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आज महाराणा प्रताप की जयंती पर चलिये कुम्भलगढ़

महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक...

नालंदा विश्वविद्यालय-[बिहार]



बिहार का ऐतिहासिक नाम मगध है,बिहार का नाम 'बौद्ध विहारों'शब्द का विकृत रूप माना जाता है,इस की राजधानी पटना है जिसका पुराना नाम पाटलीपुत्र था.इस के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखन्ड है.
इस राज्य की अधिकारिक साईट के अनुसार बिहार में ३८ जिले हैं.गंगा नदी यहाँ से गुजरती है.इस साईट में दिए विवरण के आधार पर भगवान राम की पत्नी देवी सीता यहीं की राजकुमारी थीं.सीतामढी के नाम से यहाँ एक जगह भी है.मह्रिषी वाल्मीकि भी यहीं हुए थे और वाल्मीकिनगर के नाम से वह जगह प्रसिद्द है.

इतिहास-
प्राचीन काल में मगध का साम्राज्य देश के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था । यहां से मौर्य वंश, गुप्त वंश तथा अन्य कई राजवंशो ने देश के अधिकतर हिस्सों पर राज किया ।छठी और पांचवीं सदी इसापूर्व में यहां बौद्ध तथा जैन धर्मों का उद्भव हुआ । अशोक ने, बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसने अपने पुत्र महेन्द्र को बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा । उसने उसे पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के एक घाट से विदा किया जिसे महेन्द्र के नाम पर में अब भी महेन्द्रू घाट कहते हैं । बाद में बौद्ध धर्म चीन तथा उसके रास्ते जापान तक पहुंच गया .
बारहवीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आधिपत्य जमा लिया। अकबर ने बिहार पर कब्जा करके बिहार का बंगाल में विलय कर दिया। इसके बाद बिहार की सत्ता की बागडोर बंगाल के नवाबों के हाथ में चली गई।
1912 में बंगाल विभाजन के फलस्वरूप बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया । 1935 में उड़ीसा इससे अलग कर दिया गया .स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और सन् 2000 में झारखंड राज्य इससे अलग कर दिया गया.
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भारत देश में किसी समय शिक्षा के प्रमुख केन्द्रों में से एक माने जाने वाला राज्य आज देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है.स्वंत्रता के पश्चात शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति तथा अकर्मण्यता के प्रवेश करने से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है,यूँ तो हाल ही में यहाँ एक भारतीय प्रोद्योगिक संस्थान और पटना में एक राष्ट्रिय प्रोद्योगिक संस्थान खोला गया है .
बिहार में ऐतिहासिक और पोराणिक महत्व की इतनी जगहें हैं अगर इन्हें ठीक से प्रमोट किया जाये और यहाँ इन्हें देखने दिखाने की समुचित व्यवस्था हो तो बिहार भारत के प्रमुख पसंदीदा प्रयटक स्थलों में से एक हो जायेगा.
आज आप को एक ऐसे दर्शनीय जगह लिए चलते हैं जिसके बारे में बहुत लोग जानते हैं.-

बिहार में एक जिला है नालंदा...संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला” (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना).


यह स्थान पटना से ९० किलोमीटर और गया से ६२ किलोमीटर दूर है.यह विश्व में शिक्षा और संस्कृति के प्राचीनतम केन्द्र “नालंदा विश्वविद्यालय” के लिए प्रसिद्ध है. अब इस महानतम विश्वविद्यालय के सिर्फ़ खंडहर बचे हैं जो १४ हेक्टेयर क्षेत्र में फ़ैले हैं और यहीं है हमारे देश की एक अमूल्य धरोहर--जो सालों से लगभग उपेक्षित ही रही है.
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क्योंकि शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान के प्रचीनतम केंद्र तथा विश्वविद्यालय के रूप में विश्वव्यापी ख्याति अर्जित करने वाले नालंदा के पुरावशेषों को यूनेस्को विश्व धरोहर बनाया जा सकता है. खबरों में तो है कि इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई ने यूनेस्को को अपनी सिफारिश भेज दी है.
यूँ तो नालंदा पुरावशेष प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल और पुरावशेष अधिनियम 1958 के तहत संरक्षित स्थल घोषित किया गया है. इस स्थान को नष्ट होने से बचाने के लिए मूल सामग्रियों के उपयोग से इसकी मरम्मत कराई गई है और इस दौरान इसके मूल स्वरूप को बरकरार रखा गया.
यूनेस्को के एक अधिकारी ने कहा कि नालंदा के पुरावशेष तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में स्थित बौद्घ स्थलों में काफी समानताएं हैं. नालंदा स्थित मंदिर संख्या तीन का निर्माण पंचरत्न स्थापत्य कला से किया गया है. यह दक्षिण पूर्व एशिया के कई स्थलों के अलावा कंबोडिया के अंकोरवाट से मिलती जुलती है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा नालंदा पुरावशेषों और तक्षशिला में भी काफी समानताएं हैं.
-हाल ही में पर्यटनमंत्रालय के अतुल्य भारत अभियान के साथ मिल कर एनडीटीवी द्वारा आयोजित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के तहत सूर्य मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, खजुराहो, लाल किला, जैसलमेर दुर्ग, नालंदा विश्वविद्यालय और धौलावीर जैसे स्थलों को भारत के सात आश्चर्य के रूप में चुना गया है जो एक अच्छी खबर है.

