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आज महाराणा प्रताप की जयंती पर चलिये कुम्भलगढ़

महाराणा प्रताप (९ मई, १५४०- १९ जनवरी, १५९७) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. हिंदू कलेंडर के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ शुक...

लाल बाग़ महल - इंदौर -'मध्य प्रदेश'


आज हम शहर इंदौर की तरफ़ चलते हैं. आशा है कि यह प्रयास आपको अच्छा लग रहा होगा.
आपकी राय हमें इस दिशा मे और बेहतर करने का संबल प्रदान करेगी.आशा करती हूं कि आप अपनी अमूल्य राय देकर हमारा मार्ग दर्शन करेंगे.
भारत देश के मध्य में बसा है राज्य 'मध्य प्रदेश'. अभी चंद साल पहले ही इसी राज्य के विभाजन से एक नये राज्य "छत्तीसगढ" [1 नवंबर, 2000 को] ka गठन हुआ है. आर्थिक दृष्टि से इंदौर 'मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी है.
इन्दौर शहर का संस्थापक जमीन्दार परिवार है जो आज भी बङा रावला जूनी इन्दौर मे निवास करता है. सन् १७१५ में बसा यह शहर मराठा वंश के होल्कर राज में मुख्य धारा में आया.
रानी अहिल्या बाई होल्कर के राज्य में इस शहर की योजना बनी और निर्माण हुआ। रानी अहिल्या बाई जो कि बहादुर होल्कर रानी थीं। इस शहर का नाम 18 वीं शती के इन्द्रेश्वर मन्दिर के नाम से पडा।
यह शहर सरस्वती और खान नदी के किनारे बसा है। आज ये गंदे नाले मे तब्दील हो चुकी हैं. पर पुराने समय के चित्र बताते हैं कि ये शहर के बीचों बीच बहती नदिया कितना मनमोहक नजारा पेश करती होंगी?

मध्यकालीन होल्कर राज्य से संबध्द होने की वजह से इस शहर में कई मध्यकालीन ऐतिहासिक इमारतें
अहिल्याबाई होलकर के बारे में :-
रानी अहिल्या बाई होल्कर
शहर के मध्य मे स्थित राजबाडे के सामने माता अहिल्या बाई होल्कर की मुर्ति स्थापित है. और ये एक ऐसा नाम है जिसे आज भी प्रत्येक इंदोर वासी बडी श्रद्धा से स्मरण करता है.
महारानी अहिल्याबाई इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। जन्म इनका सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को.
अहिल्याबाई किसी बड़े भारी राज्य की रानी नहीं थीं। उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था। फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है।
अपने जीवन काल में पति, पुत्र, पुत्री और दामाद सभी को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देखा.अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र ) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की।

कोई भी तीर्थस्थान भारत मे ऐसा नही है जहां माता अहिल्या बाई ने जिर्णोद्धार ना करवाया हो और ट्रस्ट बनवा कर ऐसी व्यवस्था करवाई कि आज भी वहां पर धर्मशाला वगैरह की व्यवस्थाएं आदि सुचारू रुप से चल रही हैं

सेतू बंध रामेश्वरम मे भगवान शिव का सूबह का प्रथम अभिषेक आज भी मां अहिल्याबाई की तरफ़ से होता है. उसके बाद ही दुसरों का नम्बर आता है.
अब ना राज रहे और ना राजा ही रहे पर मां अहिल्या बाई को इंदौर वासी आज भी अपनि मा के रुप मे ही याद करते हैं. इंदौर एयरपोर्ट और इंदौर युनीवर्सीटी का नाम करण माता अहिल्या बाई के नाम पर किया गया है.
और, मां अहिल्या बाई भी आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक ।

ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता 'देवी' समझने और कहने लगी थी .क्योंकि ऐसे काल में जब न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-वह कल्पनातीत और चिरस्मरणीय है।

इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव बडी धूमधाम से मनाया जाता है.

अब जानिए कुछ ऐतिहासिक तथ्य-
१-'धनगर ' समुदाय के इतिहास महाभारत से भी पहले से चला आ रहा है.भगवान कृष्ण को पालने वाले बाबा नन्द इसी धनगर वंश के थे.

२-'धनगर' समुदाय के प्रमुख राजवंशों में एक था 'होलकर राजवंश'.
मराठा शासन के अंतर्गत मल्हारराव होलकर [जनम १६९४-मृ..१७६६ ]ने १७२० में मालवा क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया.उनके बाद उनकी पुत्रवधू राजमाता अहिल्या देवी होलकर ने १७६७-१७९५ तक यहाँ राज्य किया.

