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रोहतांग पास-[ हिमाचल प्रदेश]



हिमाचल प्रदेश के बारे में मैं ने आप को पिछली पोस्ट में बताया था.मनाली की सैर कर रहे हैं तो रोहतांग पास भी जरुर देखें.
आईये जाने इस जगह के बारे में विस्तार से-:
रोहतांग दर्रा--


भारत देश के हिमाचल प्रदेश में 13,050 फीट/समुद्री तल से 4111 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है 'रोहतांग दर्रा 'हिमालय का एक प्रमुख दर्रा है.
रोहतांग इस जगह का नया नाम है.पुराना नाम है-'भृगु-तुंग'!

यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है.
उत्तर में मनाली ,दक्षिण में कुल्लू शहर से ५१ किलोमीटर दूर यह स्थान मनाली-लेह के मुख्यमार्ग में पड़ता है.
इसे लाहोल और स्पीति जिलों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है.पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है.
राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार पिछले वर्ष 2008में करीब 100,000 विदेशी पर्यटक यहां आए थे।


यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है. बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं.

यहाँ ऐसा नजारा दिखता है ,जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले. रोहतांग दर्रे में स्कीइंग और ट्रेकिंग करने की अपार संभावनाएँ हैं.
हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं. रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है,वशिष्ठ.रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है.हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं.


प्रदूषण की समस्या-:

पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण इस क्षेत्र में गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ रही है.यह भी प्रदूषण बढ़ाने में एक कारक सिद्ध हो रही हैं .

यहाँ के स्थानीय वैज्ञानिक जेसी कुनियाल के मुताबिक पूरे सीजन में 10000 गाड़ियाँ यहाँ से गुजर चुकी होती हैं.

व्यस्त समय में यहाँ से प्रतिदिन 2000 किलो कचरा निकलता है तो यहाँ के वातावरण को खराब कर रहा है. पर्यावरणविदों के अनुसार अगर स्थिति नहीं बदली तो इस क्षेत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है.

मौसम की समस्या -:
जब भी बर्फ के कारण इस मार्ग को बंद कर दिया जाता है.[अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक].तब इस जिले में रहने वाले लगभग ३० हज़ार निवासी दुनिया से कट जाते हैं.रोहतांग दर्रा बंद होने का सबसे ज्यादा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है.हेलीकॉप्टर से ही आवागमन संभव हो पाता है और जब मौसम खराब हो तब यह भी संभव नहीं हो पता.
अक्सर ५-६ महीने के लिए ऐसी स्थिति हो जाती है,सोचिये वहां जीवन कितनी कठिनाई में गुजरता होगा.उन सभी दिनों राज्य सरकार सब्सिडी पर राशन देती है.

यहाँ के लोग मुख्यत आलू मटर की खेती पर अपना गुजारा करते हैं.
**प्रयटन हेतु अनुकूल समय -जून से अक्टूबर

**रोहतांग पास जाने के लिए मनाली-रोहतांग रास्ते में से सर्दी में पहनने वाले कोट और जूते किराये पर ले लें.क्योंकि वहां बर्फ है तो आप को बिना इनके वहां घूमने में परेशानी आएगी.

कैसे जाएँ-

रोहतांग पास जाने के लिए मनाली या कुल्लू से आप जीप ले सकते हैं या अपनी गाड़ी में भी वहां जा सकते हैं.

[मनाली ५७० किलोमीटर दिल्ली से और २८० किलोमीटर शिमला से दूर है.]

**सभी पर्यटकों से विनती है इन प्राकृतिक स्थलों को साफ़ सुथरा रखने में मदद करें.
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यहाँ देखने के लिए विशेष स्थल है-:
ब्यास नदी का उदगम और वेद ब्यास ऋषि मंदिर

इसी दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है.ब्यास कुंड ब्यास नदी के उदगम का स्थान है.आज भी यह वैसा ही है जैसा चित्र में दिख रहा है.
Beas Kund inside this temple
वहां के कुंड के पानी का स्वाद का वर्णन शब्दों में संभव ही नहीं है.शायद अमृत का स्वाद ऐसा ही होता होगा?यह कुंड वेद ब्यास ऋषि के मंदिर में स्थित है.'ब्यास नदी'कुल्लू - मनाली ही नहीं ,वरन फिरोजपुर में 'हरी का पटन[?]' की नदी में मिलकर पंजाब और सतलुज नदी में मिल कर पाकिस्तान की ज़मीन को भी हरा भरा करती है फिर अरब सागर में मिल जाती है.इस नदी की कुल लम्बाई ४६० किलोमीटर है.

Beas River
कहते हैं..लाहोल -स्पीती और कुल्लू खेत्र आपस में अलग थे तब इन्हें जोड़ने के लिए स्थानीय लोगों ने यहाँ एक मार्ग बनाने के लिए अपने इष्ट देव भगवान शिव की आराधना की .तब भगवान शिव ने भृगु तुंग पर्वत को अपने त्रिशूल से काट कर यह भृगु -तुंग मार्ग यानि रोहतांग पास बनाया.

इस दर्रे के दक्षिण में व्यास नदी का उदगम कुंड बना हुआ है.यहीं पर हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महारिषी वेद व्यास जी ने तपस्या की थी.इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है.

सभी धाराएँ मनाली से १० किलोमीटर दूर पलाचन गाँव में मिल जाती हैं और ब्यास नदी बनाती हैं.पहले इस नदी को'अर्जीकी' कहा जाता था.महाभारत के बाद इस नदी का नाम ब्यास नदी पड़ा.
इस पवित्र नदी की सुन्दरता ने न जाने कितने ऋषि मुनियों को आकर्षित किया है.
उन में कुछ नाम प्रमुख हैं..ऋषि वशिष्ठ ,मनु,नारद,विश्वामित्र,पराशर,कनव,परशुराम,व्यास जी आदि.इन में से कई ऋषियों के मदिर यहाँ अब भी देखने को मिल सकते हैं.

मनाली बारे में विस्तार से आप को पिछली पोस्ट में बताया गया था.


-अल्पना वर्मा
[March,2009

4 comments:

Science Bloggers Association said...

बहुत शानदार जगह है। सौभाग्‍य से अपनी शादी के हनीमून पे मुझे वहां जाने का सुअवसर मिल चुका है। उन यादों का ताजा करने के लिए आभार।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Harshvardhan said...

waah kya khoob alpana ji yah bahut achchi jagah hai iske baare me jaankaari achchi lagi asha hai aage bhi aap is tarah ki jaankaari apne blog par daalengi............

Mumukshh Ki Rachanain said...

शानदार और मुकम्मल व्योरा चित्रों के साथ प्रस्तुत करने का आभार.
यात्रियों को इससे काफी सुबिधा मिलेगी.

जयकृष्ण राय तुषार said...

behtareen lekh aur photography