-यह सभी जानते हैं कि पांचवीं सदी के विश्व प्रसिध्द नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है. नया नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ.ऐ.पी.जी.कलाम ने पहल की और अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उन्होंने दूसरे देशों से भी मदद स्वीकार की है.
बिहार सरकार ने पहले ही जमीन मुहैया करा दिया है।वह शुरुआती निवेश भी कर रही है। बिहार और केंद्र सरकार से कुछ शुरुआती कोष भी मिलने वाले है।खबर यह भी है कि ईस्ट एशिया समिट के 16 देश विश्वविद्यालय की स्थापना में आर्थिक सहायता दे रहे हैं.
इस मुद्दे पर एक समिति के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा, ''यह संभवत: एक राष्ट्रीय के बजाय अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय होगा जो प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की जगह स्थापित होगा।''उन्होंने कहा कि नालंदा हमारी सभ्यता का प्रतीक है और नालंदा का पुर्निर्माण एशिया के पुनर्जागरण के लिए महत्वपूर्ण है।
उनके अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में वर्ष 2010 तक शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो जाएगी.
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नालंदा विश्‍वविद्यालय सात शाताब्‍दियों तक एशिया के बौद्धिक जीवन का अंग था। यह विश्‍व के इतिहास में दर्ज पहले महान विश्‍वविद्यालयों में से एक था.
विश्‍व के प्राचीनतम विश्‍वविद्यालय के अवशेषों को आप बिहार के नालंदा जिले में देख सकते हैं.इसकी खोज अलेक्‍जेंडर कनिंघम ने की थी।भारतके इतिहास में जिसे 'गुप्तकाल' या 'सुवर्णयुग' के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। उस समय मगध स्थित नालंदा विश्वविद्याल ज्ञानदान का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र था।

कहते हैं कि इस की स्थापना ४७० ई./४५० ई.[?] में गुप्त साम्राज्य के राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्व के प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था जहां १०,००० छात्र और २,००० शिक्षक रहते थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्य का एक शानदार नमूना था। आज भी इसके अवशेषों के बीच से होकर गुजरने पर आप इसके गौरवशाली अतीत को अनुभव कर सकते हैं। यहां कुल आठ परिसर और दस मन्दिर थे। इसके अलावा कई पूजाघर, झीलें, उद्यान और नौ मंजिल का एक विशाल पुस्तकालय भी था। नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय बौद्ध ग्रन्थों का विश्व में सबसे बड़ा संग्रह था।इस विश्‍वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का समर्थन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्‍वविद्यालय को दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे संरक्षण मिला। केवल यहां के स्‍थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरन विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला था।
नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शन, तथा हिन्दु और बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। चौथी से सातवीं ईसवी सदी के बीच नालंदा का उत्कर्ष हुआ।
नालंदा को राजाश्रय प्राप्त था। शकादित्य, बुद्धगुप्त, तथागत गुप्त, बालादित्य, वज्र और हर्ष ने यहाँ भवन बनवाये थे। हर्ष ने तो यहा भवन की प्राचीर और साधाराम बनवाया था।



