१९ नवंबर १८३५ को वाराणसी जिले के भदैनी मुहल्ले में मोरोपंत तांबे, भागीरथीबाई के घर एक पुत्री जन्मी, जिसका नाम रखा गया मणिकर्णिका[मनु]। बचपन से ही उसने पढ़ाई व खेल कूद में विलक्षण प्रतिभा दिखायी. सात साल की उम्र में ही वह घुड़सवारी और तलवार चलाने में, धनुर्विद्या में निपुण हुई.बचपन में उसने पिता से कुछ पौराणिक वीरगाथाएँ सुनीं थीं और वीरों के लक्षणों व उदात्त गुणों को उसने अपने हृदय में संजोया हुआ था. उस असाधारण कन्या को देखकर मुग्ध झाँसी के कुछ वंश रक्षक पुरोहितों ने उसका विवाह राजा गंगाधरराव से कराया.
विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था जिसे देख कर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी. पुत्र के गोद लेने के दूसरे दिन ही २१ नवंबर १८५३ में राजा गंगाधर राव की दु:खद मृत्यु हो गयी.इस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया.
डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया.
इस बात को सुनकर रानी क्रोध से भर उठीं एवं घोषणा की कि ‘मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी’ और इस तरह झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया.
१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया।
रानी के किले की प्राचीर पर जो तोपें थीं उनमें कड़क बिजली, भवानी शंकर, घनगर्जन एवं नालदार तोपें प्रमुख थीं। रानी के कुशल एवं विश्वसनीय तोपची थे गौस खाँ तथा खुदा बक्श। किले की मजबूत किलाबन्दी थी. रानी के कौशल को देखकर अंग्रेज सेनापित ह्यूरोज भी चकित रह गया था . अंग्रेजों ने किले को घेर कर चारों ओर से आक्रमण किया।
अंग्रेज आठ दिनों तक किले पर गोले बरसाते रहे परन्तु किला न जीत सके। रानी एवं उनकी प्रजा ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि अन्तिम श्वाँस तक किले की रक्षा करेंगे। जब अंग्रेज सेनापति ह्यूराज ने अनुभव किया कि सैन्य-बल से किला जीतना सम्भव नहीं है,तब उसने झाँसी के ही एक विश्वासघाती सरदार दूल्हा सिंह को मिला लिया जिसने किले का दक्षिणी द्वार खोल दिया इससे फिरंगी सेना किले में घुस गई और लूटपाट तथा हिंसा का पैशाचिक दृश्य उपस्थित कर दिया।
घोड़े पर सवार, दाहिने हाथ में नंगी तलवार लिए, पीठ पर पुत्र को बाँधे हुए रानी ने रणचण्डी का रुप धारण कर लिया और शत्रु दल संहार करने लगीं। झाँसी के वीर सैनिक भी शत्रुओं पर टूट पड़े।
किन्तु झाँसी की सेना अंग्रेजों की तुलना में छोटी थी। रानी अंग्रेजों से घिर गयीं। कुछ विश्वासपात्रों की सलाह पर रानी कालपी की ओर बढ़ चलीं।
दुर्भाग्य से एक गोली रानी के पैर में लगी और उनकी गति कुछ धीमी हुई। अंग्रेज सैनिक उनके समीप आते जा रहे थे.