३-उनके बाद तुकोजी राव ने केवल दो साल ही यहाँ राज्य किया.जिनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र यशवंत राव होलकर ने १७९७ से १८११ तक शासन किया. अंग्रेज और मराठों के बीच द्वितीय युद्ध में कई जीत मिलने के बाद [वह एकमात्र एक ऐसे राजा थे] जिनसे शान्ति -संधि में ब्रिटिश सरकार ने कोई शर्त नहीं रखी और युद्ध में हड़पी उनकी सारी जागीर भी लौटा दी थी.

४-महाराजा यशवंतराव [द्वितीय] १९२६ से १९४७ तक यहाँ के शासक रहे

५-होलकर राजवंश की वर्तमान उत्तराधिकारी 'उषा देवी महारानी साहिबा होलकर [१९६१-से वर्तमान ] महाराज यशवंत राव होल्कर की पुत्री हैं, आप मुम्बई मे निवास करती हैं और इस राजवंश के ट्रस्ट खाशगी ट्रस्ट का प्रबंधन भी करती हैं.इंदौर में रहती हैं.

इन्हीं महाराज यशवंत राव होल्कर की युरोपियन पत्नि से एक पुत्र प्रिंस रिचर्ड ( शिवाजी राव होल्कर) हैं वो महेश्वर (जिला - निमाड, म.प्र.) मे रहते हैं.

इसी वंश की राजकुमारी सबरीना होलकर अमेरिका में अपने यहूदी- भारतीय पति के साथ रहती हैं.
इंदौर शहर

इंदौर शहर के बारे में रोचक तथ्य-:

1- १९७१ में वेस्टईंडीज क्रिकेट टीम के खिलाफ़ जीत की खुशी मे एक करीब ३० फ़ीट ऊंचे क्रिकेट बैट की स्मारक स्वरुप, टापू के बगीचे ( वर्तमान चिडिया घर ) में स्थापना की गई थी. जिस पर उस विजयी टीम के सभी क्रिकेटरों के नाम और हस्ताक्षर अंकित हैं. .
2-विश्व की सब से बड़ी [४० फीट ऊँची] गणेश जी की मूर्ति यहीं है.इनका चोला बदलने में १५ दिन लगते हैं और साल में ४ बार ही बदला जाता है.

3-अतिआधुनिक तकनीक 'लेसर तकनीक' का मुख्य रिसर्च केन्द्र CAT यही है.

४--इस शहर से सम्बंधित कुछ महान विभूतियों में इस सदी की महान गायिका लता मंगेशकर ,अभिनेता सलमान खान ,जोनी वाकर,विजेंद्र घाटगे ,vocalist [गायक ]आमिर खान,किशोर कुमार हफीज contractor .क्रिकेट खिलाड़ी राहुल द्रविड़ का जन्म स्थान इंदौर शहर है.

अभिनेता विजेयेंद्र घाटगे महाराज तुकोजी राव होल्कर के नाती हैं. तुकोजी राव होल्कर की एक युरोपियन पत्नि शर्मिष्ठा देवी से चार पुत्रियां हैं उनमे से एक के वो सुपुत्र हैं.
ताऊ रामपुरिया उच्च कोटि के फ़िलेटेलिस्ट ( डाक टिकट संग्राहक) भी हैं.और इनके पास अन्य देशी रियासतों के अलावा होल्कर स्टेट के डाक टिकटों का भी दुर्लभ संग्रह है.
[इन के अतिरिक्त राजनेता श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी इसी प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे थे.आचार्य रजनीश ने भी इसी राज्य के एक गाँव ( गाडरवाडा कस्बा ) में चन्द्र मोहन जैन के नाम से जन्म लिया था.
खबरों में--
लालबाग palace में लगे एतिहासिक परदे और टेपेस्ट्री बदलने का काम किया जा रहा है.इसका कपड़ा बैंगलुरू और साउथ की मिलों से आता है. इसके लिए लालबाग का सुधार कार्य कर रहे पर्यटन विभाग ने ७ लाख का वर्कऑर्डर दिया था.
विभाग ने टेपेस्ट्री और परदे का कपड़ा हूबहू वैसा लगाने के लिए लगभग ३९ लाख रुपए का बजट तय किया है। लालबाग में लगे परदे ओर टेपेस्ट्री का हूबहू वैसा कपड़ा तैयार करने के लिए अटीरा अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री रिसर्च एसोसिएशन से
से दो बार टेस्टिंग हुई थी।
पहले चरण में बैंक्वेट हॉल और क्राउन हॉल में काम होगा. इसके बाद महल के अन्य भाग दरबार हॉल और अन्य स्थानों पर लगे फर्नीचर का काम होगा.दिलीप कवठेकर जी के अनुसार लकड़ी के फ्लोर को हाल ही में मरम्मत कराया गया है.