अध्ययन करने के लिए चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, इरान और तुर्की आदि देशो से विद्यार्थी आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्सांग ने भी ईस्वी सन् ६२९ से ६४५ तक यहां अध्ययन किया था तथा अपनी यात्रा वृतान्तों में उसने इसका विस्तृत वर्णन किया है। सन् ६७२ ईस्वी में चीनी इत्सिंग ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की।कहा जाता है कि नालंदा विश्वविध्यालय में चालीस हजार पांडुलिपियों सहित अन्य हजारों दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें थी

खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- 'आर्यभट्ट सिद्धांत' .इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।

यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे -:

1. रत्न सागर 2. विढ्ध्यासागर 3. ग्रंथागार

११९३ में तुर्क मुस्लिम सेनापतिबख्तियार खिलज़ी ने बिहार पर आक्रमण किया। जब वह नालंदा पहुंचा तो उसने नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षकों से पूछा कि यहां पवित्र ग्रन्थ कुरान है या नहीं। जवाब नहीं में मिलने पर उसने नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी। कहते हैं यह ६ माह तक जलती रही और आक्रांता इस अग्नि में नहाने का पानी गर्म करते थे.

ईरानी विद्वान मिन्हाज लिखता है कि कई विद्वान शिक्षकों को ज़िन्दा जला दिया गया और कईयों के सर काट लिये गए। इस घटना को कई विद्वानों द्वारा बौद्ध धर्म के पतन के एक कारण के रूप में देखा जाता है। कई विद्वान यह भी कहते हैं कि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नष्ट हो जाने से भारत आने वाले समय में विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे क्षेत्रों मे पिछड़ गया।

अवशेष क्या कहते हैं-14 हेक्‍टेयर क्षेत्र में इस विश्‍वविद्यालय के अवशेष देखने से मालूम होता है कि यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है.सभी भवनों का निर्माण लाल पत्थरों से हुआ था.वर्तमान में दो मंजिला इमारत देखी जा सकती हैं.प्रार्थना भवन में भगवन बुद्ध कि भग्नावस्था में मूर्ति भी देखी जा सकती है.मुख्य पहेली के चित्र में आप ने मंदिर-२ की दीवार देखी थी.कई स्तूप और उनपर भगवन बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं.


यह भी देखिये--:


१-नालन्‍दा पुरातत्‍वीय संग्रहालय-
यहीं परिसर की विपरीत दिशा में बने संग्रहालय में यहाँ कि खुदाई से प्राप्त तांबे की प्‍लेट, पत्‍थर पर खुदा अभिलेख, सिक्‍के, बर्त्तन तथा 12वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।

२-नव नालन्‍दा महाविहारयह एक नया शिक्षा संस्‍थान है। इसमें पाली साहित्‍य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा अनुसंधान होता है।
३-ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल

यह नवर्निमित भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनवाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्‍तुओं तथा उनकी मूर्ति देखी जा सकता है।
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इस जगह के आस पास भी घूमीये--:

१-गाँव सिलाव में प्रसिद्द मिठाई खाजा जरुर खाएं.
२-प्रसिद्द सूर्य मंदिर और झील देखने सूरजपुर जाना होगा.


कैसे जाएँ-वायु मार्ग -
यहाँ से ८९ किलोमीटर दूर नजदीकी हवाई अड्डा पटना का जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है।

रेल मार्ग -
नालन्‍दा में स्टेशन है. लेकिन यहां का प्रमुख रेलवे स्‍टेश्‍ान राजगीर है। राजगीर जाने वाली सभी ट्रेने नालंदा होकर जाती है।

सड़क मार्ग -
नालंदा सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (12 किमी), बोध-गया (110 किमी), गया (95 किमी), पटना (90 किमी), पावापुरी (26 किमी) तथा बिहार शरीफ (13 किमी) से अच्‍छी तरह जुड़ा हुआ है।

Come and have a round,watch this vedio clip-:


References--Official Site of Bihar state and wikipedia.

-Alpana

3 comments:

निर्मला कपिला said...

रल्पना जी बहुत सुन्दर लगा भारत दर्शन और वीडिओ बहु बहुत धन्यवाद्

Harshvardhan said...

is jaankaari ke liye aapko shukria................

श्यामल सुमन said...

एक बढ़िया आलेख वो भी विडियो के साथ। वाह अल्पना जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com