार बालमरसिया ने इस मंदिर की रुपरेखा बनाई थी. इन आकर्षक ढ़ग से तराशे गए मंदिरों का निर्माण 11 वीं और 13 वीं सदी में हुआ था। ये जैन तीर्थकारों के संगमरमर से बने ललित्यपूर्ण मंदिर हैं। प्रथम तीर्थकर का विमल विसाही मंदिर सबसे प्राचीनतम है। इसका निर्माण सन् 1031 में विमल विसाही नामक एक व्यापारी ने किया था जो उस समय के गुजरात के शासकों का प्रतिनिधि था। यह मंदिर वास्तुकला के सर्वोत्तम उदारहण हैं। यह पांच मंदिरों का समूह है.
प्रमुख मंदिर में ऋषभदेव की मूर्ति व 52 छोटे मंदिरों वाला लम्बा गलियारा है, जिसमें प्रत्येक में तीर्थकरों की सुंदर प्रतिमाएँ स्थापित है तथा 48 ललित्यपूर्ण ढ़ग से तराशे हुए खंभे गलियारे का प्रवेश द्वारा बनाते हैं।
बाइसवें तीर्थंकर - नेमीनाथ का लून वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तुपाल व तेजपाल ने ईसवी सन् 1231 में किया वे पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखने वाले गुजरात के शासक राजा वीर धवल के मंत्री थे। द्वारा के खोलों डयोढ़ी पर बने खंभों, प्रस्तर पादों व मूर्तियों के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है।
1231 में इस मंदिर को तैयार करने में 1500 कारीगरों ने काम किया था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं। पूरे 14 साल बाद इस मंदिर को ये खूबसूरती देने में कामयाबी हासिल हुई थी। उस वक्त खर्च किए गए।
- Alpana -[March30-2009 ]
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5 comments:
IS blog par aana ek kaphi achcha anubhav raha.Shubkamnayen.
शायद आप अल्पनाजी है ?
चुकी ब्लोग मे कही ब्लोगकर्ता का ठीकाना पता नही चला पर रामपुरीयाजी के वक्तव्य को देख ऐसा लगा की यह चिठ्ठा अल्पना़जी का ही होगा।
आपने बहुट ही सुन्दर ढग से आबू माउन्ट की जानकारी दी है। वैसे मेरा यह पसन्ददीदा स्थान भी है।
आपके इस ब्लोग से हमे फायदा होगा।
आभार/शुभकामानाऍ
मुम्बई टाईगर
हे प्रभू यह तेरापन्थ
जानकारी के लिये बधाई...अरावली पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा नैसर्गिक सौंदर्य का प्रतिमान, सैलानियों को अपनी और आकर्षित करनें में पूर्ण सक्षम, सभी को आत्मविभोर कर देने वाला नगर ...
.. माउन्ट आबू से अब जंगली गुलाब खत्म होते जा रहें हैं जो चिन्ता का विषय हैं.
I got information from Rajasthan Patrika regarding this blog. I would like to thank to blog founder ; who think and creat this blog.
Abhishek Jain
Thanks Abhishek ji for your appreciation.
I have created this blog .Whenever get time I write and post articles.
This Blog's concept was of Mr.Prakash Govind.
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