अब जानिए लाल बाग़ महल के बारे में-

लाल बाग़ महल

  • -लाल बाग़ महल इंदौर की भव्य और शानदार इमारतों मे से एक है.

  • -खान नदी के किनारे पर २८ एकड़ में बने राजघराने का लालबाग पैलेस बाहर से साधारण दिखने वाला है,मगर भीतर से इस की महंगी सजावट पर्यटकों को एक अलग ही दुनिया का आभास देती है.

  • -इसका निर्माण सन् १८८६ में महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय के राज में प्रारंभ हुआ और महाराजा तुकोजी राव होलकर तृतीय के शासन काल में संपन्न हुआ। जो निर्माण तीन चरणों मे पूरा हुआ
  • -निचले तले का "प्रवेश कक्ष " का फ़र्श संगमरमर से बना पूर्व ऐतिहासिक शिल्पकृति को प्रदर्शित करता है. पहले तल पर मुस्लिम सदी के बहुत पुराने सिक्को का संग्रह है .यहाँ समकालीन भारत और इटालियन पेंटिंग्स चित्र और प्रतिमाओं का सुंदर प्रदर्शन देखने को मिलता है.
  • -२८ एकड़ में बने लाल बाग महल में होलकर राजवंश का राजनिवास था.
  • -पैलेस परिसर का लोहे का बना भव्य द्वार लंदन के बकिंघम पैलेस के लोहे के दरवाजों की दुगने आकार की कापी है,इंग्लॅण्ड में इन्हें तैयार कर के पानी के रास्ते भारत लाया गया था.
  • -इस महल के दरवाजों पर राजघराने की मुहर लगी है जिस का अर्थ है 'जो प्रयास करता है वही सफल होता है.'
  • -बालरूम का लकडी का फ्लोर स्प्रिंग्स पर बना है जो बाउंस करता है.
  • -महल की रसोई से नदी का किनारा दिखता है.रसोई से एक रास्ता भूमिगत सुरंग में खुलता है.
  • -महल के कमरों की बनावट और सजावट देखते ही बनती है. कमरे की दीवार पर और छत पर सुंदर कला कृतियाँ दिखाई देती हैं.इटालियन संगमरमर ,परसियन कालीन.महंगे और खूबसूरत झाड़ फानूस, बेल्जियम के कांच का प्रयोग आदि यहाँ की सुन्दरता में चार चाँद लगा देता है.

  • -सब से सुंदर सिंहासन कक्ष कहा जाता है.
  • -पहले कई वर्षों तक यहाँ बैठकें ,ख़ास कायक्रम आदि होते रहे हैं.
  • -१९७८ तक यह राजनिवास रहा. तुकाजीराव [ तृतीय ] इस के अन्तिम निवासी थे.
  • -अब यह मध्य प्रदेश सरकार की निगरानी में है और इस के कुछ हिस्सों को संग्राहालय बना दिया गया है.
  • -यहाँ का गुलाब बाग़ भारत का सब से बड़ा गुलाब बाग़ है.

  • -ये महल आज भी होलकर शासकों की शानो शौकत और शाही जीवन शैली का जीता जाता नमूना है.अपने अनूठे निर्माण कला की वजह से ये भारत का एक अद्भुत और कलात्मक निवास स्थान माना जाता है.
  • -[महल के भीतर फोटो लेना मना है.]

लाल बाग़ महल के अतिरिक्त देखने के लिए प्रमुख स्थल हैं-

१-बड़ा गणपति.
२-कांच मंदिर
३-टाऊन हॉल
४-केन्द्रीय संग्रहालय.
५-गीता भवन.
६-अन्नपूर्णा मंदिर.
७-खजराना [गणेश मंदिर]
८-बीजासेन मंदिर
९-गोमत गिरी
१०-राजवाडा
11-छतरियां
कैसे पहुंचे-
  • -शहर से १० किलो मीटर पर हवाई अड्डा है.
  • -सभी मुख्य बडे शहरों से घरेलू हवाई सेवाएँ उपलब्द्ध हैं.
  • -बस और रेल सेवाओं द्वारा भी यहाँ तक पहुँच सकते हैं.
  • -पर्यटकों के लिए यह स्थान सोमवार बंद रहता है.
  • -प्रवेश शुल्क निर्धारित है.