दुर्भाग्य से मार्ग में एक नाला आ गया.उनका घोड़ा नाला पार न कर सका। तभी अंग्रेज घुड़सवार वहां आ गए। एक ने पीछे से रानी के सिर पर प्रहार किया जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और उनकी एक आँख बाहर निकल आयी। उसी समय दूसरे गोरे सैनिक ने संगीन से उनके हृदय पर वार कर दिया। अत्यन्त घायल होने पर भी रानी अपनी तलवार चलाती रहीं और उन्होंने दोनों आक्रमणकारियों का वध कर डाला। फिर वे स्वयं भूमि पर गिर पड़ी। स्वामिभक्त रामराव देशमुख अन्त तक रानी के साथ थे। उन्होंने रानी के रक्त रंजित शरीर को समीप ही बाबा गंगादास की कुटिया में पहुँचाया. रानी को बाबा गंगादास ने जल पिलाया और इसी १८ जून १८५९ के दिन उन्होंने अंतिम सांस ली.रानी की अंतिम इच्छा के अनुसार उसी कुटिया में उनकी चिता लगायी गई जिसे उनके पुत्र दामोदर राव ने मुखाग्नि दी और रानी का पार्थिव शरीर पंचमहाभूतों में विलीन हो गया और वे सदा के लिए अमर हो गयीं।
References-chandamama.com and google site pages
आज भी बलिदान दिवस के आयोजनों में देश की आजादी की खातिर अपने प्राणों की आहूति देने वाले शहीदों का पुण्य स्मरण किया जाता है. साथ ही हर साल १८ जून को रानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि पर उनकी समाधि स्थल पर विशेष कार्यक्रम होते हैं.
पिछले सात सालों से ग्वालियर के बलिदान मेला में रानी की पुण्यतिथि पर उनके हथियारों की प्रदर्शनी लगाई जाती रही है.
इस वर्ष भी यहाँ रानी के कुल 28 अस्त्रों का प्रदर्शन किया गया था जिनमें उनकी ४ फुट लंबी तलवार,ढाल, जिस्म बख्तर, सीना सुरक्षा प्लेट, दस्ताने, हेल्मेट, कटार, पंजा और छड़ी गुप्ती रिवॉल्वर की थ्री इन वन थे.
ज्ञात हो कि ये अस्त्र नगर निगम के संग्रहालय से केवल बलिदान दिवस के मौके पर ही सार्वजनिक प्रदर्शन मेले में रखे जाते हैं.संग्रहालय के प्रमुख वसंत जैन के अनुसार रानी के ये अस्त्र -शस्त्र बाबा गंगादास के आश्रम से प्राप्त हुए थे.
नई पीढ़ी को महान योद्धा रानी लक्ष्मी बाई की गौरव गाथा से रूबरू कराने का यह सार्थक प्रयास है.
कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता झाँसी की रानी-स्क्रोल बॉक्स में पढ़िये या सुनिये -
https://youtu.be/uEP4gYdweOI
झाँसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
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अब चलते हैं झाँसी की रानी के किले की तरफ़ जो उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी जिले में बना हुआ है.मैंने स्कूली दिनों में यह स्थान देखा था.
कक्षा आठ की छात्रा अलका राय के अनुरोध पर किले के बारे में यह पोस्ट तैयार की है.वह चित्रों में किला देखना चाह रही थी और हिंदी में सम्बंधित जानकारी भी चूँकि अंतर्जाल पर किले से सम्बंधित जानकारी हिंदी में अभी तक कहीं नहीं मिली है इसलिए यहाँ दी गयी जानकारी अलका ही नहीं वरन अन्य पाठकों के लिए भी उपयोगी होगी,ऐसी आशा है.
झाँसी का किला
उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी जिले में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था.२५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों,मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा.मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ.
१९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया.यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है.इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ़ रक्षा खाई हैं.नगर की दीवार में १० द्वार थे.इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं.
दुर्ग के भीतर बारादरी,पंचमहल,शंकरगढ़,रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदहारण हैं.कूदान स्थल ,कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं.
फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था.
किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है .
किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है.यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है.
वर्ष पर्यंत देखने जा सकते हैं.
चित्रों को बड़ा देखने के लिए उनपर क्लिक करें-
चलते चलते: आज कल रानी की मूल तस्वीर और उनके द्वारा डलहौज़ी को लिखा खत चर्चा में है-
पूरी खबर आप इन links पर जा कर ले सकते हैं -
http://www.bhaskar.com/article/NAT-rani-jhansi-1079838.html?PRV=
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/11/091117_letter_ranijhansi_as.shtml
[सभी चित्र गूगल से साभार ]
31 comments:
बहुत धन्यवाद । हाल ही में मैने दुबार वृंदावन लाल वर्मा की झांसी की रानी पढी है आप का वृतांत और चित्र देख कर सब आंखों में साकार हो गया ।
सुन्दर आलेख चित्रों से सुसज्जित
बेहतरीन आलेख...उम्दा चित्र!! आनन्द आ गया!
