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आज महाराणा प्रताप की जयंती पर चलिये कुम्भलगढ़

महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक...

विश्वप्रसिद्ध दिल्ली का 'लौह स्तम्भ'-

हमारा भारत कितना अद्भुत है!
कितना ज्ञान बिखरा हुआ है यहाँ प्राचीन धरोहरों के रूप में ,जिसे हमें समय रहते संभालना है.
दुनिया की प्राचीनतम और जीवंत सभ्यताओं में से एक है हमारे देश की सभ्यता.

हमारी प्राचीन धरोहरें बताती हैं कि हमारा देश अर्थव्यवस्था,स्वास्थ्य प्रणाली,शिक्षा प्रणाली, कृषि तकनीकी,खगोल शास्त्र ,विज्ञान , औषधि और शल्य चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में बेहद उन्नत था.
मैगस्थनीज से लेकर फाह्यान, ह्वेनसांग तक सभी विदेशियों ने भारत की भौतिक समृध्दि का बखान किया है.

प्राचीन काल में उन्नत तकनीक और विराट ज्ञान संपदा का एक उदाहरण है अभी तक 'जंगविहिन' दिल्ली का लौह स्तंभ'.इसका सालों से 'जंग विहीन होना ' दुनिया के अब तक के अनसुलझे रहस्यों मे माना जाता है.


सन २००२ में कानपुर के वैज्ञानिक बालासुब्रमानियम ने अपने अनुसन्धान में कुछ निष्कर्ष निकाले थे.जैसे कि इस पर जमी Misawit की परत इसे जंग लगने से बचाती है .वे इस पर लगातार शोध कर रहे हैं.

माना जाता है कि भारतवासी ईसा से ६०० साल पूर्व से ही लोहे को गलाने की तकनीक जानते थे.पश्चिमी देश इस ज्ञान में १००० से भी अधिक वर्ष पीछे रहे. 
इंग्लैण्ड में लोहे की ढलाई का पहला कारखाना सन् ११६१ में खुला था.
बारहवीं शताब्दी के अरबी विद्वान इदरिसी ने भी लिखा है कि भारतीय सदा ही लोहे के निर्माण में सर्वोत्कृष्ट रहे और उनके द्वारा स्थापित मानकों की बराबरी कर पाना असंभव सा है.
iron pillar script
top of pillar kutub and pillar
[सभी चित्र गूगल इमेज से साभार.]

विश्वप्रसिद्ध दिल्ली का 'लौह स्तम्भ'-

स्थान- दिल्ली के महरोली में कुतुबमीनार परिसर में स्थित है.यह ३५ फीट ऊँचा और ६ हज़ार किलोग्राम है.

किसने और कब बनवाया-

गुप्तकाल (तीसरी शताब्दी से छठी शताब्दी के मध्य) को भारत का स्वर्णयुग माना जाता है .
लौह स्तम्भ में लिखे लेख के अनुसार इसे किसी राजा चन्द्र ने बनवाया था.बनवाने के समय विक्रम सम्वत् का आरम्भ काल था। इस का यह अर्थ निकला कि उस समय समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरान्त चन्द्रगुप्त (विक्रम) का राज्यकाल था.तो बनवाने वाले चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ही थे और इस का निर्माण 325 ईसा पूर्व का है.

कैसे यह लोहे का स्तम्भ बनाया गया होगा इसके बारे में अधिक विवरण आई.आई.टी.प्रोफ.बालासुब्रमनियम से इस वीडियो में देख सुन सकते हैं.
http://youtu.be/MR0dVQcdl5s
कहते हैं कि इस स्तम्भ को पीछे की ओर दोनों हाथों से छूने पर मुरादें पूरी हो जाती हैं.परन्तु अब आप ऐसा प्रयास नहीं कर पाएंगे क्योंकि अब इसके चारों तरफ लोहे की सुरक्षा जाली है.

चलते चलते एक और बात बताती चलूँ कि बिहार के जहानाबाद जिले में एक गोलाकार स्तंभ है जिसकी लम्बाई ५३.५ फीट और व्यास ३.५ फीट है जो उतर से दक्षिण की ओर आधा जमीन में तथा आधा जमीन की सतह पर है.
कुछ पुरातत्वविद इसे ही दिल्ली के लौह स्तम्भ का सांचा मानते है.
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एक प्रश्न -क्या इस पुस्तक में जो लिखा है वह सच है..कि क़ुतुब मीनार एक वेधशाला थी  ….अगर हाँ तो इस सच को सामने क्यों नहीं लाया जाता ?
kutubminar
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5 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही रोचक जानकारी, कुतुब मीनार का वेधशाला होने का भी कोई आईडिया है यह पहली बार मालूम पडा. बहुत ही उच्च स्तरीय आलेख, शुभकामनाएं.

रामराम.

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

अल्‍पना जी आपने बहुत ही महत्‍वपूर्ण जानकारी से अवगत कराया है। सच में बहुत अच्‍छा लगा पुरासमय के निर्माण, शिल्‍प आदि के बारे में जानकर।

Unknown said...

आप की जानकारी सही अर्थो मे हिन्दुस्थान का सच्चा इतिहास है ।

manoj kr sharma said...

कुतुब मीनार अगर हिन्दू बेधशाला हो तो कोई आशर्चय की बात नही होगी।कयोंकि जो इतिहास हम सब ने पढ़ा वो अधीकतर कमजोर धरातल के पेशकश थी। अब हम इस सत्तर पर पहूँच चूके हैं जहां से हम सत्य की धरातल अपनी बात रख सके और वैज्ञानिक विशलेषण कर सके।

Unknown said...

Tnx