-Laal Bag palace ke खुलने का समय सुबह १० से शाम ६ बजे[यह जानकारी पुनः निश्चित कर लें]

-अल्पना वर्मा

श्री दिलीप कवठेकर जी के व्यक्तिगत अनुभव उनकी कलम से : -

लाल बाग़ महल
मुख्य मीटींग हाल का जहां बालरूम डांस फ़्लोर है
करीब २०० एकड में बना हुआ यह महल मालवा प्रांत के सुबेदार होलकरों के राजवंश का रिहाईशी महल रहा है, जिसे अब एक म्युज़ियम में बदल दिया गया है.
ये सिहांसन हाल या दरबार हाल नहीं था, जो राजबाडा में हुआ करता था. यहां तो मंत्रणायें होती थी खास लोगों से.
जब मालवा प्रांत पर बाजीराव प्रथम का अधिपत्य हुआ सन १९४३ में तब यहां के सुबेदार बनें मल्हार राव होलकर, जिनके वंशज तुकोजी राव होलकर नें इस महल की नींव डाली और बाद में शिवाजी राव नें इसे शुरु करवाया, और तुकोजी राव तृतीय नें १९२१ मे पूर्ण करवाया . ये महल तीन चरणों में बन कर तैय्यार हुआ, और यहां बेल्जियम के कट ग्लासवर्क, रोमन पौराणिक मूर्तियां,और युरोपीयन शैली की कटलरी रखी गयी.

इसके लिये फ़्रांस के आर्किटेक्ट्स की भी मदत ली गई, और इसका फ़ेशिया पेरिस के वर्सेल्लेस महल से मिलता जुलता रखा गया. अंदर के भी कई दालान और कमरों की छतें भी इसी महल के वास्तु के अनुरूप बनाई गयी, जहां लियोनोर्ड दी विंची की पेंटिंग्स बनवाई गयी जिसके लिये चित्रकार भी वहीं से आये थे.
उन दिनॊ में इटली से मार्बल के पिलर और पत्थर मंगाये गये.यहां के शेंडेलीयर्स भी बडी भव्य और शानोशौकत से भरपूर थे.यहां उन दिनों महाराजाओं द्वारा शिकार किये गये शेरों की भूस भरी हुई खालें भी रखी गयी थी.

स्वयं महाराजा के शयन कक्ष में चांदी का बडा पलंग हुआ करता था, और चंदन की लकडीयों द्वारा बनाया गया निजी मंदिर भी था. बहुत ही दिन हो गये मुझे वहां गये हुए , कई चीज़ें गायब हैं और अब तक और हो गयी होंगी.

यहां एक बालरूम डांस फ़्लोर भी बनाया गया जिसके लिये भी शीशम की लकडी से बनाया गयी पट्टीयां लगाई गयी, जो अभी अभी खराब हुई थी.आंतरिक साजसज्जा के लिये इसमें कई आर्किटेक्ट्स और इंजीनीयरों की सेवायें ली गयीं, जिसमें मुझे भी बुलाया गया था, और ये काम करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ.
इस महल में एक सुरंग है, जो महल से रसोईघर जाती थी, जिससे महाराज के लिये खाना बन कर आता था.वहां एक लिफ़्ट हुआ करती थी जो उन दिनों अजूबा होती थी.
इसी जगह के पास महाराजा की ट्रेझरी भी हुआ करती थी (निजी). वैसे यहां पर एक सुरंग और थी जो कहते हैं शहर के बीचों बीच बने राजवाडे से जुडती है. मैंने वह जगह देखी थी बचपन में जिसे दिवार से चुन दिया गया था.

दरअसल में मुझे इस महल में बचपन में बहुत बार जाने का अवसर मिला था जब मैं मेरे दादाजी के साथ जाता था उन दिनों जब महाराज तुकोजी राव होल्कर. उनके पद से हटने के बाद महाराज यशवंतराव होलकर हुए जिनने उन्हे वहीं रहने दिया और स्वयं के लिये अलग महल बनवाया - माणिक बाग.