सजीव चित्रण ,आभार
बहुत प्रभावित करती पोस्ट -रानी लक्ष्मी बाई दुर्दर्ष जिजीविषा की धनी विलक्षण महिला थी -एक वीरांगना -आपकी यह श्रद्धांजली पोस्ट आपकी उनके प्रति समर्पित भावना की भी द्योतक है -अपने इस पोस्ट के लिए बहुत परिश्रम किया है -स्रोत और दुर्लभ चित्र जुटाएं हैं -साधुवाद !
nice description. very well described and with nice pisc
thanx
aap apne posts par khub mehnat karti hain, aur ye dikhta hai......
shandaar prastuti.....:)
"khub ladi mardani
wo to jhansi wali rani thi......"
बहुत ही शानदार। उम्दा चित्र भी।
रानी लक्ष्मी बाई के बारे में कौन नहीं जानता लेकिन आपकी ओर से यह आदर ही है। इसके लिए आपको बधाई।
[मै अपनी झासी नहीं दुगी ],
मैंने रानी झासी पर कई पुस्तके पढ़ी है
लेकिन यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी
भगवान करे आप ऐसे ऐतिहासिक लेख
लिखते रहे.
बहुत-बहुत धन्यवाद
achhi post
रानी लक्ष्मीबाई का व्यक्तित्व हमेशा से ही हम सबके लिए प्रेरणादायी रहा है.. रानी लक्ष्मीबाई के जीवन और इन दुर्लभ चित्रों वाली आपकी ये पोस्ट बहुत प्रभावित कर रही है.
bahut bahut sundar post ,main naari hone ke naate unki veerta ke varnan padhte huye kafi garv mahsoos kar rahi thi ,chitr itni khoobsurati ke saath pesh kiya hai ki main aadhe ghante apni beti ke saath use dekhti rahi ek ek kar ,use uske baare me padhkar batati rahi .adbhut sa hai hamara bharat .khushi se garv se aankhe bhar gayi ,aaj to tumhe hi salaam karne ko man kar raha .itna sarahniye karya jo kiya hai .umda .
सुन्दर आलेख .....
झाँसी की रानी के बारे पोस्ट बहुत प्रभावित कर रही है.....
सुन्दर आलेख .....
झाँसी की रानी के बारे पोस्ट बहुत प्रभावित कर रही है.....
Alpana Didi Namaste
aapne ye post 29 june ko likhi. jabki iske 2-3 din pahle hi hamne sir se kaha tha. aapne itni jaldi itni sundar post kaise ready ki.
ham bahut chakit hain.
ham kabhi jhansi nahi ja paye lekin hamesha man karta tha ki kabhi wahan jaun. aaj itni detail men sab padhkar bahut hi acha laga. jab ham padh rahe the to dil aisa romanch se bhar gaya ki explain nahi kar sakti. sabhi pictures bahut hi jyada sundar hain. aapne kitni mehnat ki hogi. hai na didi ?
hamne is post ka bhi print out le liya.
[didi jahan se rani laxmi bayi ji ne jump lagayi thi uski height lagbhag kitni thi ?]
aapne itni sundar post banayi hai ki dusra koyi nahi bana sakta. sir to hamesha hi aapki tarif karte rahte hain lekin ab ham bhi kahte hain ki aap sabse best hain.
i love you alpana didi.
aaj morning se hi aapki kayi post dekh rahi hun. music wali bhi.
best wishes
alpana didi 'jhansi ki rani' poem print out men complete nahi aa payi. wo box men thi na isliye.
didi aapko thanks dena hi bhool gaye ham.
many many thanks
हिंदी विकिपेडिया पर भी रानी के बारे में एक आलेख की जरुरत है यदि आप अपना यह लेख वहां भी लिख सकें तो बहुत बढ़िया होगा
आहा! कितना सुन्दर. हमने भी देखा है परन्तु इतनी जानकारी नहीं थी. ज्ञानवर्धक पोस्ट.