मेरा सौभाग्य रहा कि मैं इन दोनों महाराजाओं से मिला, व्यक्तिगत रूप से (बहुत छोटा था)
हमारा परिवार होलकरों का राजगुरु रहा है मल्हारराव होल्कर के जमाने से २५० साल से, जब हमारे पूर्वज होलकरों के साथ नासिक से यहां आ कर बसे, और अभी अभी भारत के स्वतंत्रता तक इस पद पे रहे.

मेरे ताऊ जी अंतिम राजोपाध्याय थे.पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई भी इसी राजघराने से थी.
जिसनें इस महल की एक और विशेषता है, इसका मुख्य द्वार, जिसे लंदन के बर्किंघम पेलेस की तर्ज़ पर बनाया गया .
मुख्य द्वार
इसके लिये वहीं से बनाकर स्टील मंगाया गया था. इसमें होलकरों का एम्ब्लेम लगाया गया था जिसपर बोध वाक्य था - जिसे हमारे पूर्वजों नें गढा था-
प्राहोमेशोलभ्या श्रीः कर्तु: प्रारब्धात...

इस एम्ब्लेम पर बांयी ओर है होलकरों के कुलदैवत मल्हारी मार्तंड का घोडा़,जो पराक्रम का प्रतीक है. दांयी ओर है नंदी (शिवजी के) जो है धर्म के अनुसरण का प्रतीक. तलवार , भाले, और होलकरों की सफ़ेद-लाल पताका के साथ शीर्ष पर है सूर्य जिसके ऊपर है छत्र, राज का प्रतीक.
इस मुख्य द्वार पर लोहे के दो बडे सिंहों की फ़ुल साईज़ मूर्तियां थीं जो अभी अभी २० साल पहले रातों रात चोरी चली गयी!!

इसी जगह आन फ़िल्म की शूटिंग हुई थी जिसमें दिलीप कुमार पर गाना फ़िल्माया गया था- दिल में छुपा का प्यार का..... बहु बेगम फ़िल्म की भी शूटिंग यहां हुई है.

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References-
1-Wikipedia.com
2-Official site of Madhya Pradesh
http://www.mptourism.com/dest/indore.html">http://www.mptourism.com/dest/indore.html

9 comments:

अनिल कान्त said...

आपका ये प्रयास बहुत सराहनीय है

प्रकाश गोविंद said...

कोई स्थल...कोई इमारत...कोई महल ...
अपने में कितना विस्तृत इतिहास संजोये हुए रहता है ! यह इस पोस्ट को पढ़कर जाना सकता है !

इंदौर के लाल बाग़ महल के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा ! पर्यटन पर आधारित आपका यह ब्लॉग निः संदेह सराहनीय प्रयास है !

जिस तरह से आप डिटेल में तथ्यपरक ब्योरा प्रस्तुत करती हैं वो प्रशंसनीय है !

जैसे-जैसे ब्लॉग के पेज बढ़ते जायेंगे वैसे-वैसे इस ब्लॉग का महत्व बढ़ता जाएगा !

आभार एवं हार्दिक शुभकामनाएं

शोभना चौरे said...

जिस शहर में हम रहते है जिन जगहों पर कई बार जाते है उसके बारे में पढना विस्तृत बड़ा ही रोमांचित कर गया |नै नै जानकारिय मिली |
किशोर कुमार का जन्म स्थल खंडवा है इंदौर krishichiyan कालेज से उन्होंने पढाई की थी |
खंडवा में किशोर कुमार और मेरे पिता स्कूल में सहपाठी थे |
इंदौर की इस ऐतिहासिक जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार |

आशीष मिश्रा said...

मैं इंदौर के पास में ही रहता हूँ, पर इंदौर के बारे में इतना नहीं जानता था.

आज इस पोस्ट को पढकर इंदौर के बारे में कई नयी जानकारी मिली
...................................
आभार

Anonymous said...

AAPKA PRAYAS SARHANIYA HAI

Rahul Singh said...

गाडरवाड़ा तो शायद ही इंदौर से जुड़े, यह जबलपुर के पास है.
1989 और 1990 के दौरान मुझे अपने शासकीय कर्तव्‍यों में लालबाग की सामग्री की सूची तैयार करने के लिए इंच-इंच देखने का अवसर मिला था.

Anonymous said...

Plz ... Add The Lalbag Add

Alpana Verma said...

Check Laal baag palace address--
http://wikimapia.org/11544321/Lal-Bagh-Palace

mukesh chandra said...

मैं धनगर मुकेश चंद्रा फतेहाबाद जनपद आगरा उत्तर प्रदेश से हूं जानकर अति प्रशन्नता हुई।जानकारी देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।