Jhansi ki Rani ki aitihasik jeevni ke saath-2 nagar ke darshniy-sthalon ka varnan aisa hai ki mahsus hua ki ham khud hi ghoom liye.
AAP SABHI KI JANKARI KE LIYE
jhansi ki rani Maharani lakshmi bai ke mukhya topchi ghulam ghous khan nimbahera distt.chittorgarh rajasthan ke rahne wale the. jinke bade bhai ka nam bakshi ghulam mohiuddin khan or chote bhai ka nam ghulam kadar khan tha.19 septamber 1857 ko nimbahera me sawtantra sangram me bakshi mohiuddin khan dwara ladi gai ladi me 12 british senik or 1 btitish uropian comander mara gaya or 10 hindustani senik shaid hue. jinki yad me rajasthan sarkar ne aik smarak 1975 me nimbahera me banwaya tha. ghulam goush khan ka viwah hote hi wo 1857 ki ladai me shahid ho gaye unki patni ne bohat lambe samay tak jivan se sanghrsh kiy or nimbahera me hi unka dehant hua.ghulam mohiuddin khan, ghulam ghous khan or ghulam kadar khan mere 4th grant father the.
@Shukriya Fahim Sahab aap ke yahan aane ka aur itni achhee aur nayab jaankari dene ka bhi...
--behad khushi kee baat hai kee aap us khaandaan se jude hain jinka nam aaj itihaas mein bade respect se liya jaata hai...
--Aabhaar sahit,
Alpana
आज आपके भारत दर्शन ब्लॉग को देखने का भाग्य प्राप्त हुआ | झाँसी की महारानी पर प्रस्तुत लेख पढ़ा | अच्छी जानकारी प्राप्त हुई | आप द्वारा की गयी मेहनत साफ़ झलकती है | जानकारी उपलब्ध करवाने का शुक्रिया | परन्तु एक बात कहनी थी | आपने टेक्स्ट कापी करने वाली सुविधा को डिसएबल कर रखा है | ये बात नए प्रयोक्ता के लिए तो ठीक है | परन्तु थोड़ी सी जानकारी रखने वालों के लिए इस टेक्स्ट को कापी करना बहुत आसान है | जैसे कि मैं मोज़िला फायर फोक्स का प्रयोग करता हूँ | इस के टूल में जाकर > कांटेक्ट पर कलिक करके एनेबल जावा स्क्रिप्ट को अनचेक करके ओ.के. करने से ब्लॉग के पेज पर दिखाई दे रहे टेक्स्ट को कापी किया जा सकता है | मेरा कहने का ये अभिप्राय ये है कि यदि कोई आपके ब्लॉग पर दी गयी जानकारी को कापी करके कहीं अन्यत्र प्रयोग करना चाहता है तो आप उसे रोक नहीं सकते | ये तो आप द्वारा उपलब्ध करवाई गयी जानकारी को कापी करने वाले के ऊपर निर्भर करता है कि वो ऐसा करे या न करे
bahut bahut shukriya Vaneet ji.
aap ne sahi kahaa ki jo copy karnaa chahte hain unke liye aur bhi kayee raste hain..
sochti hun ki text copy karnaa enable kar dun..
bahut sari baton se anjan tha . bahut kuchh janne ki iksha thi,jo aapke sundar se artical se jankari mili.
bahut-bahut dhanyawad
LIKE YOU HAM KO JAANKARI PAKAR BAHUT ACCHA LAGA
आँख भर आयी
Ekdm supper
Ekdm supper
झासी की रानी महारानी वीरांगना लक्ष्मीबाई को मेरा सत सत नमन
अब अंग्रेज कुत्ते अब क्यों नही आते राज करने बताये इन्हें महारानी की तरह कैसे राज करते है ।। हमारे गरीब किसान लोगो पर राज कर लिया अब हम पर करकर दिखाये तब बताये इन को
रानी झांसी का नाम आते ही हम सिहर उठते हैं! भारत माता की काेख से पैदा इस वीरांगना ने अंगेजी हुकूमत काे धुल चटा दी थी! आपने बेमिसाल लिखा है!
Bemisaal
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